Unemployment Rates Fall in India: भारत में बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत हुई
श्रम बाजार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, सुधर कर कोविड के पूर्व के स्तर से आगे आ चुके हैं और बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत पर आ चुकी है.
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश करते हुए बताया कि जहां महामारी ने श्रम बाजारों और रोजगार अनुपातों दोनों को प्रभावित किया है, अब महामारी के बाद त्वरित प्रतिक्रिया के साथ-साथ पिछले कुछ वर्षों से सतत प्रयासों और भारत में आरंभ किए गए विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के साथ, श्रम बाजार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, सुधर कर कोविड के पूर्व के स्तर से आगे आ चुके हैं, जैसा कि आपूर्ति पक्ष और मांग पक्ष रोजगार डाटा में देखा गया है. यह भी पढ़ें: डिप्रेशन से गुजर रहे युवा वयस्कों में दिल की बीमारी होने का खतरा अधिक
प्रगतिशील श्रम सुधार उपाय
2019 और 2020 में 29 केन्द्रीय श्रम कानूनों को समाहित किया गया, युक्तिसंगत बनाया गया तथा चार श्रम संहिताओं नामतः मजदूरी पर संहिता, 2019 (अगस्त 2019) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा पर संहिता 2020 तथा पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता 2020 (सितम्बर 2020) में सरलीकृत किया गया.
समीक्षा के अनुसार, संहिताओं के तहत बनाये गये नियमों को केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा उपयुक्त स्तर पर सुपुर्द किया गया. 13 दिसम्बर, 2022 को 31 राज्यों ने मजदूरी पर संहिता, 28 राज्यों ने औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, 28 राज्यों ने सामाजिक सुरक्षा पर संहिता के तहत तथा 26 राज्यों ने पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता के तहत प्रारूप नियमों का पूर्व प्रकाशन भी किया है.
रोजगार रुझानों में सुधार
श्रम बाजार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, सुधर कर कोविड के पूर्व के स्तर से आगे आ चुके हैं और बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत पर आ चुकी है.
सावधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) में सामान्य स्थिति के अनुसार पीएलएफएस 2020-21 (जुलाई-जून) में श्रम बल सहभागिता दर (एलएफपीआर), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) में पीएलएफएस 2019-20 तथा 2018-19 की तुलना में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं और पुरूषों दोनों में सुधार आया है.
2018-19 के 55.6 प्रतिशत की तुलना में पुरूषों के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 57.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है. 2018-19 के 18.6 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 25.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है. 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से 2020-21 के 27.7 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण महिला श्रम बल सहभागिता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
रोजगार में व्यापक स्थिति के अनुसार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रूझान से प्रेरित, 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में स्वरोजगार वाले लोगों का हिस्सा बढ़ा और नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों के हिस्से में गिरावट आयी. आर्थिक समीक्षा के अनुसार, कार्य के उद्योग पर आधारित, कृषि से जुड़े श्रमिकों का हिस्सा 2019-20 के 45.6 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 2020-21 में 46.5 प्रतिशत पर पहुंच गया, इसी अवधि के दौरान विनिर्माण का हिस्सा 11.2 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से गिरकर 10.9 प्रतिशत पर आ गया, निर्माण का हिस्सा 11.6 प्रतिशत से बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गया तथा व्यापार, होटल और रेस्तरां का हिस्सा 13.2 से गिरकर 12.2 प्रतिशत हो गया.
महिला श्रम बल सहभागिता दरः माप मुद्दे
आर्थिक समीक्षा महिला श्रम बल सहभागिता दर की गणना में माप मुद्दों को रेखांकित करता है। भारतीय महिलाओं की निम्न एलएफपीआर के समान विवरण परिवारों तथा देश अर्थव्यवस्था के लिए अभिन्न कामकाजी महिलाओं की वास्तविकता से चूक जाती हैं. समीक्षा डिजाइन और कन्टेंट के माध्यम से रोजगार की माप अंतिम एलएफपीआर अनुमानों में एक उल्लेखनीय अंतर पैदा कर सकते हैं और पुरूष एलएफपीआर की तुलना में महिला एलएफपीआर के लिए यह ज्यादा मायने रखता है.
