भोपाल: ट्रासजेंडर लेखकों ने व्यक्त की अपनी व्यथा, कहा- समाज लिंग तय करता है, प्रकृति नहीं
ट्रांसजेंडर (Photo Credits: File Photo)

ट्रांसजेंडर (Transgender) लेखकों ने शनिवार को अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए लिंग (Sex) को प्रकृति की विविधता बताया और कहा कि समाज लिंग तय करता है, प्रकृति नहीं. टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव में यहां ट्रांसजेंडर रचनाकारों पर आयोजित सत्र के दौरान इस समुदाय के कवियों लेखकों ने अपनी व्यथा और अनुभवों को साझा किया. सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार चित्रा मुद्गल ने कहा कि घर से किसी भी बच्चे को अलग नहीं किया जाना चाहिए. हमेशा यह समझना चाहिए कि मानव पहले आया, धर्म बाद में.

सत्र में विभिन्न भागीदारों ने इस बात पर भी बल दिया, "जो अप्राकृतिक है, वह भी स्वाभाविक है." मानवाधिकार कार्यकर्ता धनंजय सिंह चौहान ने इस अवसर पर कहा, "यह गलत नहीं है क्योंकि यह प्रकृति की विविधता है." उन्होंने कहा कि "समाज लिंग तय करता है, प्रकृति नहीं." उन्होंने समाज से मिले दुर्व्यवहार और अपने संघर्ष की चर्चा करते हुए कहा, "आत्मा जीती रही और मैं मरती रही."

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देश की पहली पीएचडी ट्रांसजेंडर महिला डा. मानवी बंदोपाध्याय ने कहा कि इस समुदाय के प्रति लोग उपहास की भावना रखते हैं किंतु कभी उनकी भावना के बारे में नहीं सोचते. उन्होंने कहा कि कभी इस समुदाय के लोगों के साथ आप मुस्करा कर मिलिएगा. उन्होंने इस अवसर पर अपनी कई कविताओं का पाठ किया.

प्राध्यापिका देवज्योति भट्टाचार्य ने इस अवसर पर कहा, "भगवान भी भगवान ही हैं. वह न लड़का हैं और ना लड़की."सत्र में भट्टाचार्य के साथ-साथ एलबीजीटी समुदाय की सलाहकार आलिया शेख, इस समुदाय के साथ काम करने वाली पार्थसारथी मजूमदार ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया.