हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने किसके दम पर किया ट्रंप के आगे झुकने से इनकार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, ट्रंप प्रशासन के निशाने पर है. सरकार ने यूनिवर्सिटी के आगे कई शर्तें रखीं. हार्वर्ड ने शर्तें मानने से इनकार कर दिया. हार्वर्ड को क्या नुकसान हो सकता है? आखिरकार ट्रंप चाहते क्या हैं?कैम्ब्रिज, अमेरिका के मैसाचुसेट्स राज्य का एक शहर है. अगर आप इसका नाम गूगल करें, तो सर्च वर्ड में सबसे ज्यादा पूछे गए सवालों में एक ये मिलेगा कि कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स किस लिए जाना जाता है. इस शहर की प्रसिद्धि इस मायने में अनूठी है कि ये मुख्य रूप से उच्च शिक्षा के एक बड़े केंद्र के तौर पर मशहूर है. दुनिया में ऐसे गिनती के ही कुछ शहर हैं, जिनके विश्वविख्यात होने का कारण पढ़ाई है!

दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक

यहीं कैम्ब्रिज शहर में है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, जो दुनिया के पांच बेहतरीन यूनिवर्सिटियों में शामिल है. अगर नोबेल पुरस्कारों को सफलता का एक पैमाना मानें, तो हार्वर्ड टॉप पर है. कई सूचियों (मसलन, सीईओवर्ल्ड मैगजीन) के मुताबिक, 161 विजेताओं के साथ हार्वर्ड सबसे ऊपर है.

इनमें चिकित्सा, भौतिकी, रसायन, साहित्य और अर्थशास्त्र से लेकर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी शामिल हैं. यहां तक कि 1998 में 'वेलफेयर इकोनॉमिक्स' पर अपनी रिसर्च के लिए नोबेल जीतने वाले भारत के अमर्त्य सेन भी हार्वर्ड से निकले हैं.

इतने भारी-भरकम रेज्यूमे के बावजूद हार्वर्ड के बारे अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की राय अलग है. उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को एक "मजाक" बताते हुए कहा कि यह "नफरत और मूर्खता सिखाता है."

पिछले कुछ दिनों से ट्रंप ने हार्वर्ड के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. उनका कहना है कि हार्वर्ड को केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला फंड बंद कर दिया जाना चाहिए. इसी क्रम में 14 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड को दी जाने वाली 220 करोड़ डॉलर (2.2 बिलियन डॉलर) की रकम रोकने का फैसला किया.

प्रशासन का आरोप है कि यूनिवर्सिटी ने छात्रों के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन किया. अमेरिका के सिविल राइट्स ऐक्ट 1964 का "टाइटल सिक्स" नस्ल, त्वचा के रंग या राष्ट्रीयता के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव पर रोक लगाता है. इसकी परिधि में ऐसे कार्यक्रम या गतिविधियां आती हैं, जिन्हें संघीय वित्तीय सहायता मिलती है. यूनिवर्सिटी भी इसकी जद में आते हैं. यानी, अगर कोई यूनिवर्सिटी या कॉलेज सिविल राइट्स का उल्लंघन करते हुए पाया जाए, तो वह केंद्र से मिलने वाले वित्तीय अनुदान का पात्र नहीं रहेगा.

हार्वर्ड पर किन अधिकारों के उल्लंघन का आरोप?

इस संबंध में प्रशासन ने 11 अप्रैल को हार्वर्ड को एक चिट्ठी भेजी, जो यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलेन गार्बर को संबोधित थी. इसमें केंद्र सरकार से मिलने वाले आर्थिक अनुदान का जिक्र करते आरोप लगाया गया, "हालिया सालों में हार्वर्ड, बौद्धिक और नागरिक अधिकार दोनों तरह की स्थितियों में अपेक्षाएं पूरी करने में नाकाम रहा."

इसी पत्र में कई प्रावधान या शर्तें रखी गईं, जिन्हें केंद्र सरकार के साथ यूनिवर्सिटी के आर्थिक संबंध को जारी रखने का आधार बताया गया. ये शर्तें, कई तरह के कथित सुधारों की शक्ल में थीं. मसलन, अंतरराष्ट्रीय दाखिलों में सुधार.

इसके तहत हार्वर्ड को दूसरे देशों के छात्रों की भर्ती और दाखिले की प्रक्रिया में अपेक्षित सुधार के लिए कहा गया. इन सुधारों से अपेक्षा है कि अमेरिकी मूल्यों या सिद्धांतों में भरोसा ना रखने वाले, आतंकवाद का समर्थन करने वाले या यहूदी विरोधी छात्रों को दाखिला नहीं मिलेगा. सुधार लागू करने की समयसीमा अगस्त 2025 बताई गई.

"छात्रों में अनुशासन और जवाबदेही" तय करने के लिए भी विस्तृत सुधार करने की अनुशंसा की गई. आरोप लगाया जा रहा है कि प्रशासन दरअसल अनुशासन की आड़ में आलोचनाओं और छात्र प्रदर्शनों पर अंकुश लगाना चाहता है.

हार्वर्ड ने क्या जवाब दिया?

14 अप्रैल को दिए गए अपने जवाब में हार्वर्ड ने प्रशासन की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया. जवाबी पत्र को यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर पोस्ट किया गया. दो पन्नों के इस पत्र में लिखा था, "यूनिवर्सिटी अपनी आजादी नहीं सौंपेगा या अपने संवैधानिक अधिकार नहीं छोड़ेगा. ना तो हार्वर्ड, ना ही कोई और निजी विश्वविद्यालय इस बात की अनुमति दे सकता है कि केंद्र सरकार उसपर हावी हो जाए. इसीलिए हार्वर्ड सरकार की शर्तों को मंजूर नहीं करेगा."

विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि उसने क्या किया है, इस बारे में कोई भी बातचीत करने के लिए वह तैयार है. हालांकि, वह वर्तमान प्रशासन या किसी भी और प्रशासन की ऐसी मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं है, जो कानूनी अधिकारों के दायरे से बाहर जाती हो.

हार्वर्ड अकेला शैक्षणिक संस्थान नहीं है, जिसपर वर्तमान प्रशासन ने सख्ती दिखाई हो. पिछले साल अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में फलस्तीन समर्थक प्रदर्शन हुए थे. सत्ता में आने के बाद ट्रंप प्रशासन की यहूदी-विरोधी टास्कफोर्स ने कई विश्वविद्यालयों को समीक्षा के लिए चिह्नित किया. कोलंबिया यूनिवर्सिटी फलस्तीन समर्थक प्रदर्शनों के केंद्र में थी. उसकी भी फंडिंग काटी गई. इसके बाद कोलंबिया ट्रंप प्रशासन की कई मांगों को मानने के लिए राजी हो गया.

हार्वर्ड और कोलंबिया, दोनों ही "आईवी लीग" का हिस्सा हैं. यह आठ निजी विश्वविद्यालयों का एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक समूह है. इसमें शामिल दूसरे विश्वविद्यालय हैं: ब्राउन, कॉर्नेल, डार्टमाउथ, प्रिंसटन, यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया और येल.

शैक्षणिक संस्थानों को टैक्स में छूट का क्या नियम?

ट्रेजरी विभाग के अंतर्गत आने वाला 'इंटरनल रेवेन्यू सर्विस' (आईआरएस) अमेरिका में टैक्स जमा करने का विभाग है. टैक्स प्रावधानों में नियम संख्या 501 (सी) (3) के तहत कई तरह की संस्थाओं को टैक्स में छूट दी जाती है. जैसे कि परोपकार, धार्मिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक कामकाज से जुड़ी संस्थाएं.

इसी प्रावधान के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थानों को "टैक्स-एक्जेम्प्ट स्टेटस" मिलता है. यानी, यह दर्जा पाने वाले संस्थानों को आयकर नहीं देना पड़ता. राज्य सरकारें भी ऐसी छूट देती हैं. मसलन, हार्वर्ड को इस छूट के कारण मैसाचूसेट्स राज्य में भी इनकम टैक्स नहीं देना पड़ता.

ट्रंप प्रशासन ने आईआरएस से कहा है कि वह हार्वर्ड का "टैक्स-एक्जेम्प्ट" दर्जा खत्म करे. ऐसा होने पर हार्वर्ड को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा. पहले ही केंद्रीय सरकार से मिलने वाले उसके फंड को रोका जा चुका है. हालांकि, हार्वर्ड के पास इस फैसले को चुनौती देने का अधिकार होगा. अमेरिकी अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने शिकागो स्कूल ऑफ लॉ में कानून के प्रोफेसर सैम ब्रूनसन से इस बारे में बात की. प्रोफेसर ब्रूनसन ने बताया कि हार्वर्ड का "टैक्स-एक्जेम्प्ट स्टेटस" खत्म करने की कोशिश नाकाम हो सकती है.

बतौर राष्ट्रपति ट्रंप सीधे यह दर्जा नहीं छीन सकते हैं. यह आईआरएस के अधिकार क्षेत्र में आता है. कॉर्नेल लॉ स्कूल की वेबसाइट के मुताबिक, आईआरएस के किसी अफसर या कर्मचारी से किसी भी खास टैक्सपेयर का ऑडिट करने या रोकने, या जांच करने के लिए कहना गैरकानूनी है.

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति समेत शासन के वरिष्ठ लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी ऐसा नहीं कर सकते. इसके उल्लंघन पर 5,000 डॉलर तक का जुर्माना या अधिकतम पांच साल तक की कैद, या फिर दोनों हो सकता है. मौजूदा संदर्भ में अमेरिकी मीडिया में भी इस नियम का प्रमुखता से हवाला दिया जा रहा है.

हार्वर्ड को मिल रहा है कई विश्वविद्यालयों से समर्थन

हार्वर्ड बनाम ट्रंप प्रशासन के बीच चल रही रस्साकशी में होमलैंड सिक्यॉरिटी विभाग भी दाखिल हो चुका है. विभाग ने हार्वर्ड से कुछ विदेशी छात्रों के रिकॉर्ड मांगे हैं. आरोप है कि संबंधित छात्र गैरकानूनी और हिंसक गतिविधियों में शामिल थे.

रिकॉर्ड ना देने पर हार्वर्ड का सर्टिफिकेशन खत्म करने की चेतावनी दी गई है. 'स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम' (एसईवीपी) नाम के इस सर्टिफिकेशन के कारण अमेरिकी विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला दे पाते हैं.

ट्रंप प्रशासन ने रद्द किया भारतीय पीएचडी स्टूडेंट का वीजा

हार्वर्ड को कई बड़े विश्वविद्यालयों से समर्थन मिल रहा है. पहले सरकार की कई मांगों को मान चुकी कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भी बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि वो ऐसे किसी भी समझौते को खारिज करते हैं, जिसमें सरकार तय करे कि क्या पढ़ाना है, क्या रिसर्च करनी है, किसे नौकरी देनी है. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने भी बयान जारी कर कहा, "प्रिंसटन, हार्वर्ड के साथ है."

डेमोक्रैटिक पार्टी के भी कई नेताओं ने हार्वर्ड का समर्थन किया. इनमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी शामिल है. उन्होंने लिखा, "हार्वर्ड ने उच्च शिक्षा के बाकी संस्थानों के लिए मिसाल रखी है. उम्मीद करिए कि बाकी संस्थान भी इसका पालन करें."

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