मोदी सरकार ने 'स्वच्छ भारत' अभियान के तहत 2019 में ही भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था. लेकिन डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बता रही है.डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ ने हाल ही में पानी की सप्लाई और स्वच्छता पर अपने जॉइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम की ताजा रिपोर्ट जारी की है, जो 2022 तक इन मोर्चों पर अलग अलग देशों द्वारा दर्ज की गई तरक्की के बारे में विस्तार से बताती है.
दो अक्टूबर, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया था. लेकिन इन वैश्विक संस्थानों की इस नई रिपोर्ट की मानें तो हकीकत कुछ और है.
कभी बंद ही नहीं हुआ खुले में शौच
रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में ग्रामीण भारत में 17 प्रतिशत लोग अभी भी खुले में शौच कर रहे थे. भारत की कुल आबादी करीब 1.40 अरब है, जिसमें करीब 65 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं.
तो इस रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 15 करोड़ लोग आज भी खुले में शौच करते हैं. इतना ही नहीं, रिपोर्ट ने यह भी दावा किया है कि ग्रामीण भारत में करीब 25 प्रतिशत परिवारों के पास अपना अलग शौचालय भी नहीं है. यह भी ओडीएफ घोषित किये जाने के मुख्य लक्ष्यों में से था.
जुलाई 2021 में इन दोनों संस्थाओं ने कहा था कि तब ग्रामीण भारत में खुले में शौच करने वालों की संख्या 22 प्रतिशत थी, यानी एक साल में समस्या पांच प्रतिशत और कम हुई है. 2015 में यह संख्या 41 प्रतिशत थी.
तरक्की हुई लेकिन सफाया नहीं
रिपोर्ट यह तो दिखा रही है कि भारत ने खुले में शौच से लड़ाई में लगातार तरक्की हासिल की है लेकिन साथ ही रिपोर्ट ने पूरी तरह खुले में शौच से मुक्ति के सरकार के दावों पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. भारत सरकार के ओडीएफ लक्ष्यों, परिभाषा और दावों को लेकर शुरू से विवाद रहा है. सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ की परिभाषा है - खुले में मल नजर ना आना और हर घर और सार्वजनिक संस्थान द्वारा मल के निस्तारण के लिए सुरक्षित तकनीकी विकल्पों का इस्तेमाल.
2019-20 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के पांचवें दौर के मुताबिक उस समय देश में कम से कम 19 प्रतिशत परिवार खुले में शौच कर रहे थे. बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में तो यह संख्या 62, 70 और 71 प्रतिशत तक थी.
एक बार फिर सरकार के ओडीएफ के दावों को गलत बताया गया है. देखना होगा कि सरकार इस अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के नतीजों को चुनौती देती है या नहीं.