नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 1991 में विस्फोट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ मरने वाले लोगों के परिजन को सोमवार को मामले में सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के खिलाफ दायर उनकी याचिका में अतिरिक्त दस्तावेज दायर करने की अनुमति दे दी. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने चार सप्ताह के बाद मामले को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया.
याचिकाकर्ता एस अब्बास और तीन अन्य की ओर से उपस्थित अधिवक्ता जी शिवबालमुरुगन ने कहा कि उनका रिट 2014 से लंबित है जब उन्होंने सात दोषियों को रिहा करने के संबंध में तत्कालीन जे जयललिता नीत सरकार के पहले फैसले को चुनौती दी थी. उन्होंने अतिरिक्त दस्तावेज दायर करने और याचिका में यह कहते हुए संशोधन की अनुमति मांगी कि तमिलनाडु सरकार ने एकबार फिर से इन दोषियों को रिहा करने का फैसला किया है. यह भी पढ़े: तमिलनाडु सरकार का फैसला, राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के लिए राज्यपाल से करेगी सिफारिश
जब शिवबालमुरुगन ने कहा कि 2014 से इस मामले के संबंध में कई आदेश दिये जाने के मद्देनजर उन्हें इसे रिकॉर्ड में डालने की आवश्यकता है. पीठ ने इसपर उन्हें अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने को कहा. 35 वर्षीय एस अब्बास उस वक्त आठ साल के थे जब लिट्टे के आत्मघाती हमलावर द्वारा किये गए विस्फोट में उनकी मां की मृत्यु हुई थी. 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में किये गए विस्फोट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु हो गई थी. यह भी पढ़े: राजीव गांधी हत्या कांड: मोदी सरकार ने SC से कहा-पूर्व पीएम राजीव गांधी के हत्यारों को नहीं कर सकते रिहा
छह सितंबर को एक अलग मामले में शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के राज्यपाल से ए जी पेरारीवलन की दया याचिका पर विचार करने को कहा था. पेरारीवलन राजीव गांधी हत्याकांड का दोषी है. केंद्र ने 10 अगस्त को शीर्ष अदालत से कहा था कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के 2014 के प्रस्ताव से सहमत नहीं है. केंद्र ने कहा था कि उनकी सजा को माफ करने से ‘गलत मिसाल’ पेश होगी और इसका अंतरराष्ट्रीय प्रभाव होगा.