मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक मॉनसून से पहले मार्च से अप्रैल तक होने वाली बारिश में 27 फीसदी कमी दर्ज की गई है. मॉनसून पूर्व बारिश देश के कुछ हिस्सों में खेती के लिए काफी अहमियत रखती है. मौसम विभाग ने देश भर में एक मार्च से 24 अप्रैल के बीच 59.6 मिलीमीटर की सामान्य वर्षा के मुकाबले महज 43.3 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की है. यह दीर्घकालीन औसत (एलपीए) का 27 फीसदी कम है. एलपीए 50 साल की अवधि में दक्षिण पश्चिम मॉनसून के दौरान देश भर में हुई औसत वर्षा को कहा जाता है. सबसे अधिक 38 फीसदी कमी मौसम विभाग के उत्तरपश्चिम भाग में दर्ज की गई. इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आते हैं.
आईएमडी ने बताया कि इसके बाद 31 फीसदी कमी दक्षिणी प्रायद्वीप में दर्ज की गई जिसमें दक्षिण भारत के सभी पांच राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के अलावा गोवा एवं तटीय महाराष्ट्र आते हैं.
पूर्व एवं पूर्वोत्तर भारत में 23 फीसदी कमी दर्ज की गई. मध्य भारत एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां सामान्य से पांच प्रतिशत ज्यादा वर्षा दर्ज की गई. भारत के कई हिस्सों में मॉनसून से पहले बारिश होती है जो इन क्षेत्रों के लिए अहम है। अमूमन मार्च से मई के अंत तक रहने वाला यह समय महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह तापमान में कमी लाने में मददगार होता है.
स्काइमेट के उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन) महेश पलावत ने कहा कि बारिश में कमी की यह स्थिति भयावह लगती है क्योंकि देश के बड़े हिस्से में भीषण गर्मी पड़ रही है और 17 अप्रैल के बाद से कोई बड़ी राहत नहीं मिली है. आईएमडी के अतिरिक्त महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि मॉनसून से पहले होने वाली बारिश का एक कारण देश के कई हिस्सों में मार्च से जून के बीच पड़ने वाली भीषण गर्मी होती है.
आईएमडी के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौर ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों एवं पश्चिमी घाट में मॉनसून से पहले की बारिश फसलों की रोपाई के लिए जरूरी होती है. उन्होंने बताया कि गन्ना और कपास जैसी फसलों के लिए सिंचाई की अधिक जरूरत पड़ती हैं लेकिन उन्हें मॉनसून पूर्व बारिश की भी अतिरिक्त जरूरत होती है.