महाराष्ट्र: कोरोना संकट के बीच मुश्किल में सीएम उद्धव ठाकरे, विधान परिषद सदस्य पर गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी ने साधी चुप्पी
सीएम उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Photo Credit-Facebook)

देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के सबसे अधिक केस महाराष्ट्र (Maharashtra) में हैं. कोरोना संकट के बीच महाराष्ट्र में राजनीति संकट भी आता दिख रहा है. उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) पर सत्ता का संकट गहराता जा रहा है. दरअसल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनीत सदस्य के रूप में विधान परिषद (Legislative Council) भेजने के मुद्दे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है. उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव 10 दिन से राजभवन में लंबित है, लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं आया है.

मुख्यमंत्री को मनोनीत सदस्य के रूप में विधान परिषद भेजने के मुद्दे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अभी तक खामोश हैं. राज्यपाल की खामोशी से सीएम ठाकरे की टेंशन बढती जा रही है. अगर 40 दिन के अंदर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए निर्वाचित या मनोनीत नहीं किया जाता है तो उनका मुख्यमंत्री पद अपने आप चला जाएगा, अगर ऐसा हुआ तो कोरोना संकट के बीच महाराष्ट्र में राजनीति संकट भी आ जाएगा. यह भी पढ़ें- लॉकडाउन: महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला, मेडिकल टेस्ट के बाद प्रवासी गन्ना मजदूर जा सकते हैं अपने गांव. 

ऐसे में राज्य सरकार की नजरें राजभवन के फैसले पर टिकी हैं. राज्यपाल की चुप्पी के साथ-साथ राज्य सरकार की टेंशन भी बढ़ती जा रही है. दरअसल नियम के अनुसार मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को सदन दोनों सदनों में से एक यानी विधानसभा या विधानपरिषद की सदस्यता लेना जरूरी है. अगर कोई सदस्य इन दोनों सदनों में से किसी एक सदस्यता के बगैर मंत्रिमंडल में शामिल होता है तो उसे 6 महीने के अंदर दोनों में से किसी एक सदस्यता लेनी होती है.

दरअसल नियम के अनुसार मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को दोनों सदनों में से एक (विधानसभा या विधानपरिषद) की सदस्यता लेना जरूरी है. अगर कोई सदस्य इन दोनों सदनों में से किसी एक सदस्यता के बगैर मंत्रिमंडल में शामिल होता है तो उसे 6 महीने के अंदर दोनों में से किसी एक सदस्यता लेनी होती है.

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का 6 महीने का कार्यकाल 28 मई को पूरा हो रहा है. इससे पहले उनको दोनों सदनों में से किसी एक सदस्यता लेनी होगी. अगर उद्धव ठाकरे ऐसा कर पाने में नाकाम होते हैं तो उन्हें इस्तीफा देना होगा. 24 अप्रैल को विधानपरिषद की 9 सीटें खाली हो रही थीं और इन्हीं में से किसी एक से उद्धव ठाकरे को चुनकर आना था लेकिन कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से चुनाव आयोग ने इस इलेक्शन को टाल दिया है.