समीक्षा में कहा गया है कि काम की माप करने के दायरे को विस्तारित करने की आवश्यकता है जिसमें विशेष रूप से महिलाओं के लिए रोजगार के साथ-साथ उत्पादक कार्यकलापों का एक बहुत व्यापक क्षेत्र शामिल है. नवीनतम आईएलओ मानकों के अनुसार, उत्पादक कार्य को श्रम बल सहभागिता तक सीमित करना संकीर्ण है और कार्य को केवल एक बाजार उत्पाद की तरह माप करता है। इसमें महिलाओं के बिना भुगतान वाले घरेलू कार्य के मूल्य को शामिल नहीं किया जाता, जिसे जलावन एकत्र करने, खाना बनाने, बच्चों को पढ़ाने आदि जैसे खर्च बचाने वाले कार्य के रूप में देखा जा सकता है और जो परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने में उल्लेखनीय रूप से योगदान देते हैं.
समीक्षा में अनुशंसा की गई है कि ‘कार्य’ की समग्र माप के लिए फिर से डिजाइन किए गए सर्वेक्षण के माध्यम से उन्नत मात्रा निर्धारण की आवश्यकता हो सकती है. इसके अनुसार, श्रम बाजार में शामिल होने में महिलाओं को स्वतंत्र विकल्प देने में सक्षम बनाने के लिए जेंडर आधारित नुकसानों को दूर करने की अभी और अधिक गुंजाइश है. किफायती क्रेच सहित इकोसिस्टम सेवाएं, कैरियर, काउंस्लिंग/आरंभिक सहायता, रहने एवं परिवहन आदि कि सुविधा से समावेशी एवं व्यापक विकास के लिए जेंडर लाभ प्रकट करने में और अधिक सहायता मिल सकती है.
शहरी क्षेत्रों के लिए त्रैमासिक पीएलएफएस
शहरी क्षेत्रों के लिए एक त्रैमासिक स्तर पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संचालित पीएलएफएस जुलाई-सितम्बर, 2022 तक उपलब्ध है. यह डाटा वर्तमान साप्ताहिक स्थित के अनुसार, क्रमिक रूप से तथा पिछले वर्ष की तुलना दोनों में सितम्बर, 2022 को समाप्त होने वाली तिमाही में सभी प्रमुख श्रम बाजार संकेतकों में सुधार प्रदर्शित करता है. एक वर्ष पहले के 46.9 प्रतिशत की तुलना में जुलाई-सितम्बर, 2022 में श्रम सहभागिता दर में 47.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान श्रमिक-जनसंख्या अनुपात 42.3 प्रतिशत से बढ़कर 44.5 प्रतिशत हो गया। यह रूझान रेखांकित करता है कि श्रम बाजार कोविड के प्रभाव से उभर चुके हैं.
रोजगार त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण (क्यूईएस) का मांग पक्ष
श्रम ब्यूरो द्वारा संचालित क्यूईएस 9 प्रमुख क्षेत्रों अर्थात विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्तरां, आईटी/बीपीओ तथा वित्तीय सेवाओं में 10 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को कवर करता है। अभी तक वित्त वर्ष 2022 की 4 तिमाहियों को कवर करते हुए क्यूईएस के 4 दौरों के परिणाम जारी किए जा चुके हैं। क्यूईएस (जनवरी से मार्च 2022) के चौथे दौर के अनुसार 9 चुने हुए क्षेत्रों में अनुमानित कुल रोजगार 3.2 करोड़ था जो क्यूईएस (अप्रैल से जून 2021) के पहले दौर से अनुमानित रोजगार की तुलना में लगभग 10 लाख अधिक है। वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही से श्रमिकों के अनुमानों में वृद्धि बढ़ते डिजीटलीकरण तथा सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के पुनरोत्थान के कारण आईटी/बीपीओ (17.6 लाख), स्वास्थ्य (7.8 लाख) तथा शिक्षा (1.7 लाख) जैसे क्षेत्रों में बढ़ते रोजगार से प्रेरित थी। जहां तक रोजगार का सवाल है, वित्त वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में कुल श्रमबल में 86.4 प्रतिशत के हिस्से के साथ नियमित कर्मचारियों की सभी क्षेत्रों के श्रमिकों में बहुतायत थी। इसके अतिरिक्त क्यूईएस की चौथी तिमाही में रोजगार प्राप्त कुल लोगों में से 98.0 प्रतिशत कर्मचारी थे जबकि 1.9 प्रतिशत स्वरोजगार से जुड़े .
