दस साल बाद भी अपने खोए हुए घर की तलाश में यजीदी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

रिहान इस्माइल जब अपने घर और अपने यजीदी समुदाय के पास लौटी तो उन्हें भरोसा था कि भविष्य अच्छा होगा. उन्होंने वर्षों कैद में रहते हुए केवल इसी पल का इंतजार किया था. एक साल बाद अब वो यहां से कहीं और चले जाना चाहती हैं.इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी जब इराक के सिंजर जिले में हिंसा कर रहे थे, तब धार्मिक अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के हजारों लोगों को मारा गया और गुलाम बना लिया गया. उसी दौरान उन्होंने इस्माइल को कैद कर लिया था. जब वे इस्माइल को इराक से सीरिया ले गए, तो उनका घर उनकी यादों में बसा रहा, एक ऐसी जगह जहां बचपन खुशियों से भरा है, एक ऐसा समुदाय जहां इतना भाईचारा है कि पड़ोसी का घर भी अपना लगता था. जब उन्हें तुर्की ले जाया गया तो, वहां उन्हें एक फोन मिला. इसी फोन से उन्होंने अपने परिवार से संपर्क किया और वहां से निकलने की योजना बनाई.

24 साल की इस्माइल पिछले साल अपने गांव हरदन वापस आई थीं. तब उन्होंने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में कहा था, "मैं दोबारा इसे छोड़कर कैसे जा सकती हूं?” हालांकि स्थिति जल्दी ही बदल गई. वह अपने पुलिस अफसर भाई, भाभी और उनके बच्चे के साथ रहती हैं. उनका घर गांव के उन गिने-चुने घर में से एक है, जो अभी भी खड़े हैं. सड़क के किनारे एक स्कूल ने उन विस्थापितों को आसरा दिया है, जिनके पास रहने की कोई जगह नहीं है.

उनके पिता और छोटी बहन अब भी लापता हैं. जबकि गांव के किनारे एक कब्रिस्तान में उनके तीन भाई, गांव के 13 दूसरे लोगों के साथ दफन हैं. उन्हें इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने मार डाला था और शवों के ढेर के साथ दफन कर दिया गया था. इस्माइल जब-जब काम से बाहर जाती है, हर बार इस जगह से गुजरना पड़ता है. वह कहती हैं, "ऐसा महसूस होता है, जैसे यहां से वहां पहुंचने में आप हजार मौतें मर रहे हों.”

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बर्बाद हो चुका घर भी आखिर घर ही है

इस्लामिक स्टेट के हमले के एक दशक बाद यजीदी समुदाय के लोग धीरे-धीरे अपने घरों की ओर लौट रहे हैं. हालांकि अपनी मातृभूमि से गहरे जुड़ाव के बावजूद कई लोगों को वहां भविष्य नजर नहीं आता. तोड़े गए घरों को फिर से बनाने के लिए पैसे नहीं है. बुनियादी ढांचा अभी भी बिखरा और बर्बाद है. हथियारबंद गुट इलाके को बांटने में लगे हैं.

अगस्त 2014 में आतंकियों ने सिंजर से हमले की शुरुआत की थी. वो इस अल्पसंख्यक धार्मिक समूह को मिटाना चाहते थे. इन लोगों को वे अधर्मी मानते थे. उन्होंने मर्दों और बच्चों को मार दिया, जबकि आरतों और लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बेच दिया. उनका धर्म परिवर्तन करा कर आतंकियों से जबरन शादी करा दी गई. कुछ लोग जो बच कर भाग सकते थे, वह भाग गए.

इस्लामिक स्टेट को इराक में हारे हुए सात साल बीत चुके हैं. इसके बावजूद अप्रैल, 2024 तक सिंजर से विस्थापित हुए तीन लाख से अधिक लोगों में से केवल 43% लोग ही वापस आए हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन के अनुसार, "डर है कि अगर यजीदी वापस नहीं लौटे, तो उनका समुदाय अपनी पहचान खो सकता है.”

हदी बाबा शेख दिवंगत यजीदी आध्यात्मिक गुरु के भाई और कार्यालय प्रबंधक हैं. उन्होंने आईएस के अत्याचारों के दौरान यह पद संभाला था. वह कहते हैं, "सिंजर यजीदी समुदाय का केंद्र है. सिंजर के बिना यजीदी समुदाय एक कैंसर रोगी के समान है, जो लगातार मर रहा है."

