नई दिल्ली 12 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट आज नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ सीएए को चुनौती देने वाली कम से कम 220 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. सीएए के खिलाफ याचिकाओं पर सबसे पहले 18 दिसंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस पर आखिरी बार 15 जून, 2021 को सुनवाई हुई. सीएए को 11 दिसंबर, 2019 को संसद ने पारित किया था, जिसके बाद पूरे देश में इसका विरोध हुआ था. यह भी पढ़ें: Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी मामले में आज आएगा फैसला, वाराणसी में धारा 144 लागू, जजमेंट से पहले पुख्ता सुरक्षा
सीएए 10 जनवरी, 2020 को लागू हुआ. केरल स्थित एक राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra), कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश (JaiRam Ramesh), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen) (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi), कांग्रेस नेता देवव्रत सैकिया, गैर सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटिजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कानून के छात्र कई अन्य लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने इस अधिनियम को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी. साल 2020 में, केरल सरकार ने भी सीएए को चुनौती देने वाला पहला राज्य बनने के लिए शीर्ष अदालत में एक मुकदमा दायर किया.
यह कानून हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने की प्रक्रिया को तेज करता है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से भाग कर भारत आए और 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में शरण ली. शीर्ष अदालत ने पहले केंद्र को नोटिस जारी किया था और केंद्र को सुने बिना कानून पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.
मार्च 2020 में, केंद्र ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपना हलफनामा दायर करते हुए कहा कि सीएए अधिनियम एक "सौम्य कानून" है जो किसी भी भारतीय नागरिक के "कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों" को प्रभावित नहीं करता है. सीएए किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है, केंद्र ने कानून को कानूनी बताते हुए कहा था कि संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन करने का कोई सवाल ही नहीं था.
याचिकाओं में तर्क दिया गया कि यह अधिनियम, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने में तेजी लाता है और धर्म आधारित भेदभाव को बढ़ावा देता है.
संशोधनों को धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन, अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), 15 (धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) और 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) सहित कई अन्य आधारों पर भी चुनौती दी गई है. साथ ही नागरिकता और संवैधानिक नैतिकता पर प्रावधान.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के तहत परिकल्पित मूल मौलिक अधिकारों पर एक "बेरहम हमला" है और "बराबर को असमान" मानता है.
2019 अधिनियम ने नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया, जो अवैध प्रवासियों को नागरिकता के योग्य बनाता है यदि वे (ए) हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित हैं, और (बी) अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हैं. यह केवल 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों पर लागू होता है. संशोधन के अनुसार, पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों को प्रावधान से छूट दी गई है.