लोकसभा चुनाव 2024: ये हैं इस बार के सबसे युवा सांसद
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं. सबसे अधिक युवा आबादी वाले देश ने इस बार 30 साल से कम उम्र के सात सांसदों को चुना है.18वीं लोकसभा के चुनावी नतीजों के आधार पर कह सकते हैं कि इस बार संसद में पिछली लोकसभा के मुकाबले युवा चेहरे अधिक नजर आएंगे. नई संसद में तीस साल से कम उम्र के सात सांसद होंगे.
इसमें से चार सांसद तो महज 25 साल के हैं. खास बात यह है कि इन सात युवा सांसदों में से चार महिलाएं हैं, जो अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से आती हैं.
कांग्रेस के तीन युवा चेहरे पहुंचेंगे संसद
कांग्रेस की 26 वर्षीया नेता संजना जाटव ने राजस्थान की भरतपुर सीट से जीत दर्ज की है. उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी रामस्वरूप कोली को 51,983 वोटों से शिकस्त दी. संजना दलित समुदाय से हैं. जीत दर्ज करने के बाद वह राजस्थानी लोकगीत पर नाचते हुए जश्न मनाती नजर आईं. वह अब तक की सबसे युवा दलित महिला सांसदों में से एक हैं.
कांग्रेस की ही प्रत्याशी प्रियंका सिंह जरकीहोली कर्नाटक की अनारक्षित सीट चिकोडी से जीती हैं. वह अब तक की सबसे युवा महिला आदिवासी सांसद हैं. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार अन्नासाहब शंकर जोले को 90,834 वोटों से हराया. उनके पिता सतीश जरकीहोली भी कर्नाटक में कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे हैं.
कर्नाटक की ही बीदर सीट ने संसद को एक और युवा चेहरा दिया है. 26 साल के सागर ईश्वर खांद्रे ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था. वह राज्य में कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले सबसे युवा उम्मीदवार रहे. उन्हें बीजेपी के अपने प्रतिद्वंद्वी भगवंत खुबा से 1,28,875 अधिक वोट मिले.
केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री खुबा दो बार सांसद रह चुके हैं. ऐसे में सागर खंड्रे के विजेता बनने को बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, सागर भी राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता ईश्वर खांद्रे फिलहाल कांग्रेस सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री के पद पर हैं. उनके दादा भीमन्ना खांद्रे भी कांग्रेस का पुराना चेहरा रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के ‘जेनजी' सांसद
समाजवादी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ रहे तीन युवा चेहरे अब सांसद बनकर अपने-अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करेंगे. यूपी की कौशांबी सीट से पुष्पेंद्र सरोज ने जीत दर्ज की है. उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार विनोद कुमार सोनकर को 1,03,944 वोटों से हराया है. सोनकर इसी सीट से दो बार सांसद रह चुके हैं. सरोज 25 साल के हैं और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज के बेटे हैं.
मछलीशहर सीट से जीतने वाली प्रिया सरोज भी महज 25 साल की हैं. उन्होंने बीजेपी के मौजूदा सांसद भोलानाथ को 35,850 वोटों से हराया. प्रिया के पिता तूफानी सरोज तीन बार सांसद रह चुके हैं.
यूपी की कैराना सीट से सपा की उम्मीदवार इकरा चौधरी ने 5,28,013 वोट हासिल किए. उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार और सांसद प्रदीप कुमार को 69,116 वोटों से हराया. 29 साल की इकरा के पिता चौधरी मुनव्वर हसन भी सपा से सांसद थे. 2008 में एक कार हादसे में उनका निधन हो गया था.
इस चुनाव में एसपी ने यूपी में कुल 37 सीटें जीती हैं. यह किसी लोकसभा चुनाव में सपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है.
बिहार की सबसे युवा सांसद बनीं शांभवी
लोक जनशक्ति पार्टी की टिकट पर 25 वर्षीया शांभवी चौधरी ने समस्तीपुर सीट से जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सुन्नी हजारी को 1,87,251 से हराया. शांभवी के पिता अशोक चौधरी जेडीयू नेता हैं. वह कांग्रेस छोड़कर जेडीयू में शामिल हुए थे.
कितनी युवा हुई भारतीय संसद
17वीं लोकसभा में केवल 12 फीसदी सांसद ही 40 साल से कम उम्र के थे. पिछली लोकसभा की औसत उम्र 54 साल थी. तब बीजू जनता दल से 25 वर्षीय चंद्राणी मुर्मू सबसे युवा सांसद बनी थीं. यहां तक कि 2019 में गठित मोदी कैबिनेट की औसत उम्र भी 60 साल थी.
भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है. यहां देश की आधी से अधिक आबादी की उम्र 30 साल से कम है. 18वीं लोकसभा में युवा सांसदों की संख्या जरूर बढ़ी है, लेकिन देश में युवाओं की आबादी को देखते हुए इसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता.
भारत में लोकसभा चुनाव के लिए 25 साल और राज्यसभा के लिए 30 साल की उम्र निर्धारित है. हालांकि, पिछले साल एक संसदीय समिति ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की तय उम्र 25 से घटाकर 18 साल करने की सिफारिश की थी.
कानून और कार्मिक संबंधी समिति का मानना था कि ऐसा करने से युवाओं को लोकतंत्र का हिस्सा बनने का समान अवसर मिलेगा. समिति ने अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए कहा था कि युवा जिम्मेदार और भरोसेमंद प्रतिभागी साबित हो सकते हैं.
यहां इस बात का जिक्र भी जरूरी है कि अधिकतर युवा चेहरे, जो इस बार नई संसद का हिस्सा बनने जा रहे हैं, उनका ताल्लुक राजनीतिक परिवारों से है. हालांकि, भारतीय राजनीति के संदर्भ में परिवारवाद का मुद्दा नया नहीं है.