तमिलनाडु: जाति-धर्म के बंधन से आजाद हुई यह महिला, सरकार ने उसे दिया 'नो कास्ट- नो रिलिजन' सर्टिफिकेट
महिला को मिला नो कास्ट-नो रिलिजन सर्टिफिकेट ( (Photo Credits: Twitter/DossRamasamy)

तमिलनाडु: चुनाव के दौरान वोट बैंक को भुनाने के लिए अक्सर राजनेता जाति-धर्म की राजनीति करते दिखाई देते हैं. देश में कोई जाति के नाम पर लड़ता है तो कोई धर्म के नाम पर, लेकिन इन सबसे परे तमिलनाडु (Tamilnadu) की एक महिला ने ऐसा काम कर दिखाया है जो शायद पूरे देश में किसी ने अब तक नहीं किया होगा. तमिलनाडु के वेल्लोर जिले (Vellore District) में रहने वाली स्नेहा (Sneha) नाम की महिला वैसे तो पेशे से एक वकील (Lawyer) है, लेकिन अब उसे आधिकारिक तौर पर 'नो कास्ट-नो रिलिजन' सर्टिफिकेट (No caste No religion Certificate) मिल गया है यानी अब यह महिला जाति-धर्म की बेड़ियों को तोड़कर आजाद हो गई है. सरकार से इस सर्टिफिकेट को पाने के बाद अब स्नेहा को किसी भी सरकारी दस्तावेज में जाति बताने या उसका प्रमाण पत्र  (Caste Certificate) लगाने की जरूरत नहीं है.

दरअसल, स्नेहा ने जाति-धर्म के इस बंधन से अलग होने के लिए लंबे समय तक लड़ाई लड़ी है और आखिरकार 5 फरवरी को उनका संघर्ष तब खत्म हुआ, जब उन्हें तिरुपत्तूर जिले के तहसीलदार टीएस सत्यमूर्ति ने नो कास्ट-नो रिलिजन प्रमाण पत्र सौंपा. सरकार की ओर से जाति और धर्म न रखने की इजाजत मिलने के बाद स्नेहा इस कदम को एक सामाजिक बदलाव मानती हैं. बता दें कि खुद स्नेहा और उनके माता-पिता हमेशा से किसी भी आवेदन पत्र में जाति व धर्म का स्थान खाली छोड़ देते थे.

स्नेहा की मानें तो वो अपने आप को सिर्फ एक भारतीय के तौर पर देखती हैं. यही वजह है कि उनके बर्थ सर्टिफिकेट से लेकर स्कूल के सभी प्रमाण पत्रों में जाति और धर्म के कॉलम छोड़कर उन पर सिर्फ भारतीय लिखा हुआ है. हालांकि स्नेहा को अक्सर किसी फॉर्म में जाति-धर्म का कॉलम खाली छोड़ने पर सेल्फ एफिडेविट लगाना पड़ता था. स्नेहा का कहना है कि जब जाति-धर्म मानने वाले लोगों को जाति प्रमाण पत्र दे दिया जाता है तो फिर जाति-धर्म न मानने वाले लोगों को प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा सकता. यह भी पढ़ें: वेलेंटाइन डे के दिन गुजरात में राहुल गांधी को महिला ने किया KISS, वीडियो वायरल

बता दें कि इस सर्टिफिकेट को पाने के लिए स्नेहा ने साल 2010 में आवेदन दिया था, लेकिन किसी भी अधिकारी ने उस पर अमल नहीं किया. आखिरकार साल 2017 में स्नेहा ने अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखना शुरू किया और तिरुपत्तूर की सब कलेक्टर बी प्रियंका पंकजम ने सबसे पहले इसे हरी झंडी दी.

गौरतलब है कि स्नेहा के परिवार में उनके माता-पिता और तीन बहनें हैं. स्नेहा के माता-पिता समेत उनकी सभी बहनें पेशे से वकील हैं. जबकि स्नेहा के पति प्रतिभा राजा पेशे से तमिल प्रोफेसर हैं. स्नेहा की तीन बच्चियां हैं और दोनों पति-पत्नी अपनी बच्चियों के भी स्कूल सर्टिफिकेट में जाति और धर्म की जगह खाली छोड़ते हैं. अब तो आधिकारिक तौर पर  स्नेहा जाति-धर्म के बंधनों से मुक्त हो गई हैं और एक भारतीय ही उनकी असली पहचान है.