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश करते हुए बताया कि जहां महामारी ने श्रम बाजारों और रोजगार अनुपातों दोनों को प्रभावित किया है, अब महामारी के बाद त्वरित प्रतिक्रिया के साथ-साथ पिछले कुछ वर्षों से सतत प्रयासों और भारत में आरंभ किए गए विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के साथ, श्रम बाजार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, सुधर कर कोविड के पूर्व के स्तर से आगे आ चुके हैं, जैसा कि आपूर्ति पक्ष और मांग पक्ष रोजगार डाटा में देखा गया है.
प्रगतिशील श्रम सुधार उपाय
2019 और 2020 में 29 केन्द्रीय श्रम कानूनों को समाहित किया गया, युक्तिसंगत बनाया गया तथा चार श्रम संहिताओं नामतः मजदूरी पर संहिता, 2019 (अगस्त 2019) औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा पर संहिता 2020 तथा पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता 2020 (सितम्बर 2020) में सरलीकृत किया गया.
समीक्षा के अनुसार, संहिताओं के तहत बनाये गये नियमों को केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा उपयुक्त स्तर पर सुपुर्द किया गया. 13 दिसम्बर, 2022 को 31 राज्यों ने मजदूरी पर संहिता, 28 राज्यों ने औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, 28 राज्यों ने सामाजिक सुरक्षा पर संहिता के तहत तथा 26 राज्यों ने पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी स्थिति संहिता के तहत प्रारूप नियमों का पूर्व प्रकाशन भी किया है.
रोजगार रुझानों में सुधार
श्रम बाजार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, सुधर कर कोविड के पूर्व के स्तर से आगे आ चुके हैं और बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 4.2 प्रतिशत पर आ चुकी है.
सावधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) में सामान्य स्थिति के अनुसार पीएलएफएस 2020-21 (जुलाई-जून) में श्रम बल सहभागिता दर (एलएफपीआर), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) और बेरोजगारी दर (यूआर) में पीएलएफएस 2019-20 तथा 2018-19 की तुलना में ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं और पुरूषों दोनों में सुधार आया है.
2018-19 के 55.6 प्रतिशत की तुलना में पुरूषों के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 57.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है. 2018-19 के 18.6 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 25.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से 2020-21 के 27.7 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण महिला श्रम बल सहभागिता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
रोजगार में व्यापक स्थिति के अनुसार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रूझान से प्रेरित, 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में स्वरोजगार वाले लोगों का हिस्सा बढ़ा और नियमित मजदूरी/वेतनभोगी श्रमिकों के हिस्से में गिरावट आयी। आर्थिक समीक्षा के अनुसार, कार्य के उद्योग पर आधारित, कृषि से जुड़े श्रमिकों का हिस्सा 2019-20 के 45.6 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 2020-21 में 46.5 प्रतिशत पर पहुंच गया, इसी अवधि के दौरान विनिर्माण का हिस्सा 11.2 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से गिरकर 10.9 प्रतिशत पर आ गया, निर्माण का हिस्सा 11.6 प्रतिशत से बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गया तथा व्यापार, होटल और रेस्तरां का हिस्सा 13.2 से गिरकर 12.2 प्रतिशत हो गया.
