Sardar Patel Jayanti 2023: ‘सरदार’ और ‘लौहपुरुष’ उपनामों से विख्यात वल्लभ भाई पटेल ने भारत की आजादी और भारत भर में बिखरे 564 रियासतों को जितनी तत्परता से अखंड भारत का हिस्सा बनाने का काम किया उसे भुलाया नहीं जा सकता. आजाद भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. सरदार पटेल की 148वीं जयंती पर आइये जानते हैं, उनके जीवन जुड़े कुछ रोचक और दिलचस्प पहलुओं के बारे में.. यह भी पढ़े: Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2022 Quotes: सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती आज, प्रियजनों संग शेयर करें उनके ये महान विचार
जन्म एवं शिक्षा
वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में नाडियाड (गुजरात) के किसान पिता झवेरभाई पटेल के घर हुआ था. माँ लाडबा देवी गृहिणी थीं. 1897 में मैट्रिक पास किया. लंदन में कानून की पढ़ाई पूरी की, और अहमदाबाद आकर वकालत करने लगे. महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रेरित होकर वह भी स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े.
गांधी विरोधी पटेल कैसे बने उनके अनुयायी?
पिता जावेरभाई 1857 की क्रांति में शामिल थे, लिहाजा वल्लभभाई के भीतर भी क्रांतिकारी जोश था. गांधीजी पर पटेल अकसर कटाक्ष करते कि गांधीजी की अहिंसा से देश कभी आजाद नहीं होगा. लेकिन चंपारण सत्याग्रह से पटेल पहली बार गांधीजी से प्रभावित हुए. गांधीजी से उनकी मुलाकात 1917 में अहमदाबाद में बॉम्बे प्रेसीडेंसी पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस में हुई. उन्होंने देखा कि गांधीजी ने अंग्रेजों के एक बिल ‘रेजुलेशन ऑफ लायल्टी’ (ब्रिटिश किंग के प्रति वफादारी) को फाड़कर फेंक दिया. पटेल गांधी से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने अपना काला कोट आग के हवाले कर तत्काल गांधीजी के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े.
क्यों कहते थे लौह पुरुष?
एक बार बचपन में वल्लभभाई की कलाई में फोड़ा हो गया था. फोड़े में पस आने से वह अंदर ही अंदर फैल रहा था, जिससे उन्हें काफी दर्द हो रहा था. डॉक्टर ने सुझाव दिया कि गर्म लोहे से फोड़े को फोड़ने के बाद ही आराम होगा. लेकिन माता-पिता ने कहा बालक वल्लभ दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकेगा. वल्लभभाई एक कमरे में गये और गर्म लोहे से फोड़े को फोड़कर डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने फोड़े से पस निकाला. तब वल्लभ को राहत मिली.
पटेल कैसे बने सरदार?
1928 में बारडोली तालुका में सूखा पड़ने से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई. अंग्रेजों ने षड़यंत्र रचकर टैक्स दर 6 से 22 प्रतिशत कर दिया, और धमकाया कि टैक्स नहीं भरने पर जमीन जब्त हो जाएगी. पटेल ने सर्वे करने के बाद एक योजना के तहत कुछ जासूस बनाए. ये गुप्तचर पटेल को बताया कि आज अमुक किसान का पट्टा लिखवाया जायेगा, पटेल उस किसान को गायब कर देते थे. इससे अंग्रेज न टैक्स वसूल पा रहे थे ना जमीन. अंततः उन्होंने टैक्स 22 से पुनः 6 प्रतिशत कर दिया. बारडोली के किसान पटेल से बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने पटेल को सरदार की उपाधि दी, जिसके नेतृत्व में उनकी जमीन बची थी.
पटेल क्यों नहीं बन सके प्रधानमंत्री?
1946 आते-आते सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद अंग्रेज कमजोर पड़ चुके थे. अंग्रेजों के सुझाव पर कांग्रेस में एक अंतरिम वर्किंग कमेटी बनाई गई. तय हुआ कि 1946 में जो अध्यक्ष बनेगा, वही आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा. अध्यक्ष पद की दावेदारी में नेहरू, कृपलानी, पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खां और राजेंद्र प्रसाद सदस्य थे. प्रांतीय कमेटी के चुनाव के बाद जब परिणाम आये तो 15 में से 12 वोट पटेल को, 2 कृपलानी को और 15वें का पता नहीं चला. नेहरू के खाते में जीरो आया. गांधीजी नेहरू को अध्यक्ष बनाना चाहते थे. उन्होंने एक चिट के जरिये पटेल को अपना नाम वापस लेने का सुझाव दिया. पटेल मान गये. गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष चुना. कहते हैं कि बाद में गांधी ने पत्रकारों को बताया कि नेहरू अध्यक्ष नहीं बनते, तो कांग्रेस टूट जाती, जिसका फायदा अंग्रेज उठाते.
सरदार पटेल की दूरदर्शिता
आजादी के बाद कश्मीर के राजा हरिसिंह कश्मीर भारत में शामिल करने से मना कर दिया. 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कबायलियों के माध्यम से कश्मीर पर हमला कर दिया. कश्मीर के लोकल मुस्लिम कबायलियों से मिल गए. इससे परेशान होकर हरिसिंह ने पटेल से संपर्क किया, पटेल ने वीपी मेनन को कश्मीर भेजा, मेनन ने हरिसिंह से कहा, आप अखंड भारत का हिस्सा बनने की बात लिखित में दे दें, मैं दो घंटे में सारे कबायलियों को कश्मीर से खदेड़ दूंगा. हरिसिंह मान गये. शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर को विशेष दर्जा की फरमाइश की. पटेल ने नेहरू की जिद पर स्वीकृत दे दी, मगर उन्होंने आर्टिकल 370 जिसे नेहरू और अब्दुल्ला ने तैयार करवाया था, में छोटा-सा बदलाव किया, कि संसद जब चाहे, राष्ट्रपति की सहमति से धारा 370 खत्म कर सकती है. अंततः मोदी सरकार ने वही किया और कश्मीर भारत का अखंड हिस्सा बन गया.
निधन
15 दिसंबर 1950 में मुंबई के बिड़ला हाउस में दिला का दौरा पड़ने से सरदार पटेल के एक युग का अंत हो गया.