Sardar Patel Punya Tithi 2021: सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता, बैरिस्टर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आंदोलनों का नेतृत्व किया और भारत को अखण्ड भारत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसका ताउम्र ऋणी रहेगा आजाद हिंदुस्तान. सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड में हुआ था, और 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका दुःखद निधन हुआ. आज सरदार पटेल की 71वीं पुण्य-तिथि पर बात करेंगे, अखण्ड भारत के निर्माण में उनके अहम भूमिका की, जिस वजह से उन्हें ‘लौह पटेल’ का खिताब भी मिला.
15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी चंगुल से तो आजाद हो गया था, लेकिन भारत की कुछ अंदरूनी समस्याएं उसकी अखण्ड में बाधक बन रही थीं. ये समस्याएं थीं जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद की रियासतें, क्योंकि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल द्वारा करीब 559 रियासतों को अखण्ड भारत में शामिल करने के पश्चात भी उपरोक्त तीनों रियासतें आजादी के बाद अपना अलग सरकार चलाने की जिद पर अड़ी हुई थीं. यद्यपि पटेल की थोड़ी-सी कोशिशों के बाद जूनागढ़ भारत सरकार का हिस्सा बन गया, लेकिन जम्मू कश्मीर की जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने ले ली, जबकि हैदराबाद का निजाम किसी भी कीमत में भारत में विलय के खिलाफ था. वह अपना खुद का अलग देश रखना चाहता था. यह भी पढ़े: Sardar Vallabhbhai Patel Punya Tithi: पीएम मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनकी पुण्य तिथि पर किया नमन, कहा- भारत हमेशा उनका आभारी रहेगा
क्या था आजादी पूर्व का हैदराबाद?
आजादी से पूर्व हैदराबाद पर समरकंद से आये आशफ जाह के वंशज राज कर रहे थे. मुगल बादशाह ने उन्हें इस रियासत के गवर्नर के तौर पर नियुक्त किया था. भारत की आजादी के समय हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान सरदार पटेल अखण्ड भारत का हिस्सा बनने से इंकार करते हुए कहा था कि हैदराबाद स्वतंत्र देश के रूप में ही रहेगा. कहते हैं कि उसने अपनी खुद की सेना तैयार की हुई थी. उसकी आर्मी ‘रजाकार’ के नाम से जानी जाती थी. बताया जाता है कि पटेल के अखण्ड भारत के प्रयास के खिलाफ जाते हुए निजाम मदद के लिए ब्रिटिश सरकार के पास भी गया, मगर माउंटबेटन ने इंकार कर देने के बावजूद उस्मान अली खान अपनी जिद पर अड़ा हुआ था.
क्यों कठोर होना पड़ा सरदार पटेल को?
आजादी के पहले से ही हैदराबाद में कम्युनल माहौल हालात को बद से बदतर बना रहा था. उसी दौरान कुछ मुस्लिम समुदाय ने एमआईएम के नाम से एक ग्रुप बनाया. इस ग्रुप के अध्यक्ष थे नवाब बहादुर यार जंग. इनकी मृत्यु के पश्चात नवाब बने कासिम रिजवी. कासिम की शह पर रजाकारों ने आवाज बुलंद करनी शुरु की कि उन्हें डेमोक्रेसी नहीं इस्लाम राष्ट्र चाहिए. इसके लिए उन्होंने आतंक का सहारा भी लिया. इसके लिए उन्होंने हिंदुओं को निशाना बनाना शुरु किया. इस आतंक में जब महिलाओं पर बलात्कार होने लगे, तब पटेल के सब्र का बांध टूट गया. उन्होंने तुरंत यानी 13 जून 1948 में सेना की एक टुकड़ी हैदराबाद के लिए रवाना कर दिया.
'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद पर कब्जा किया पटेल ने
सेना के हैदराबाद में प्रवेश के बाद पांच दिनों तक खूनी संघर्ष चला. सरदार पटेल के इस एक्शन को 'ऑपरेशन पोलो' का नाम दिया गया. पोलो शब्द इसलिए लिया गया था, क्योंकि हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा पोलो ग्राउंड था. भारतीय सेना के हमले से रजाकार लगभग खत्म ही हो गये. कासिम रिजवी को कैद कर लिया गया. जेल से रिहा होने के बाद वह पाकिस्तान भाग गया. इधर एमआईएम का मुखिया पेशे से वकील अब्दुल वाहिद ओवैसी को बनाया गया. पार्टी का नाम बदलकर ए.आई.एम.आई.एम. कर दिया गया.
इस तरह 'लौह पुरुष' बने सरदार पटेल!
कहते हैं कि सरदार पटेल के हैदराबाद निजाम के प्रति सख्त तेवर को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और माउंटबेटेन ने पटले को संयम से काम लेते हुए बातचीत के माध्यम से समस्या सुलझाने की सलाह दी, लेकिन गृहमंत्री सरदार पटेल ने साफ कर दिया कि हैदराबाद भारत के पेट में कैंसर बन चुका है, इसका इलाज सख्ती से और तुरंत होना जरूरी है. क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि हैदराबाद के मामले में पाकिस्तान के पेट में कुछ ज्यादा ही दर्द है.
पाकिस्तान ने ना केवल हैदराबाद मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की कोशिश की, बल्कि पुर्तगाल और हैदराबाद के बीच समझौता भी करवाने का प्रयास कर रहा था. इसलिए पटेल को नेहरू की बात तर्कसंगत नहीं लगी. उन्होंने कठोर निर्णय लेते हुए हैदराबाद पर सैनिक कार्रवाई की. परिणामस्वरूप हैदराबाद निजाम को समर्पण करना पड़ा. इस तरह पटेल के प्रयास से हैदराबाद रियासत भी अखण्ड भारत का हिस्सा बना. इस सख्त ऐक्शन के बाद ही सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ का खिताब मिला था.