बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि बच्चों की देखभाल करना एक पूर्णकालिक नौकरी है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, 'पति इस आधार पर भरण-पोषण राशि देने से इनकार नहीं कर सकता है कि वह योग्य होने के बावजूद काम करने और पैसे कमाने की इच्छुक नहीं है और पति की ओर से दिए गए भरण-पोषण पर गुजारा करना चाहती है.' जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने एक महिला द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश पर सवाल उठाया गया था, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत उसके द्वारा मांगे गए 36,000 रुपये के बजाय 18,000 रुपये की मासिक गुजारा भत्ता राशि देने का आदेश दिया गया था. HC On Love Marriage: लव मैरिज वाले रिश्ते जल्दी बिगड़ते हैं, तलाक के मामले पर हाईकोर्ट ने की टिप्पणी.
महिला ने कोर्ट को बताया कि उसका पति केनरा बैंक में मैनेजर है, वेतन के रूप में लगभग 90,000 कमाता है और वह पैसे कमाने के योग्य थी और काम कर रही थी लेकिन उसे बच्चों की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी और इसलिए उसे भरण-पोषण की आवश्यकता होगी.
अदालत ने इस मामले में कहा कि बच्चों की देखभाल करना एक पूर्णकालिक नौकरी है. यह अनगिनत जिम्मेदारियों और समय-समय पर आवश्यक खर्चों से घिरा होता है. पत्नी, एक गृहिणी के रूप में और मां, चौबीसों घंटे अथक परिश्रम करती है. पति होने के नाते प्रतिवादी को यह तर्क देते हुए नहीं देखा जा सकता है कि पत्नी आलस करती है.
कोर्ट ने कहा कि पहले बच्चे के जन्म पर पत्नी को बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया था. फिर दूसरा बच्चा पैदा हुआ और इसलिए बच्चों की देखभाल के लिए पत्नी ने पूरी तरह से नौकरी छोड़ दी. ''पति होने के नाते प्रतिवादी को यह तर्क नहीं दे सकता है कि पत्नी आराम करती है और बच्चों की देखभाल के लिए पैसे नहीं कमा रही है. कोर्ट ने कहा, प्रतिवादी-पति की ओर से दी गई ऐसी दलीलें केवल अस्वीकार करने योग्य हैं, कम से कम कहने के लिए, वे बेतुकी हैं."