महाराष्ट्र की सियासत में पिछले एक सप्ताह के दौरान जो कुछ भी हुआ वह सूबे के मतदाताओं के लिए नया था. महाराष्ट्र में सियासत इस तरह करवट लेगी ये किसी ने कभी भी सोचा नहीं था. मतदाताओं ने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी की अजित पवार बीजेपी के साथ जाकर शपथ लेंगे. इस पूरे घटनाक्रम में एक बार फिर चाणक्य बनकर उभरे शरद पवार जिन्होंने अपनी सियासी सूझबूझ से देवेंद्र फडणवीस की बाजी को पलट दिया और अपने भतीजे अजित पवार की भी घर वापसी कराई. सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने सभी सूत्र अपने हाथो में लिए और बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर दिया.
लोकसभा सीटों के अनुसार दूसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र में शनिवार की सुबह चौकाने वाली रही. शनिवार सुबह जैसे ही लोगों ने अपना टीवी सेट खोला तो उन्हें पता चला कि सूबे में फिर एक बार फड़नवीस सीएम की कुर्सी पर विराजमान हो गए हैं और उन्हें एनसीपी ने समर्थन दिया और अजित पवार उप मुख्यमंत्री बन गए. इस खबर को देखकर सभी सकते में आ गए. शुरुआत में ऐसा लगा कि अजित पवार को अपने चाचा का समर्थन हासिल है. मगर ऐसा नही था, उन्होंने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी. आइये जानते हैं कि शरद पवार ने ये बाजी कैसे पलटी.
ट्वीट और प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर स्थिति की साफ:
जैसे ही फड़नवीस और अजित पवार के शपथ की खबर आई एनसीपी सुप्रीमों ने पहले ट्वीट कर साफ किया कि ये पार्टी की भूमिका नही है और फिर उद्धव ठाकरे के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे प्रदेश को बताया कि उनकी पार्टी, शिवसेना और कांग्रेस साथ है. इस प्रेस वार्ता में वे 3 विधायकों को भी सामने लाए जो शपथ ग्रहण समारोह के दौरान राज भवन में मौजूद थे. इन विधायकों ने बताया कि कैसे धोखे से उन्हें शपत ग्रहण में बुलाया गया था.
यह भी पढ़े: उद्धव ठाकरे बनेंगे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री, जानिए मातोश्री से वर्षा तक का उनका सफर
इस प्रेस वार्ता में उन्होंने ये भी साफ कहा कि जो भी विधायक बगावत करेगा उस पर दल बदलू कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. कार्रवाई के बाद विधायकों को फिर चुनाव लड़ना होगा और उनके खिलाफ कांग्रेस-एनसीपी-कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेगी और हराने की पूरी कोशिश करेगी.
उदयनराजे की हार:
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के साथ सतारा में लोकसभा का उपचुनाव भी हुआ था. ये उप चुनाव वहां के सांसद उदयनराजे भोसले के पाला बदलने की वजह से हुआ था. ये चुनाव पवार के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव बन गया था और उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंकर उदयन राजे को मात दी. यदि कोई विधायक बगावत करता तो शायद उसका हाल भी ऐसा ही होता.
अजित पवार को कतरे पंख:
शरद पवार ने पार्टी के आला नेताओं के साथ बैठक कर अजित पवार को वीधायक दल के नेता के पद से हटा दिया. प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल को ये जिम्मेदारी दी गई. इससे अजित पवार का व्हीप देने का अधिकार भी खत्म हो गया. जो विधायक बगावत करने का सोच भी रहे होंगे वो भी इस फैसले से डर गए होंगे.
बाकी विधायकों वापस लाये:
सियासत के धुरंदर माने जाने वाले शरद पवार ने अपने सभी नॉट रिचेबल विधायकों से संपर्क किया और अपने पाले में ले आए. इसमें उन्होंने शिवसेना और कांग्रेस दोनों की मदद ली. बगावत ना हो इसलिए सभी को फाइव स्टार होटल में रखा.
धनंजय मुंडे का साथ आना:
अजित पवार के लिए ये सबसे बड़ा झटका था. धनंजय मुंडे का चाचा शरद के साथ खड़ा होना. वे अजित पवार के सबसे करीबी माने जाते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि मुंडे को बीजेपी से एनसीपी में लाने में उनकी अहम भूमिका रही थी.
विधायकों की परेड:
इस बात की जानकारी नही है कि तीनों पार्टियों की परेड कराने का आईडिया किसका था मगर इसी के बाद बीजेपी को लगा होगा कि उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है. इससे प्रदेश की जनता में ये भी मैसेज गया कि विधायकों का समर्थन इन तीन पार्टियों के पास है.
सुप्रीम कोर्ट में जाना:
अदालत का फैसला सही मायनों में गेम चेंजकर साबित हुआ. सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया और फड़नवीस के पास आंकड़े नहीं होने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
इसके अलावा शरद पवार ने हमेशा अजित पवार से संपर्क बनाए रखा. पार्टी के वरिष्ठ नेता और परिवार के लोग लगातार उनके संपर्क में थे. ऐसा भी बताया जा रहा है कि शरद पवार खुद उनसे मिले जिसके बाद शायद उनका मन बदला हो.