महिला श्रम बल सहभागिता दरः माप मुद्दे
आर्थिक समीक्षा महिला श्रम बल सहभागिता दर की गणना में माप मुद्दों को रेखांकित करता है. भारतीय महिलाओं की निम्न एलएफपीआर के समान विवरण परिवारों तथा देश अर्थव्यवस्था के लिए अभिन्न कामकाजी महिलाओं की वास्तविकता से चूक जाती हैं. समीक्षा डिजाइन और कन्टेंट के माध्यम से रोजगार की माप अंतिम एलएफपीआर अनुमानों में एक उल्लेखनीय अंतर पैदा कर सकते हैं और पुरूष एलएफपीआर की तुलना में महिला एलएफपीआर के लिए यह ज्यादा मायने रखता है.
समीक्षा में कहा गया है कि काम की माप करने के दायरे को विस्तारित करने की आवश्यकता है जिसमें विशेष रूप से महिलाओं के लिए रोजगार के साथ-साथ उत्पादक कार्यकलापों का एक बहुत व्यापक क्षेत्र शामिल है. नवीनतम आईएलओ मानकों के अनुसार, उत्पादक कार्य को श्रम बल सहभागिता तक सीमित करना संकीर्ण है और कार्य को केवल एक बाजार उत्पाद की तरह माप करता है. इसमें महिलाओं के बिना भुगतान वाले घरेलू कार्य के मूल्य को शामिल नहीं किया जाता, जिसे जलावन एकत्र करने, खाना बनाने, बच्चों को पढ़ाने आदि जैसे खर्च बचाने वाले कार्य के रूप में देखा जा सकता है और जो परिवार के जीवन स्तर को बढ़ाने में उल्लेखनीय रूप से योगदान देते हैं.
समीक्षा में अनुशंसा की गई है कि ‘कार्य’ की समग्र माप के लिए फिर से डिजाइन किए गए सर्वेक्षण के माध्यम से उन्नत मात्रा निर्धारण की आवश्यकता हो सकती है. इसके अनुसार, श्रम बाजार में शामिल होने में महिलाओं को स्वतंत्र विकल्प देने में सक्षम बनाने के लिए जेंडर आधारित नुकसानों को दूर करने की अभी और अधिक गुंजाइश है. किफायती क्रेच सहित इकोसिस्टम सेवाएं, कैरियर, काउंस्लिंग/आरंभिक सहायता, रहने एवं परिवहन आदि कि सुविधा से समावेशी एवं व्यापक विकास के लिए जेंडर लाभ प्रकट करने में और अधिक सहायता मिल सकती है.
शहरी क्षेत्रों के लिए त्रैमासिक पीएलएफएस
शहरी क्षेत्रों के लिए एक त्रैमासिक स्तर पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संचालित पीएलएफएस जुलाई-सितम्बर, 2022 तक उपलब्ध है। यह डाटा वर्तमान साप्ताहिक स्थित के अनुसार, क्रमिक रूप से तथा पिछले वर्ष की तुलना दोनों में सितम्बर, 2022 को समाप्त होने वाली तिमाही में सभी प्रमुख श्रम बाजार संकेतकों में सुधार प्रदर्शित करता है. एक वर्ष पहले के 46.9 प्रतिशत की तुलना में जुलाई-सितम्बर, 2022 में श्रम सहभागिता दर में 47.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि के दौरान श्रमिक-जनसंख्या अनुपात 42.3 प्रतिशत से बढ़कर 44.5 प्रतिशत हो गया. यह रूझान रेखांकित करता है कि श्रम बाजार कोविड के प्रभाव से उभर चुके हैं.
