भारत जैसे लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना क्यों जरूरी है?
भारत का 2024 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव रहा, जिसमें करीब 64 करोड़ लोगों ने वोट डाला.
भारत का 2024 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव रहा, जिसमें करीब 64 करोड़ लोगों ने वोट डाला. एक लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना क्यों अहम है?भारत का 2024 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव रहा, जिसमें करीब 64 करोड़ लोगों ने वोट डाला. भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और सियासी निगाह से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र . लेकिन लोकतंत्र होता क्या है? लोकतंत्र यानी लोगों का तंत्र, लोगों की मर्जी, उनकी पसंद, उनके प्रतिनिधि.
19 नवंबर, 1863 अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक भाषण में कहा था, "लोकतंत्र लोगों की सरकार है, जिसे लोग ही बनाते हैं और जो लोगों के लिए ही होती है."
19वीं सदी में मशहूर इतिहासकार लॉर्ड एक्टन ने एक पादरी को खत में लिखा था, ‘पावर टेंड्स टू करप्ट, एब्सोल्यूट पावर टेंड्स टू करप्ट एब्सोल्यूटली'. हिंदी में इस अर्थ होगा कि सत्ता-मोह आपको भ्रष्ट बना देता है और सत्ता पूरी तरह आपके हाथ में होना आपको पूरी तरह भ्रष्ट बना देता है. यह कहावत आज भी उतनी ही पुख्ता है, जितनी 19वीं सदी में रही होगी.
लोकतंत्र में क्या है सबसे जरूरी?
लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि नेता जनता द्वारा चुने जाते हैं और उसके बाद होता है विपक्ष . किसी भी लोकतंत्र के बेहतर तरीके से काम करने के लिए जरूरी है कि उसमें असहमति और नाराजगी की गुंजाइश हो और सत्तारूढ़ सरकार पर निगाह हो.
मतदान की तारीखें करीब आते हुए भारत का विपक्ष काफी कमजोर लग रहा था. कांग्रेस चुनाव प्रक्रिया में तमाम तरह की धांधलियों के आरोप लगा रही थी. देशभर से ऐसी रिपोर्ट आईं, जिनमें कहा गया कि लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब हैं. ऐसी शिकायतें मुस्लिम-बहुल इलाकों से ज्यादा आईं.
कई वीडियो भी सामने आए, जिनमें कहा गया कि मुस्लिम-बहुल इलाकों में मतदान या तो बंद हो गया या उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया. देश में पहली बार ऐसा हुआ कि एक मौजूदा मुख्यमंत्री जेल चले गए. वह भी देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री. चुनाव से कुछ महीनों पहले विपक्ष के प्रमुख नेता राहुल गांधी संसद से निलंबित कर दिए गए.
सत्ताधारी बीजेपी पर लगातार आरोप लगते रहे कि विपक्ष को दबाने के लिए जांच एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल किया गया. यहां तक कि मुख्य विपक्ष पार्टी कांग्रेस और विपक्ष के कई नेताओं के बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए थे. फिर जांच एजेंसियों से जुड़ा एक घोटाला भी सामने आया, जिसमें कहा गया कि जो लोग सरकार का साथ नहीं दे रहे थे, उन पर ईडी की कार्रवाई हुई. इस खुलासे पर देश के कई राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों की निगाहें टेढ़ी हुई थीं.
हालांकि, विपक्ष की कमजोरी के लिए पूरी तरह सत्तारूढ़ दल और सरकार को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा. भ्रष्टाचार और परिवारवाद के लिए निशाने पर लिया जाने वाला विपक्ष अपनी बात बीजेपी के जितनी सफलता से जनता तक नहीं पहुंचा पाता. बीजेपी के मुकाबले कोई एक निर्विवादित मजबूत चेहरा न होना भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के बुरे प्रदर्शन का जिम्मेदार माना जाता है.
पर विपक्ष मजबूत नहीं होगा, तो क्या होगा?
यह समझना तो आसान है कि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष कितना जरूरी है. लेकिन अगर विपक्ष मजबूत न हो, तो क्या होता है! वह भी बड़ा मसला है.
सबसे मोटी बात तो यह है कि कोई सरकार चाहे दक्षिणपंथी हो, समाजवादी हो या फिर साम्यवादी. गलतियां सभी करती हैं और करेंगी भी. पर उन गलतियों पर किसी की नजर होनी भी जरूरी है. मीडिया या न्यायालय यह काम अकेले नहीं कर सकते, इसलिए मजबूत विपक्ष आवश्यक होता है.
विपक्ष या विपक्षी पार्टियां जब मजबूत नहीं होती हैं, तो सत्ताधारी पार्टी को मनमानी करने की गुंजाइश मिलती है. इससे लोकतंत्र के बाकी तीनों धड़े- विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया कमजोर पड़ जाते हैं. ऐसे हालात में मीडिया फायदे के लिए या दबाव में एकतरफा हो जाता है और उसमें काम करने वाले लोगों को स्वतंत्रता और निष्पक्षता से काम करने में अड़चन आती है.
लोकतंत्र का अर्थ है लोगों का शासन. ऐसे में अगर सिर्फ बहुमत की आवाज ही जरूरी होती, तो विपक्ष नहीं होता. लोकतंत्र में सभी मतों और आवाजों को समान पायदान पर रखा जाता है. मजबूत विपक्ष से वे आवाजें भी बुलंद होती हैं, जो अपने उम्मीदवार को संसद तक नहीं पहुंचा पाए या सत्ता में हिस्सेदारी हासिल नहीं कर पाए.
सत्ता में एक ही पार्टी का होना या सिर्फ एक ही पार्टी का दबदबा होना इसलिए भी हानिकारक है, क्योंकि जब कोई चुनौती नहीं होगी और कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आएगी नहीं, तब तक जनता को पता ही नहीं चलेगा कि बेहतर प्रशासन की कितनी गुंजाइश है और क्या बदला जा सकता है, देश को कैसे बेहतर चलाया जा सकता है.
आजाद भारत में मजबूत विपक्ष की शुरुआत?
स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने अंग्रेजों से निजात पाने के लिए भारी कीमत चुकाई थी. वह परिदृश्य ध्यान में रखते हुए भारत में मजबूत विपक्ष का होना जरूरी ही नहीं, बल्कि लाजिमी भी है. फिर देश के विपक्षी गठबंधन इंडिया ने एनडीए को मजबूत टक्कर दी है. एग्जिट पोल में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी बढ़त दिखाई जा रही थी. इस लिहाज से विपक्ष ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है.
विपक्ष को बड़ी सफलता और उत्तर प्रदेश में मिली, जहां पिछले दो चुनावों से बीजेपी का बोलबाला है. बीजेपी राम मंदिर बनवाने का श्रेय भी लेती आई है, लेकिन फैजाबाद की ही सीट पर सपा ने बीजेपी को मात दी है.
अब तक के नतीजों और रुझानों से साफ है कि एनडीए गठबंधन सत्ता में वापसी कर सकती है, लेकिन लोकतंत्र के लिए खुशखबरी यह भी है कि विपक्ष के साथ अच्छी प्रतिद्वंद्विता और कई सीटों पर कड़ी मशक्कत के बाद ही सरकार बनेगी. किसी भी लोकतंत्र के लिए यह सुकून देने वाली खबर होगी.