
अमेरिका चाहता है कि ईरान यूरेनियम बिल्कुल भी संवर्धित न करें. तेहरान इसके लिए राजी नहीं है. जानिए यूरेनियम संवर्धन के नजरिए से इस बातचीत को.अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक ट्रंप प्रशासन ने यह शर्त रखी है कि अगर ईरान आर्थिक प्रतिबंधों में ढील देखना चाहता है तो उसे हर तरह का यूरेनियम संवर्धन को बंद करना होगा. इटली की राजधानी रोम में दोनों पक्षों की पांचवें राउंड की बातचीत से ठीक पहले शुक्रवार को ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागाची ने सोशल नेटवर्किंग साइट एक्स पर लिखा, "डील तक पहुंचने का रास्ता ढूंढना कोई रॉकेट साइंस नहीं है."
ईरानी विदेश मंत्री ने साफ किया कि यूरेनियम संवर्धन पर पूरी रोक का मतलब होगा, "कोई डील नहीं."
ईरान के विवादित परमाणु कार्यक्रम पर तेहरान और वॉशिंगटन के बीच जारी इस बातचीत में अमेरिकी पक्ष की अगुवाई स्टीव विटकॉफ और माइकल एंटन कर रहे हैं. विटकॉफ, ट्रंप प्रशासन में मध्य पूर्व के दूत हैं, वह कतर की राजशाही के बेहद करीबी माने जाते हैं. एंटन विदेश मंत्रालय में पॉलिसी प्लानिंग के निदेशक हैं.
हमले की धमकी के बाद बातचीत
रोम वार्ताओं में ओमान के विदेश मंत्री बदर अल बुसैयदी मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं. वॉशिंगटन और तेहरान, दोनों ओमान को तटस्थ मानते हैं और उस पर भरोसा जता चुके हैं.
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही वॉशिंगटन और तेहरान के बीच कट्टर शत्रुता है. ईरान का परमाणु कार्यक्रम ने इस आग में घी का काम करता रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप धमकी दे चुके हैं कि अगर ईरान के साथ परमाणु डील नहीं हुई तो वह तेहरान के परमाणु ठिकानों पर हमले करेंगे. इस्राएल भी ऐसी चेतावनियां दोहराता रहता है. अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, फिलहाल इस्राएल ऐसे हमलों की तैयारी कर रहा है.
अपने परमाणु ठिकानों पर मंडराते हवाई हमलों के जोखिम को देखते हुए तेहरान ने ईरानी छात्रों के एक ग्रुप को फोर्दो न्यूक्लियर साइट पर भेजा है. छात्र वहां भूमिगत संवर्धन साइट पर इंसानी चेन बनाएंगे. फोर्दो की एक पहाड़ी में भूमिगत न्यूक्लियर साइट है. घनी रिहाइशी आबादी वाले फोर्दो में हमले के जोखिम को देखते हुए सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई है.
क्या है यूरेनियम संवर्धन
यूरेनियम धरती पर मिलने वाली एक रेडियोधर्मी धातु है. रेडियोधर्मिता एक प्राकृतिक या कृत्रिम रासायनिक प्रक्रिया है. इसके तहत रेडियोधर्मी पदार्थ का अस्थिर नाभिक समय बीतने के साथ विघटित होता जाता है. विघटन के दौरान ऊर्जा पैदा होती है. साथ ही इस प्रक्रिया में अल्फा, बीटा और गामा विकिरण भी रिलीज होता है.
भारत समेत कुछ देशों में यूरेनियम के बड़े भंडार हैं. यूरेनियम का इस्तेमाल परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने और परमाणु हथियारों में किया जाता है. आम तौर पर बिजली बनाने के लिए तीन से पांच फीसदी संवर्धित यूरेनियम की जरूरत पड़ती है. ऐसे यूरेनियम को निम्न संवर्धित यूरेनियम (LEU) कहा जाता है.
मिली सेकेंडों के भीतर अथाह तापीय ऊर्जा और विकिरण रिलीज करने वाले परमाणु हथियारों के लिए उच्च संवर्धित यूरेनियम (90 फीसदी या इससे अधिक) की जरूरत पड़ती है. ऐसे यूरेनियम को HEU कहा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में निम्न संवर्धित यूरेनियम के व्यापार की मंजूरी, आम तौर पर मिल जाती है. लेकिन उच्च संवर्धित यूरेनियम की खरीद फरोख्त पर सख्त प्रतिबंध है. परमाणु हथियार बना चुके देश, यूरेनियम को खुद उच्च अनुपात में संवर्धित करना जानते हैं.
