बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में पहली बार गुरुवार को पहले चरण में 121 सीटों के लिए रिकॉर्ड 64.46 प्रतिशत मतदान हुआ. चुनाव आयोग के अनुसार इस मतदान प्रतिशत में और इजाफा हो सकता है. इससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव में 2000 में सबसे अधिक 62.57 फीसदी मतदान हुआ था. हालांकि 1998 के लोकसभा चुनाव में 64.66 फीसदी मतदान हुआ था. वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 प्रतिशत तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में 56.28 प्रतिशत वोट डाले गए थे.
आजादी के बाद हुए 17 विधानसभा चुनावों के परिणाम बताते हैं कि जब-जब बिहार में पांच प्रतिशत से अधिक वोटिंग बढ़ी, तब-तब सत्ता बदल गई. 1967 के चुनाव में मतदान में सात फीसदी की वृद्धि हुई थी, तब राज्य में पहली जनक्रांति दल (जेकेडी) और शोषित दल की गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इसी तरह, 1980 में 6.8 फीसदी अधिक मतदान हुआ तो डॉ. जगन्नाथ मिश्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार सत्ता में लौटी. वहीं 1990 में 5.8 प्रतिशत अधिक वोटिंग हुई तो लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार का गठन हुआ. इसके बाद कांग्रेस बिहार की सत्ता से पूरी तरह विदा हो गई.
वोट प्रतिशत में कमी के बाद विदा हो गए थे लालू
राज्य में इससे पहले विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 62.57 प्रतिशत मतदान, वर्ष 2000 में हुआ था. यह लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद का चुनाव था. तब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, किंतु महज सात दिन के अंदर ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा और फिर राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं. वह 2005 तक सत्ता में रहीं. हालांकि 2005 में वोट प्रतिशत में 16 फीसदी से अधिक की कमी के बावजूद लालू विदा हो गए और नीतीश कुमार की सरकार बनी. राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, ‘‘इस बार नीतीश सरकार के खिलाफ ऐसी कोई लहर नहीं दिख रही. इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन है कि सत्ता विरोधी लहर के कारण मतदान प्रतिशत बढ़ा है. फिर, महागठबंधन के पक्ष में भी ऐसी कोई हवा प्रत्यक्ष तौर पर नहीं दिख रही कि उनके वोटर तेजस्वी के वादे पर भरोसा कर उमड़ पड़े हों. अलबत्ता, वे अपने वादे कैसे पूरे करेंगे, पर बहस शुरू हो गई है.''
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पहले यह माना जाता था कि वोट प्रतिशत में अप्रत्याशित वृद्धि हो तो सरकार बदल जाती है. हालांकि झारखंड और महाराष्ट्र में तो वोट प्रतिशत बढ़ने के बाद भी सरकार बची रही, जबकि दिल्ली में कमी आने के बाद भी गिर गई. इसी तरह 2023 में मध्यप्रदेश में करीब 77 फीसदी वोटिंग हुई, जो पिछले चुनाव से 2.08 प्रतिशत अधिक थी. वहां बीजेपी की सरकार बच गई. वहीं, 2023 में ही राजस्थान में 74 फीसदी से अधिक मतदान हुआ, जो पिछले चुनाव से 0.39 प्रतिशत अधिक था. किंतु इसके बावजूद कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल गई.
क्या गुल खिलाएगी सात प्रतिशत की वृद्धि
2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 प्रतिशत मतदान हुआ था. वहीं, अगर तीन चरण वाले 2020 के चुनाव के पहले चरण में 71 सीटों के लिए सिर्फ 55.68 प्रतिशत ही मतदान हुआ था. इस बार की अधिक वोटिंग एनडीए और महागठबंधन, दोनों की ही धडक़न बढ़ा रही है. सौरभ कहते हैं, ‘‘चिंता की वजह पिछले चुनाव में जीत-हार का कम अंतर रहना है. विधानसभा की 52 सीटों पर पांच हजार से कम वोट पर फैसला हुआ था. बढ़ा हुआ वोट किसके पाले में जाएगा, यह किसी को समझ नहीं आ रहा, यहीं चिंता का मूल कारण है, क्योंकि ऐसा प्रतीत हो रहा कि इस बार भी जीत-हार का अंतर घटेगा ही.''
गुरुवार को भी जहां चुनाव हुआ है, उनमें 28 सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले चुनाव में जीत का अंतर पांच हजार से कम था, जबकि 20 सीटों पर फैसला तीन हजार से कम वोटों के अंतर से हुआ था. इनमें आठ सीटों पर हार-जीत का अंतर एक हजार से भी कम था. तेजस्वी महज 12 सीटों के अंतर से सरकार बनाने से चूक गए थे. इस चरण में भी 20 सीटें निर्णायक साबित हो सकती हैं, क्योंकि इन सीटों पर दोनों ही गठबंधनों को मिले मत में एक या दो प्रतिशत की कमी या वृद्धि होती है तो परिदृश्य बदल सकता है.
