Legal Terrorism: क्या है कानूनी आतंकवाद? कलकत्ता हाई कोर्ट ने महिलाओं पर क्यों की कठोर टिप्पणी; जानें वजह
Calcutta High Court (Photo Credit: Wikimedia Commons)

Legal Terrorism: कलकत्ता हाई कोर्ट ने सोमवार (21 अगस्त) को कहा कि महिलाएं भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का दुरुपयोग करके "कानूनी आतंकवाद" फैला रही हैं. यह धारा किसी महिला के खिलाफ उसके पति या उसके परिवार द्वारा क्रूरता को अपराध मानती है. सिंगल-जज जस्टिस सुभेंदु सामंत ने कहा कि यह धारा महिलाओं के कल्याण के लिए लाई गई थी, लेकिन अब इसका "दुरुपयोग" हो रहा है. समाज से दहेज की बुराई को खत्म करने के लिए धारा 498A का प्रावधान लागू किया है. लेकिन कई मामलों में यह देखा गया है कि उक्त प्रावधान का दुरुपयोग करके नया कानूनी आतंकवाद फैलाया जाता है." कोर्ट में महिलाओं के लिए इन आपत्तिजनक शब्दों का नहीं होगा इस्तेमाल, SC ने जारी की हैंडबुक.

एक शख्स और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ धारा 498Aके मामले को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि 'आपराधिक कानून एक शिकायतकर्ता को आपराधिक शिकायत दर्ज कराने की अनुमति देता है, लेकिन इसे ठोस सबूत पेश करके ही जायज ठहराया जाना चाहिए.' हाई कोर्ट उस शख्स और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ अक्टूबर और दिसंबर 2017 में उसकी अलग रह रही बीवी द्वारा दर्ज कराए गए आपराधिक मामलों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

क्या है IPC की धारा 498A

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A एक विवाहित महिला के प्रति उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता को को अपराध मानती है. धारा के तहत किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार महिला के साथ क्रूरता करेगा तो उसे उसे तीन साल तक की कैद की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी लगाया जाएगा.

धारा 498A के तहत परिभाषित क्रूरता में निम्न बातें शामिल हैं:

  • शारीरिक हिंसा (जैसे पिटाई, मारना या जलाना)
  • मौखिक दुर्व्यवहार (अपमान करना या धमकियां देना)
  • आर्थिक अभाव (महिला को काम करने से रोकना या अपने पैसे उसे न देना)
  • सामाजिक अलगाव (महिला को उसके दोस्तों या परिवार से मिलने से रोकना)
  • कोई अन्य आचरण जिससे महिला को मानसिक या शारीरिक हानि होने की संभावना हो.

कोर्ट ने कहा, "धारा 498ए का प्रावधान समाज से दहेज की बुराई को खत्म करने के लिए लागू किया गया है. धारा 498ए के तहत सुरक्षा की परिभाषा में उल्लिखित उत्पीड़न और यातना को केवल वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा साबित नहीं किया जा सकता है." कोर्ट ने कहा, "कानून शिकायतकर्ता को आपराधिक शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है, लेकिन इसे ठोस सबूत जोड़कर उचित ठहराया जाना चाहिए."