रोजगार त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण (क्यूईएस) का मांग पक्ष
श्रम ब्यूरो द्वारा संचालित क्यूईएस 9 प्रमुख क्षेत्रों अर्थात विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्तरां, आईटी/बीपीओ तथा वित्तीय सेवाओं में 10 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को कवर करता है. अभी तक वित्त वर्ष 2022 की 4 तिमाहियों को कवर करते हुए क्यूईएस के 4 दौरों के परिणाम जारी किए जा चुके हैं. क्यूईएस (जनवरी से मार्च 2022) के चौथे दौर के अनुसार 9 चुने हुए क्षेत्रों में अनुमानित कुल रोजगार 3.2 करोड़ था जो क्यूईएस (अप्रैल से जून 2021) के पहले दौर से अनुमानित रोजगार की तुलना में लगभग 10 लाख अधिक है. वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही से श्रमिकों के अनुमानों में वृद्धि बढ़ते डिजीटलीकरण तथा सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के पुनरोत्थान के कारण आईटी/बीपीओ (17.6 लाख), स्वास्थ्य (7.8 लाख) तथा शिक्षा (1.7 लाख) जैसे क्षेत्रों में बढ़ते रोजगार से प्रेरित थी। जहां तक रोजगार का सवाल है, वित्त वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में कुल श्रमबल में 86.4 प्रतिशत के हिस्से के साथ नियमित कर्मचारियों की सभी क्षेत्रों के श्रमिकों में बहुतायत थी. इसके अतिरिक्त क्यूईएस की चौथी तिमाही में रोजगार प्राप्त कुल लोगों में से 98.0 प्रतिशत कर्मचारी थे जबकि 1.9 प्रतिशत स्वरोजगार से जुड़े थे. जेंडर के लिहाज से कुल अनुमानित कर्मचारियों की 31.8 प्रतिशत महिलाएं हैं तथा 68.2 प्रतिशत पुरूष हैं. कवर किए गए क्षेत्रों में विनिर्माण में श्रमिकों की सबसे अधिक संख्या है.
उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) 2019-20
नवीनतम एएसआई वित्त वर्ष 2020 के अनुसार, संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार ने, प्रति फैक्ट्री रोजगार में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी करते हुए समय के साथ निरंतर वृद्धि का रूझान जारी रखा है. रोजगार के हिस्से के लिहाज से (जुड़े हुए कुल व्यक्तियों), खाद्य उत्पाद उद्योग (11.1 प्रतिशत), सबसे बड़ा नियोक्ता रहा जिसके बाद पहने जाने वाले परिधान (7.6 प्रतिशत), मूलभूत धातु (7.3 प्रतिशत) और मोटर वाहन, ट्रेलर तथा सेमी ट्रेलर (6.5 प्रतिशत) का स्थान रहा. राज्यवार तमिलनाडु में फैक्ट्री में कार्यरत व्यक्तियों की सर्वाधिक संख्या (26.6 लाख) रही, जिसके बाद गुजरात (20.7 लाख), महाराष्ट्र (20.4 लाख), उत्तर प्रदेश (11.3 लाख), कर्नाटक (10.8 लाख) के स्थान रहे.
पिछले कुछ समय से 100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले बड़ी फैक्ट्रियों की दिशा में एक स्पष्ट रूझान रहा है, छोटी फैक्ट्रियों की व्यापक रूप से स्थिर संख्या की तुलना में इनकी संख्या वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2020 तक 12.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वित्त वर्ष 2017 और 2020 के बीच बड़ी फैक्ट्रियों में कार्यरत कुल व्यक्तियों की संख्या 13.7 प्रतिशत बढ़ी जबकि छोटी फैक्ट्रियों में यह संख्या 4.6 प्रतिशत थी. इसके परिणामस्वरूप, फैक्ट्रियों की कुल संख्या में बड़ी फैक्ट्रियों का हिस्सा वित्त वर्ष 2017 के 18 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 19.8 प्रतिशत हो गई तथा कार्यरत कुल व्यक्तियों में उनका हिस्सा वित्त वर्ष 2017 के 75.8 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 77.3 प्रतिशत हो गई. इस प्रकार कार्यरत कुल व्यक्तियों के मामले में छोटी फैक्ट्रियों की तुलना में बड़ी फैक्ट्रियों (100 श्रमिकों से अधिक कार्यरत) में रोजगार बढ़ता रहा है, जिससे विनिर्माण इकाइयों में वृद्धि का संकेत मिलता है.
