कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को संतान की सुरक्षा के लिए माता अहोई अष्टमी का निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं. अहोई का अर्थ है कि अनहोनी को भी बदल देना. मान्यता है कि यह व्रत करने से अहोई देवी किसी भी अनहोनी को भक्त की इच्छानुसार होनी में बदल देती हैं. उत्तर भारत में विभिन्न स्थानों पर अहोई माता का स्वरूप वहां के स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. अहोई देवी के चित्रांकन में आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती हैं. उसी के पास साही और उसके बच्चों आकृतियां बनाई जाती है, जिसका वर्णन इस व्रत-कथा में है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी का अहोई बनाते हैं. ज्ञात हो कि इस वर्ष 5 नवंबर 2023 को अष्टमी व्रत रखा जाएगा.
इस दिन घर के मुख्य आंगन में फर्श की अच्छे से सफाई कर उसे मिट्टी अथवा गोबर से लीपें. यहीं कलश की विधिवत स्थापना करें. देवी अहोई की तैयार आकृति की तस्वीर रखें इस दिन पार्वती स्वरूपा माँ अहोई एवं भोले शिव की एक साथ पूजा की जाती है. यह व्रत वस्तुतः संतान की अच्छी सेहत और दीर्घायु के लिए की जाती है, लेकिन मान्यता है कि इस व्रत एवं पूजा से निसंतान दंपत्ति को भी संतान-सुख प्राप्त होता है. पूजा करते हुए अपने बच्चे को साथ में अवश्य बिठाएं. अहोई माता की कथा अवश्य सुननी चाहिए. कथा सुनते समय सात प्रकार के अनाज और पुष्प अपने हाथ में रखें. कथा समाप्त होने के पश्चात हाथ में लिया अनाज गाय को खिला दें. इसके पश्चात व्रत का पारण करें और किसी ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. यह भी पढ़े : Bhai Dooj 2023 Date: कब मनाया जाएगा भाई दूज? कैसे और कब शुरू हुई यह परंपरा एवं क्या है इसकी पौराणिक कथा?
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार के 7 बेटे और 7 बहुएं थी. उसकी एक बेटी दीपावली पर मायके आई थी. घर को लिपाई-पुताई हेतु सातों बहुओं और ननद मिट्टी लेने जंगल गई. मिट्टी खोदते समय ननद की खुरपी से साही का एक बच्चा मर गया. क्रोधित साही बोली, -मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी. अब से तुम्हारी कोई भी संतान जीवित नहीं रहेगी. ननद ने सातों भाभियों से निवेदन किया कि कोई एक मेरे बदले अपनी कोख बंधवा लें. सभी ने मना कर दिया, लेकिन सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई. इसके बाद छोटी भाभी के एक-एक कर 7 बच्चे मर गये. छोटी बहु ने अपने पुरोहित से इसका निवारण पूछा. उन्होंने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी. सुरही सेवा से प्रसन्न होकर वह उसे साही के पास ले जा रही थी. एक जगह जब वे आराम कर रहे थे. छोटी बहू ने देखा, कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा था, लेकिन छोटी बहु सांप को मार दिया. गरुड़ पंखनी ने वहां खून देखा तो सोचा कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मारा है. वह छोटी बहू पर हमला करती है, तो छोटी बहू ने बताया कि उसने उसके बच्चे को सांप से बचाया है. यह सुन गरूड़ पंखनी खुश होकर उन्हें स्याहु के पास पहुंचा दिया. स्याहू की मां छोटी बहू की परोपकार और सेवाभाव से प्रसन्न होकर उसे 7 संतान की मां बनने का आशीर्वाद दिया. छोटी बहू को 7 बेटे होते हैं. वह खुशहाल जीवन व्यतीत करती हैं.
व्रतियों को ध्यान देने योग्य जरूरी बातें
* इस दिन मिट्टी से जुड़ा कोई कार्य नहीं करें.
* नुकीली चीजों का भी इस्तेमाल करने से बचें.
* ध्यान रहे इस दिन जाने-अनजाने में भी आपसे जीव-हत्या नहीं हो.
* इस दिन सिलाई आदि से जुड़े कोई कार्य नहीं करें.
* किसी बुजुर्ग या असहाय व्यक्ति का अपमान न करें.