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यजीदी समुदाय का घर

उत्तर-पश्चिमी इराक के कोने में, सीरियाई सीमा के पास बसा यह इलाका सदियों से यजीदी समुदाय का घर रहा है. यहां के गांव सूखे मैदानी इलाकों में जहां तहां बिखरे हुए हैं. यहां एक सीमेंट कारखाना और कहीं-कहीं शराब की दुकान भी है. समतल जमीन से ऊपर उठे सिंजर पर्वत है. यह एक लंबी, संकरी पर्वतमाला है, जो यजीदी समुदाय के लिए पवित्र है. मान्यता है कि प्रलय के बाद नूह की नाव इसी पर्वत पर आकर ठहरी थी. यजीदी लोग भी आईएस के हमले से बचने के लिए भाग कर यहीं आए थे. उन्होंने अतीत में भी उत्पीड़न के दौर में यही किया था.

सिंजर शहर, जिले का केंद्र है. यहां मुख्य सड़क पर छोटी दुकानों के सामने सैनिक आराम करते हैं. एक पशु बाजार में खरीदार और विक्रेता पड़ोसी गांवों और उससे दूर से भी आते है. पुनर्निर्माण दल राख के ढेरों के बीच काम करते दिखते हैं.

बाहरी इलाकों में, तबाही के निशान जैसे टूटे-फूटे मकान, वीरान पड़े पेट्रोल पंप दिखाई देते है. यहां पानी की सप्लाई, अस्पताल, स्कूल, यहां तक कि धार्मिक स्थलों को भी दोबारा आबाद नहीं किया जा सका है. सिंजर में सुन्नी मुसलमानों का मुख्य इलाक भी मलबे में दफन पड़ा है. वहां के निवासी वापस नहीं लौट रहे हैं, क्योंकि उनके यजीदी पड़ोसी उन्हें आईएस के सहयोगी मानते हैं.

सिंजर को लेकर खींचतान

बगदाद की केंद्रीय सरकार और उत्तरी कुर्दिश का अर्ध स्वायत्त प्रशासन, सिंजर को लेकर आपस में जूझते रहते हैं. यहां दोनों ने हमेशा से एक-दूसरे के विपरीत स्थानीय सरकार का समर्थन किया है. यह विवाद अब कुर्दिश क्षेत्र में बसे शिविरों को लेकर चल रही बहस में भी नजर आता है, जहां सिंजर से भागे हुए लोगों को आश्रय मिला था. शिविर बंद होने की आशंका के चलते यजीदी लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि यहां रुकें या चले जाएं.

साल की शुरुआत में इराकी सरकार ने आदेश दिया था कि शिविरों को 30 जुलाई तक बंद कर दिया जाए. इसके अलावा निवासियों को वापस आने पर 40 लाख दिनार (लगभग 3,000 डॉलर) देने की पेशकश की गई थी. इस महीने, विस्थापितों के उपमंत्री, करीम अल-नूरी ने कहा कि सिंजर में वापसी करने में आ रही दिक्कतों का "समाधान कर दिया गया है" और विस्थापितों की वापसी "एक आधिकारिक, मानवीय और नैतिक अनिवार्यता" है. हालांकि कुर्द प्रशासन का कहना है कि वे शिविर के निवासियों को बेदखल नहीं करेंगे.

कुर्द प्रशासन के क्षेत्रीय राष्ट्रपति नेचिरवान बारजानी के सलाहकार खैरी बोजानी ने कहा, सिंजर "इंसानों के रकहने लायक नहीं है. सरकार का काम है लोगों को एक बुरे स्थान से अच्छे स्थान पर लेकर जाना, ना कि अच्छे से बुरे.”

कैंप छोड़ने को तैयार नहीं लोग

खुदैदा मुरद इस्माइल कैंप छोड़ कर जाने से इंकार करते है. वहां वह एक अस्थायी दुकान चलाते हैं, जिसमें अंडे, पैकेट वाले नूडल्स, पैसिफायर और मेहंदी बेचते है. उन्होंने कहा कि इस जगह को छोड़कर जाने का मतलब होगा अपनी रोजी-रोटी छोड़ कर जाना क्योंकि मिल रहा मुआवजा उनके घर को दोबारा बनाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर कैंप बंद भी हो जाएगा, तब भी वह इसी क्षेत्र में रहेंगे, एक घर किराए पर ले लेंगे और नौकरी ढूंढेंगे.”