औपचारिक रोजगार
रोजगारपरकता में सुधार के साथ रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकता है. वित्त वर्ष 2022 के दौरान ईपीएफ धारकों की संख्या में वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 58.7 प्रतिशत वृद्धि तथा वित्त वर्ष 2019 के महामारी पूर्व वर्ष की तुलना में 55.7 प्रतिशत वृद्धि रही. वित्त वर्ष 2023 में ईपीएफओ के तहत जोड़े गए शुद्ध औसत मासिक ग्राहक अप्रैल-नवम्बर, 2021 के 8.8 लाख की तुलना में अप्रैल-नवम्बर, 2022 में 13.2 लाख तक पहुंच गए। औपचारिक क्षेत्र पेरौल वृद्धि के त्वरित परिवर्तन का कारण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, कोविड-19 रिकवरी चरण के बाद रोजगार सृजन में वृद्धि करने तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ नये रोजगार के सृजन को प्रोत्साहित करने तथा महामारी के दौरान खो चुके रोजगार की बहाली के लिए अक्तूबर, 2022 में लॉन्च की गई आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) हो सकती है.
ई-श्रम पोर्टल
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डाटा बेस के सृजन के लिए ई-श्रम पोर्टल का विकास किया है, जिसे आधार के साथ सत्यापित किया जाता है। इसमें श्रमिकों की रोजगारपरकता की अधिकत्म प्राप्ति करने तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ प्रदान करने के लिए उनके नाम, पेशा, पता, व्यवसाय का प्रकार, शैक्षणिक योग्यता और कौशल प्रकार आदि जैसे विवरणों को संकलित किया जाता है। यह प्रवासी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, गिग तथा प्लेटफार्म श्रमिकों आदि सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का अबतक का पहला राष्ट्रीय डाटा बेस है. वर्तमान में ई-श्रम पोर्टल सेवाओं के निर्बाधित सुगमीकरण के लिए एनसीएस पोर्टल तथा असीम पोर्टल के साथ लिंक किया गया है।.
31 दिसम्बर, 2022 तक, ई-श्रम पोर्टल पर कुल 28.5 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण किया जा चुका है. कुल में से महिला पंजीकरणों की संख्या 52.8 प्रतिशत थी तथा कुल पंजीकरणों में से 61.7 प्रतिशत 18-40 वर्ष के आयु समूह के थे. राज्य वार कुल पंजीकरणों में से लगभग आधे उत्तर प्रदेश (29.1 प्रतिशत), बिहार (10.0 प्रतिशत) तथा पश्चिम बंगाल (9.0 प्रतिशत) के थे. कृषि क्षेत्र श्रमिकों ने कुल पंजीकरणों में 52.4 प्रतिशत का योगदान दिया जिसके बाद स्थानीय एवं घरेलू श्रमिक (9.8 प्रतिशत) और निर्माण श्रमिक (9.1 प्रतिशत) का स्थान रहा.
जेंडर के लिहाज से कुल अनुमानित कर्मचारियों की 31.8 प्रतिशत महिलाएं हैं तथा 68.2 प्रतिशत पुरूष हैं। कवर किए गए क्षेत्रों में विनिर्माण में श्रमिकों की सबसे अधिक संख्या है.
उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) 2019-20
नवीनतम एएसआई वित्त वर्ष 2020 के अनुसार, संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार ने, प्रति फैक्ट्री रोजगार में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी करते हुए समय के साथ निरंतर वृद्धि का रूझान जारी रखा है. रोजगार के हिस्से के लिहाज से (जुड़े हुए कुल व्यक्तियों), खाद्य उत्पाद उद्योग (11.1 प्रतिशत), सबसे बड़ा नियोक्ता रहा जिसके बाद पहने जाने वाले परिधान (7.6 प्रतिशत), मूलभूत धातु (7.3 प्रतिशत) और मोटर वाहन, ट्रेलर तथा सेमी ट्रेलर (6.5 प्रतिशत) का स्थान रहा. राज्यवार तमिलनाडु में फैक्ट्री में कार्यरत व्यक्तियों की सर्वाधिक संख्या (26.6 लाख) रही, जिसके बाद गुजरात (20.7 लाख), महाराष्ट्र (20.4 लाख), उत्तर प्रदेश (11.3 लाख), कर्नाटक (10.8 लाख) के स्थान रहे.