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को संतान की सुरक्षा के लिए माता अहोई अष्टमी का निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं. अहोई का अर्थ है कि अनहोनी को भी बदल देना. मान्यता है कि यह व्रत करने से अहोई देवी किसी भी अनहोनी को भक्त की इच्छानुसार होनी में बदल देती हैं. उत्तर भारत में विभिन्न स्थानों पर अहोई माता का स्वरूप वहां के स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. अहोई देवी के चित्रांकन में आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती हैं. उसी के पास साही और उसके बच्चों आकृतियां बनाई जाती है, जिसका वर्णन इस व्रत-कथा में है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी का अहोई बनाते हैं. ज्ञात हो कि इस वर्ष 5 नवंबर 2023 को अष्टमी व्रत रखा जाएगा.
इस दिन घर के मुख्य आंगन में फर्श की अच्छे से सफाई कर उसे मिट्टी अथवा गोबर से लीपें. यहीं कलश की विधिवत स्थापना करें. देवी अहोई की तैयार आकृति की तस्वीर रखें इस दिन पार्वती स्वरूपा माँ अहोई एवं भोले शिव की एक साथ पूजा की जाती है. यह व्रत वस्तुतः संतान की अच्छी सेहत और दीर्घायु के लिए की जाती है, लेकिन मान्यता है कि इस व्रत एवं पूजा से निसंतान दंपत्ति को भी संतान-सुख प्राप्त होता है. पूजा करते हुए अपने बच्चे को साथ में अवश्य बिठाएं. अहोई माता की कथा अवश्य सुननी चाहिए. कथा सुनते समय सात प्रकार के अनाज और पुष्प अपने हाथ में रखें. कथा समाप्त होने के पश्चात हाथ में लिया अनाज गाय को खिला दें. इसके पश्चात व्रत का पारण करें और किसी ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. यह भी पढ़े : Bhai Dooj 2023 Date: कब मनाया जाएगा भाई दूज? कैसे और कब शुरू हुई यह परंपरा एवं क्या है इसकी पौराणिक कथा?
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार के 7 बेटे और 7 बहुएं थी. उसकी एक बेटी दीपावली पर मायके आई थी. घर को लिपाई-पुताई हेतु सातों बहुओं और ननद मिट्टी लेने जंगल गई. मिट्टी खोदते समय ननद की खुरपी से साही का एक बच्चा मर गया. क्रोधित साही बोली, -मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी. अब से तुम्हारी कोई भी संतान जीवित नहीं रहेगी. ननद ने सातों भाभियों से निवेदन किया कि कोई एक मेरे बदले अपनी कोख बंधवा लें. सभी ने मना कर दिया, लेकिन सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई. इसके बाद छोटी भाभी के एक-एक कर 7 बच्चे मर गये. छोटी बहु ने अपने पुरोहित से इसका निवारण पूछा. उन्होंने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी. सुरही सेवा से प्रसन्न होकर वह उसे साही के पास ले जा रही थी. एक जगह जब वे आराम कर रहे थे. छोटी बहू ने देखा, कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने जा रहा था, लेकिन छोटी बहु सांप को मार दिया. गरुड़ पंखनी ने वहां खून देखा तो सोचा कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मारा है. वह छोटी बहू पर हमला करती है, तो छोटी बहू ने बताया कि उसने उसके बच्चे को सांप से बचाया है. यह सुन गरूड़ पंखनी खुश होकर उन्हें स्याहु के पास पहुंचा दिया. स्याहू की मां छोटी बहू की परोपकार और सेवाभाव से प्रसन्न होकर उसे 7 संतान की मां बनने का आशीर्वाद दिया. छोटी बहू को 7 बेटे होते हैं. वह खुशहाल जीवन व्यतीत करती हैं.
व्रतियों को ध्यान देने योग्य जरूरी बातें
* इस दिन मिट्टी से जुड़ा कोई कार्य नहीं करें.
* नुकीली चीजों का भी इस्तेमाल करने से बचें.
* ध्यान रहे इस दिन जाने-अनजाने में भी आपसे जीव-हत्या नहीं हो.
* इस दिन सिलाई आदि से जुड़े कोई कार्य नहीं करें.
* किसी बुजुर्ग या असहाय व्यक्ति का अपमान न करें.