भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद देश उनके अप्रतिम योगदान को याद कर रहा है. डॉ. सिंह ने राजनीति और नीतियों के जरिए भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपनी सादगी और बुद्धिमत्ता के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. सिंह का कार्यकाल देश सेवा और विकास की दिशा में अद्वितीय रहा है.
आर्थिक उदारीकरण के शिल्पकार
1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था और विदेशी मुद्रा भंडार दो सप्ताह के आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं था, तब प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री के रूप में डॉ. सिंह ने क्रांतिकारी आर्थिक सुधारों की शुरुआत की.
उन्होंने मुद्रा का अवमूल्यन, आयात शुल्क में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण जैसे साहसिक कदम उठाए. इन सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और इसे वैश्विक बाजार के लिए खोल दिया.
अपने पहले बजट भाषण में उनकी ऐतिहासिक घोषणा, "दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है," भारत के आर्थिक बदलाव का प्रतीक बन गई.
अनिच्छुक लेकिन दृढ़ नेतृत्व
2004 में कांग्रेस पार्टी की जीत के बाद, सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से इंकार करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किया. उनका कार्यकाल 2004 से 2009 तक 8% की औसत जीडीपी वृद्धि दर से चिह्नित था.
हालांकि, आलोचकों ने उन्हें "रिमोट कंट्रोल" प्रधानमंत्री कहा, लेकिन डॉ. सिंह ने अपने काम के जरिए सबका ध्यान आकर्षित किया. भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कोई प्रश्न नहीं उठा.
अधिकार और समावेशन के प्रति प्रतिबद्धता
डॉ. सिंह के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कानून बनाए गए, जैसे:
सूचना का अधिकार (2005): इसने नागरिकों को सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने का सशक्त अधिकार दिया.
ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA): 100 दिनों के रोजगार की गारंटी ने ग्रामीण गरीबी को कम करने में मदद की.
शिक्षा का अधिकार (2009): 6 से 14 साल के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा ने स्कूल ड्रॉपआउट दर को कम किया.
आधार परियोजना: यह विश्व की सबसे बड़ी बायोमेट्रिक आईडी परियोजना बनी, जिसने कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया.
ऐतिहासिक माफी और सुलह
2005 में, डॉ. सिंह ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए संसद में माफी मांगी. उन्होंने इन घटनाओं को “राष्ट्रवाद की अवधारणा का खंडन” करार देते हुए सिख समुदाय और पूरे देश से माफी मांगी. यह उनकी साम्प्रदायिक एकता और राष्ट्रीय एकजुटता के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण था.
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता
विदेश नीति में डॉ. सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता थी. भारी राजनीतिक विरोध के बावजूद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु तकनीक तक पहुंच बनाए. इस समझौते ने भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दी.
एक दूरदर्शी नेता की विरासत
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान न केवल नीतियों और राजनीति तक सीमित रहा, बल्कि यह एक समावेशी विकास, पारदर्शिता और वैश्विक सहभागिता की परिभाषा है. अपने कार्यकाल की आलोचनाओं के बावजूद, उन्होंने हमेशा देशहित को प्राथमिकता दी. जैसा कि उन्होंने कहा था, “मुझे विश्वास है कि इतिहास मेरे साथ वर्तमान मीडिया और विपक्ष से ज्यादा न्याय करेगा.”
भारत उनके अभाव में शोकित है, लेकिन उनके योगदान से प्रेरित होकर आगे बढ़ रहा है. उनकी शख्सियत और उनके कार्यों की गूंज हमेशा हमारे बीच बनी रहेगी.