आखिर किसका है असर
लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत किसी भी चुनाव में मतदान प्रतिशत का बढ़ना बेहतर माना जाता है, किंतु इसके साथ यह चर्चा भी तेज हो गई है कि आखिर ऐसा हुआ कैसे. वैसे, इस बार भी पोलिंग बूथ पर कतार में महिलाओं की संख्या काफी देखी गई. मतदान से पहले चुनाव आयोग ने भी वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) किया था.
पहले चरण की वोटिंग के पहले बिहार में छठ मनाया गया. छठ के मौके पर बड़ी संख्या में प्रवासी अपने घर लौटते हैं. राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं, ‘‘इस बार उनलोगों ने बढ़-चढक़र वोटिंग की, जिन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं का फायदा मिल रहा है. इसलिए बूथ पर 25 से 75 वर्ष के लोगों की संख्या काफी देखने को मिली. इनके मन में शायद यह संशय भी था कि अगर उन्होंने वोट नहीं डाले तो वे इन योजनाओं का लाभ पाने से वंचित हो जाएंगे.''
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इस बार वे लोग भी वोट देने निकले जो साइलेंट वोटर कहे जाते हैं, अर्थात वे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते हैं. ये मिडिल एज ग्रुप के लोग हैं. इसके अलावा बीते चार महीने में राज्य सरकार की लोक लुभावन घोषणाओं ने भी कोर वोटरों के बिखराव को रोका. उन्हें नीतीश कुमार पर पहले से भरोसा तो है ही. पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, ‘‘आजकल महिलाओं की भूमिका पॉलिटिकली काफी महत्वपूर्ण हो गई है. इसलिए पिछले कुछ चुनावों से महिला वोटरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. वे खासकर नीतीश कुमार की कोर वोटर रही हैं. इसके अलावा ऐसा लग रहा कि इस बार छोटे-छोटे कास्ट ग्रुप वाले ईबीसी वोटर भी मुखर हुए और अपने अस्तित्व के नाम पर वोट डालने निकले.''
विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी इसके उदाहरण हैं, जैसे निषादों को लगने लगा कि हमारी जाति का आदमी डिप्टी चीफ मिनिस्टर हो सकता है, तो उसके लिए उस जाति का जो व्यक्ति अब तक उदासीन रहता था, वह वोट के लिए कतार में लग गया. वे कहती हैं, ‘‘यह भी देखने की बात होगी कि बिहार के वोटर झारखंड की तरह ही जो दे रहा, उस पर भरोसा कर रहे या फिर जो देने का वादा कर रहा, उस पर. हेमंत सोरेन सरकार माई-बहिन योजना के तहत 1500 रुपये दे रही थी. बीजेपी ने अपने वादे में इसे दो हजार करने की बात कही, किंतु लोगों ने भरोसा हेमंत सोरेन पर ही किया.''
बदल तो नहीं रहा एम-वाई का अर्थ
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, ‘‘फ्रीबीज की घोषणाओं से इतर मुझे लगता है कि वोट प्रतिशत का इस हद तक बढ़ना कहीं ना कहीं जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर के नैरेटिव का भी असर है. वैसे युवा मतदाता जो हिंदू हैं या मुस्लिम, कहीं ना कहीं उनके जेहन में यह बात बैठ गई कि बदलाव के बिना उनके लिए कुछ बेहतर नहीं हो सकता. मुस्लिम-युवा (एमवाई) का यह नया समीकरण भी एक फैक्टर हो सकता है, जिसने साइलेंट वोटर की तरह काम किया.''
लोग सोच रहे हैं कि सड़क-पुल भले ही बन गए, किंतु 20 साल में जब औद्योगिकीकरण की दिशा में काफी धीमी गति से काम हुआ तो आगे क्या होगा, यह कहा नहीं जा सकता. क्योंकि, कोरोना काल में भी काफी घोषणाएं हुईं, लेकिन धरातल पर क्या हुआ यह सर्वविदित है. सौरभ कहते हैं, ‘‘छठ के तुरंत बाद मतदान होने के कारण प्रवासी रूके और बड़ी संख्या में मतदान भी किया."
एनडीए ने विकास की बात तो कही, किंतु इसके साथ जंगलराज की वापसी के प्रतिफल का इतनी बार जिक्र किया कि जातीय आधार पर यह गोलबंदी में परिणत हो गया. भयवश एक-दूसरे को सत्ता में आने से रोकने के लिए भी जमकर वोट पड़े.












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