उच्च संवर्धित यूरेनियम से कितना दूर ईरान
रोम वार्ता के शुरुआती चरणों में अमेरिकी दूत विटकॉफ एक बिंदु पर यह सुझाव देते दिखे कि ईरान 3.67 फीसदी शुद्धता तक यूरेनिमय संवर्धित कर सकता है. हालांकि बाद में उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि ईरान को हर तरह का संवर्धन बंद करना ही होगा. तेहरान इस शर्त को मानने को राजी नहीं है.
अमेरिकी खुफिया एजेंसी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, "ईरान निश्चित रूप से परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में ईरान ऐसी गतिविधियां कर चुका है, जिनसे वह चाहे तो परमाणु हथियार विकसित कर सकता है."
रिपोर्ट यह भी कहती है, "इन कदमों से पहला परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी यूरेनियम को तैयार करने के लिए जरूरी समय, शायद हफ्ते भर से भी कम कर दिया है." हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके बावजूद परमाणु बम बनाने में ईरान को कई महीने लग सकते हैं.
ईरान को परमाणु डील की कितनी जरूरत
ईरान के शीर्ष नेता, अमेरिका और इस्राएल को ऐसे हमलों का "भीषण अंजाम" भुगतने की चेतावनी दे चुके हैं. कड़े पलटवार की चेतावनी के बावजूद तेहरान को परमाणु डील की सख्त जरूरत है. देश के भीतर महंगाई और हिजाब जैसे मुद्दों पर लोगों में भारी नाराजगी है. अप्रैल में ईरानी मुद्रा रियाल, इतनी गिर गई कि एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले उसकी वैल्यू 10 लाख रियाल से ज्यादा हो गई. परमाणु डील पर बातचीत शुरू होने के बाद रियाल की स्थिति कुछ सुधरी.
अगर परमाणु डील नहीं हुई, तो रियाल का और ज्यादा गिरना तय है. ऐसा हुआ तो प्रतिबंधों में जकड़े ईरान को बड़े सामाजिक असंतोष का सामना करना पड़ सकता है. इलाके में उसके प्रमुख मददगार भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं. बशर अल असद सीरिया से बेदखल हो चुके हैं और इस्राएली कार्रवाई ने हमास और हिज्बुल्लाह जैसे तेहरान समर्थित संगठनों की कमर तोड़ दी है. दूसरी तरफ ईरान के कट्टर प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ अब तक की सबसे बड़ी हथियार डील की है.
तेहरान को पता है कि डील क्या कर सकती है
ईरान के साथ 2015 में यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के पांच स्थायी सदस्यों (अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन) और यूरोपीय संघ ने परमाणु समझौता किया था. उस वक्त बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उस डील के तहत ईरान पर लगाए गए कई आर्थिक प्रतिबंध ढीले किए गए.
बदले में ईरान ने उच्च संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम का उत्पादन बंद करने का वादा किया. साथ ही तेहरान को आईएईए और अन्य देशों के पर्यवेक्षकों को नियमित रूप से अपनी न्यूक्लियर साइटों की निगरानी करने की अनुमति देनी पड़ी. डील में ईरान को नागरिक, चिकित्सकीय और औद्योगिक रिसर्च के लिए तीन परमाणु ठिकानों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई.
आर्थिक प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद ईरान हर दिन 2.1 अरब बैरल से ज्यादा तेल निर्यात करने लगा. इससे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिली. उसी दौरान यूरोपीय संघ के देशों ने भी अपने यहां जब्त की गई ईरान सरकार की करीब 100 अरब डॉलर की संपत्ति रिलीज कर दी.
लेकिन 2015 की डील के दो साल डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने. ट्रंप ने 2018 में अमेरिका को इस डील से निकाल दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम हवाला देते हुए ये फैसला किया. इसके बाद अमेरिका ने ईरान पर बैंकिंग और तेल संबंधी प्रतिबंध फिर लागू कर दिए.
प्रतिबंधों के बाद अब फिलहाल ईरान का तेल निर्यात करीब 11 लाख बैरल प्रतिदिन आंका जाता है. ईरानी तेल का मुख्य खरीदार चीन है. वहीं बैकिंग सेक्टर पर लगे प्रतिबंधों का असर ईरानी मुद्रा बाजार और अर्थव्यवस्था पर बहुत साफ ढंग से दिखाई पड़ रहा है.