पिछले कुछ समय से 100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले बड़ी फैक्ट्रियों की दिशा में एक स्पष्ट रूझान रहा है, छोटी फैक्ट्रियों की व्यापक रूप से स्थिर संख्या की तुलना में इनकी संख्या वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2020 तक 12.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वित्त वर्ष 2017 और 2020 के बीच बड़ी फैक्ट्रियों में कार्यरत कुल व्यक्तियों की संख्या 13.7 प्रतिशत बढ़ी जबकि छोटी फैक्ट्रियों में यह संख्या 4.6 प्रतिशत थी. इसके परिणामस्वरूप, फैक्ट्रियों की कुल संख्या में बड़ी फैक्ट्रियों का हिस्सा वित्त वर्ष 2017 के 18 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 19.8 प्रतिशत हो गई तथा कार्यरत कुल व्यक्तियों में उनका हिस्सा वित्त वर्ष 2017 के 75.8 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 77.3 प्रतिशत हो गई. इस प्रकार कार्यरत कुल व्यक्तियों के मामले में छोटी फैक्ट्रियों की तुलना में बड़ी फैक्ट्रियों (100 श्रमिकों से अधिक कार्यरत) में रोजगार बढ़ता रहा है, जिससे विनिर्माण इकाइयों में वृद्धि का संकेत मिलता है.
औपचारिक रोजगार
रोजगारपरकता में सुधार के साथ रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकता है. वित्त वर्ष 2022 के दौरान ईपीएफ धारकों की संख्या में वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 58.7 प्रतिशत वृद्धि तथा वित्त वर्ष 2019 के महामारी पूर्व वर्ष की तुलना में 55.7 प्रतिशत वृद्धि रही. वित्त वर्ष 2023 में ईपीएफओ के तहत जोड़े गए शुद्ध औसत मासिक ग्राहक अप्रैल-नवम्बर, 2021 के 8.8 लाख की तुलना में अप्रैल-नवम्बर, 2022 में 13.2 लाख तक पहुंच गए. औपचारिक क्षेत्र पेरौल वृद्धि के त्वरित परिवर्तन का कारण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, कोविड-19 रिकवरी चरण के बाद रोजगार सृजन में वृद्धि करने तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ नये रोजगार के सृजन को प्रोत्साहित करने तथा महामारी के दौरान खो चुके रोजगार की बहाली के लिए अक्तूबर, 2022 में लॉन्च की गई आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) हो सकती है.
ई-श्रम पोर्टल
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डाटा बेस के सृजन के लिए ई-श्रम पोर्टल का विकास किया है, जिसे आधार के साथ सत्यापित किया जाता है. इसमें श्रमिकों की रोजगारपरकता की अधिकत्म प्राप्ति करने तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ प्रदान करने के लिए उनके नाम, पेशा, पता, व्यवसाय का प्रकार, शैक्षणिक योग्यता और कौशल प्रकार आदि जैसे विवरणों को संकलित किया जाता है. यह प्रवासी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, गिग तथा प्लेटफार्म श्रमिकों आदि सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का अबतक का पहला राष्ट्रीय डाटा बेस है. वर्तमान में ई-श्रम पोर्टल सेवाओं के निर्बाधित सुगमीकरण के लिए एनसीएस पोर्टल तथा असीम पोर्टल के साथ लिंक किया गया है.
31 दिसम्बर, 2022 तक, ई-श्रम पोर्टल पर कुल 28.5 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण किया जा चुका है. कुल में से महिला पंजीकरणों की संख्या 52.8 प्रतिशत थी तथा कुल पंजीकरणों में से 61.7 प्रतिशत 18-40 वर्ष के आयु समूह के थे. राज्य वार कुल पंजीकरणों में से लगभग आधे उत्तर प्रदेश (29.1 प्रतिशत), बिहार (10.0 प्रतिशत) तथा पश्चिम बंगाल (9.0 प्रतिशत) के थे। कृषि क्षेत्र श्रमिकों ने कुल पंजीकरणों में 52.4 प्रतिशत का योगदान दिया जिसके बाद स्थानीय एवं घरेलू श्रमिक (9.8 प्रतिशत) और निर्माण श्रमिक (9.1 प्रतिशत) का स्थान रहा.