हालांकि कैंप बंद करने के आदेश और पुनर्वास भत्ते से वापस लौटने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 24 जून को बरकत खलील और उनके परिवार के अन्य नौ सदस्य गद्दे, कंबल और घरेलू सामान से भरे ट्रकों के काफिले में शामिल हो गए और दोहुक, जहां वह पिछले दस वर्षों से रह रहे थे, उसे छोड़कर वापस आ गए.

अब वह सिंजर शहर में एक छोटे से किराए के घर में रहते है. उन्होंने उसके टूटे हुए दरवाजों और खिड़कियों की मरम्मत कर ली है. और वहां पौधे भी लगा रहे है. पास के गांव में उनका पुराना घर है, जो अब नष्ट हो चुका है. खलील को घर बनाने में सात वर्ष लगे थे. उन्होंने अपनी दिहाड़ी से थोड़े थोड़े पैसे बचाकर उसे बनाया था. उन्होंने बताया, "हम वहां दो महीने रहे और फिर वह (आईएस आतंकी) आए और उसे उड़ा दिया.” खलील की 25 साल की बेटी हाइफा बरकत कहती हैं, "अब यह बिलकुल नई जिंदगी है, हम यहां किसी को नहीं जानते.” वह पास के अस्पताल की फार्मेसी में काम करती हैं और परिवार में कमाने वाली अकेली सदस्य हैं.

हथियारबंद गुटों का डर

सिंजर में हथियारबंद समूहों के बीच तनाव, सुरक्षा की चिंता को बढ़ाते है. क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में इराकी सेना और कुर्दिश पेशमेर्गा बल पेट्रोलिंग करते है. इसके अलावा कई हथियारबंद गुट भी हैं जो आईएस से लड़ने के लिए आए थे लेकिन फिर वापस नहीं गए. हथियारबंद समूहों के दखल के कारण पुनर्निर्माण का काम भी मुश्किल हो जाता है. 2022 में, सिंजर में एक जापानी एनजीओ, आइवीवाई ने एक टूटे हुए स्कूल की मरम्मत का काम किया था ताकि दूसरे स्कूलों में भीड़ कम की जा सके. हालांकि जापानी अधिकारियों ने बताया कि एक हथियारबंद समूह ने उस पर कब्जा कर लिया है.

पिछले सितंबर में जब समाचार एजेंसी एपी के रिपोर्टर स्कूल का दौरा करने गए थे तो वहां पढ़ाई नहीं हो रही थी. कुछ युवा पुरुष और महिलाएं हॉल में थे. वहां किताबों की अलमारियां क्रांतिकारी ग्रंथों से भरी हुई थी. आइवीवाई ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि बिल्डिंग को खाली करवा दिया गया है. लेकिन जब एपी की टीम इस महीने दोबारा वहां गई, तो उन्हें वही युवा पुरुष मिले जो पहले वहां मिले थे. उन्होंने पत्रकारों को निकल जाने के लिए कहा.

इस महीने, निनेवेह परिषद ने सिंजर के लिए एक मेयर नियुक्त करने का निर्णय लिया लेकिन विवादों के कारण इसमें रुकावट आ रही है. मेयर उम्मीदवार, स्कूल प्रशासक और सामुदायिक कार्यकर्ता, सैदो अल-अहमदी ने कहा कि वह जरूरी सेवाओं की बहाली के लिए प्रयास करेंगे ताकि अधिक से अधिक विस्थापित लोग लौट सकें. उन्होंने कहा, "सिंजर हमेशा से यजीदी समुदाय का केंद्र रहा है और हम इसे वैसे ही बनाए रखेंगे."

हालांकि लौटकर आए लोगों में से भी अधिकतर दोबारा वापस जाने का सोच रहे हैं. रिहान इस्माइल, जिन्होंने कभी सोते जागते सिर्फ सिंजर लौटने के सपने देखे थे, अब वहां से दूर जाना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "भले ही आप कहीं चले जाएं, आप इसे भूल नहीं पाएंगे. लेकिन कम से कम हर बार आते-जाते, आपको अपने गांव को इस तरह से तबाह होते हुए नहीं देखना पड़ेगा”.

एसएम/एनआर (एपी)