नई दिल्ली, 12 जून : देश के नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है. चुनाव आयोग द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक 18 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे और 21 जुलाई को आधिकारिक तौर पर यह साफ हो जाएगा कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन बनने जा रहा है. हालांकि वर्तमान सियासी गणित को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा जिसे भी अपना उम्मीदवार घोषित करेगी वो आसानी से राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाएगा. इसलिए सभी की नजरें इस पर टिकी हुई है कि भाजपा किसे अपना उम्मीदवार बनाती है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्टाइल हमेशा से चौंकाने वाला रहा है. 2017 में भी बिहार के राजभवन से रामनाथ कोविंद को सीधे राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर मोदी ने सबको चौंका दिया था. दरअसल, पांच वर्ष पहले कोविंद का चयन कर भाजपा ने हिंदुत्व की विचारधारा के प्रचार-प्रसार की बजाय देशभर में समाज के एक खास तबके को संदेश देने का प्रयास किया. कोविंद को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने पांच वर्ष पहले जहां विपक्षी दलों की एकता में सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की तो वहीं देश के दलितों को भी एक संदेश देने की कोशिश की , जिसका लाभ भाजपा को उसके बाद के चुनावों में भी साफ-साफ मिलता नजर आया.
पांच साल बाद , 2022 में भी भाजपा के सामने वही सवाल खड़ा है कि राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनते समय पार्टी अपनी मूल विचारधारा को ज्यादा तवज्जों दे या फिर ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारे जो वर्तमान राजनीतिक गणित में भी फिट बैठता हो और जिसके सहारे देश भर के लोगों का खास संदेश दिया सके. इसलिए यह कयास लगाया जा रहा है कि आजादी के अमृत महोत्सव के इस दौरे में भाजपा एक आदिवासी को उम्मीदवार बना सकती है. भाजपा की उम्मीदवार एक आदिवासी महिला हो सकती है. हालांकि भाजपा ने इसे लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. इसलिए तमाम कयासों के बीच यह माना जा रहा है कि भाजपा इस बार भी एक चौंकाने वाले नाम के साथ सामने आ सकती है क्योंकि मोदी-शाह की जोड़ी हमेशा परंपरा से अलग हटकर राजनीतिक फैसले लेने के लिए जानी जाती है. अगले सप्ताह , 15 जून के आसपास कभी भी भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक हो सकती है, जिसके बाद पार्टी अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर सकती है. यह माना जा रहा है कि उसी बैठक में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हो सकती है क्योंकि इन दोनों उम्मीदवारो के जरिए भाजपा कई तरह के राजनीतिक संतुलन भी साधने की कोशिश करेगी. हालांकि उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के नाम की घोषणा भाजपा इस पद के लिए चुनावी तारीख की घोषणा होने के बाद ही करेगी. यह भी पढ़ें : महाराष्ट्र पुलिस ने पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी मामले में नुपुर और नवीन को तलब किया
हाल ही में 15 राज्यों से 57 राज्य सभा सीट पर हुए चुनाव में भाजपा को 3 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. इन 57 सीटों में से पहले भाजपा के पास 25 सीट थी लेकिन इस बार उसके खाते में सिर्फ 22 सीटें ही आ पाई हैं. एनडीए की बात करें तो एआईएडीएमके के 3, जेडीयू के 2 और एक निर्दलीय का आंकड़ा मिलाकर पहले एनडीए के पास इन 57 सीटों में 31 सीट थी लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा के दोनों सहयोगी दलों - एआईएडीएमके और जेडीयू को 1-1 सीट का नुकसान उठाना पड़ा है. इस तरह से राज्य सभा में भाजपा के सांसदों की संख्या में 3 की कमी हो गई है लेकिन लोक सभा में 301 सांसदों के बल पर भाजपा अभी भी विरोधी दलों की तुलना में काफी आगे है. हालांकि यह संख्या अभी भी 2017 के मुकाबले ज्यादा ही है. लोक सभा में अभी 3 सीटें खाली है और वर्तमान में संसद की कुल 540 सीटों में से भाजपा के पास 301 सासंद हैं. वहीं राज्य सभा की बात करें तो 7 मनोनीत सांसदों सहित कुल 13 सीटें अभी खाली है. उच्च सदन के 232 सांसदों में से अभी भाजपा के खाते में कुल 95 सीटें थी जो नए निर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के बाद घटकर 92 रह जाएगी. इसमें भी भी मनोनीत सांसद राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल पाएंगे.
वर्ष 2017 में हुए राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले, इस बार देश की विभिन्न विधानसभाओं में भाजपा और एनडीए के निर्वाचित विधायकों की संख्या में भी कमी दर्ज की गई है लेकिन 2017 की तुलना में लोक सभा और राज्य सभा में भाजपा सांसदों की बढ़ी संख्या और गैर-एनडीए एवं गैर-यूपीए क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उम्मीद के बल पर भाजपा का यह मानना है कि उसका उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत सकता है. भाजपा को यह उम्मीद है कि ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी एनडीए उम्मीदवार का समर्थन कर सकती है. अगर भाजपा ने किसी आदिवासी नेता को उम्मीदवार बनाया तो झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे हेमंत सोरेन जैसे कई अन्य दलों के लिए भी राजनीतिक दुविधा की स्थिति पैदा हो सकती है.
हालांकि बताया यह भी जा रहा है कि , देश के इस शीर्ष संवैधानिक पद के लिए आम सहमति बनाने की प्रक्रिया के तहत भाजपा नेता विपक्षी दलों से संपर्क स्थापित कर बातचीत भी करेंगे. लेकिन देश के वर्तमान राजनीतिक माहौल और विपक्षी दलों की तैयारियों को देखते हुए एक सर्वसम्मत उम्मीदवार की संभावना कम ही नजर आ रही है और ऐसे में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लगभग तय ही माना जा रहा है.