5 राज्यों में मिली हार के बाद 2019 जीतने के लिए इस रणनीति पर PM मोदी को करना होगा काम, वरना राहुल मार लेंगे बाजी
पीएम मोदी और अमित शाह (Photo Credit- PTI)

विधानसभा चुनाव 2018 बीजेपी के लिए विपरीत साबित हुए. आलम यह रहा कि हिंदी बेल्ट के अपने 3 राज्यों से बीजेपी (BJP) को हाथ धोना पड़ा और सत्ता की कमान कांग्रेस (Congress) के पास चली गई. हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत 2019 पर निश्चित तौर पर असर डाल सकती है. कांग्रेस की इस जीत से बीजेपी को उनकी मजबूती का संदेश तो मिला ही है साथ ही आम चुनावों के लिए एक बड़ा प्रतिद्वंदी भी मिला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 की लहर 2019 के चुनावों में क्या रंग दिखाएगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस बचे समय में पार्टी के आला अधिकारी इसे क्या प्रारूप देते हैं.

पिछले कुछ सालों में हिंदी बेल्ट के राज्यों में जब भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की टक्कर हुई है उसमें बीजेपी ने ही बाजी मारी थी लेकिन इस बार कांग्रेस ने बीजेपी को बड़ी शिकश्त देकर अपनी वापसी की है. कांग्रेस की इस जीत में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बड़ी भूमिका रही है. 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी लगातार विधानसभा चुनाव हार रही थी. बीजेपी एक तरफ अपने 'कांग्रेस मुक्त भारत' के अभियान पर बढ़ती जा रही थी.

इस क्रम में देश की सबसे पुरानी पार्टी के हाथ से एक-एक कर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, असम, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर के कई राज्य निकलते गए. यह दौर कांग्रेस के लिए बेहद दुखद था, एक समय कांग्रेस केवल हार रही थी. पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी थी. निरंतर हार के इस दौर से पार्टी को उबारना राहुल के लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की और हारने वाली कांग्रेस को जीतने वाली पार्टी की राह पर आगे बढ़ाया. राहुल गांधी से मिली इस हार के बाद बीजेपी को अब पहले से अधिक तैयार रहना होना.

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2019 के आम चुनावों के लिए बीजेपी को इन मुद्दों पर देना होगा ध्यान

1: राहुल गांधी को बड़ा प्रतिद्वंदी समझकर बनानी होगी रणनीति

बीजेपी अबतक राहुल गांधी को कम आंकती आई है जिसका नतीजा विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें देखने को मिल गया. बीजेपी चुनाव 2019 के लिए राहुल गांधी को फेल बताकर पीएम मोदी को निर्विवाद नेता के रूप में पेश कर रही थी. अब जब कि लोकसभा चुनावों के लिए कुछ ही महीने बचे हैं तो बीजेपी को यह भलीभांति समझना होगा कि राहुल गांधी का कद राजनीति में बढ़ रहा है. राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों में बीजेपी को सत्ता से बाहर किया है. जाहिर तौर पर अब आम चुनावों में भी राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और आक्रामक दिखेगी. राहुल ने मंगलवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात के संकेत भी दे दिए और कहा कि वह राफेल और नोटबंदी जैसे मुद्दे उठाते रहेंगे. यानी राहुल को समझ में आने लगा है कि लोगों ने शायद इन मुद्दों से कनेक्ट होकर कांग्रेस की सत्ता में वापसी की राह दी है.

2: राम मंदिर मुद्दे पर अपने रवैये को साफ करना होगा.

देश की राजनीति में राम मंदिर का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है. साल 2014 के आमचुनाव में इसी मुद्दे ने बीजेपी की तरफ जनता को खींचा था. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण के लिए बड़े-बड़े दावे किए थे लेकिन 5 साल पूरे होने के बाद भी यह मसला हल नहीं हुआ. राम मंदिर को लेकर विश्व हिंदू परिषद (VHP) और संत समाज बीजेपी से नाराज है. संत समाज ने 2019 चुनाव से पहले राम मंदिर को लेकर बीजेपी को अल्टीमेट भी दिया है.

3: क्षेत्रीय दलों से बढ़ाने होंगे रिश्ते

हर राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका खास होती है. क्षेत्रीय दलों को तवज्जों न देना किसी न किसी रूप में पार्टी को भारी पड़ता ही है. तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में टीआरएस ने प्रचंड बहुमत यह इस बात का संकेत है कि देश की सियासी राजनीति में क्षेत्रीय दलों का दबदबा अभी भी बना हुआ है. केसीआर की जीत अब देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों (बीजेपी और कांग्रेस) को किस कदर पटखनी दी है उससे बीजेपी को सीख लेनी होगी. चुनाव 2019 से पहले बीजेपी के कई सहयोगी पार्टी का साथ छोड़ रहें हैं. एक तरफ बीजेपी जहां शिवेसेना के नाराजगी झेल रही हैं वहीं दूसरी ओर उपेंद्र कुशवाहा जैसे साथी भी NDA को अलविदा कह चुके हैं. NDA में यह तकरार आने वाले चुनावों को बीजेपी को जरुर नुकसान पहुंचा सकते हैं.

4: ब्रैंड मोदी से उभरकर हर नेता को पाना होगा जनता का भरोसा

पीएम मोदी की लोकप्रियता निश्चित रूप से देश के हर राजनेता से कई ऊपर है. ब्रैंड मोदी का परचम भारत के गांव-गांव से लेकर विदेशों तक है, लेकिन बीजेपी को यह समझना होगा कि उन्हें जीत के लिए निजी तौर पर भी जनता का भरोसा जीतना होगा. बीजेपी को समझना होगा कि मोदी लहर में हर बार जनता बीजेपी के नेता को नहीं चुनेगी, इसके लिए नेताओं को निजी रूप से ऊपर उठना होगा. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार इस बात का बड़ा सबूत है. 2014 के चुनाव के समय तेलंगाना में बीजेपी के पास 5 सीटें थीं, लेकिन इस बार महज एक पर जीत मिली. बीजेपी के टॉप स्टार प्रचारकों पीएम मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की रैली के बाद तेलंगाना में बीजेपी पिछले प्रदर्शन के आसपास भी नहीं रही. यह इस बात का संकेत है कि 2019 में बीजेपी केवल ब्रैंड मोदी के सहारे नहीं रह सकती.

5: बेरोजगारी और किसानों की समस्या

पिछले कुछ समय में किसानों की समस्या का मुद्दा सबसे बड़ा रहा है. इसे लेकर देश के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में किसानों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए. कांग्रेस ने लगातार इस मुद्दे को हवा दी, जिसका असर विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को साफ दिखा. 2019 चुनाव से पहले अब बीजेपी को किसानों और बेरोजगार युवाओं के लिए कुछ बड़ा कदम उठाना होगा, नहीं तो आने वाले चुनाव में भी बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

6: नेताओं को बड़बोलेपन से बचना होगा

चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं की भाषा जनता के मन में उनकी छवि बनाती है. नेताओं का बड़बोलापन अक्सर पार्टी को भारी पड़ता है. जातिवाद, धर्म पर टिप्पणी नेताओं के छवि को धुंधला कर सकती है. ऐसे में बीजेपी को समझना होगा कि उसके नेता भाषा और जनभावना के दायरे में रहकर जनता से रूबरू हों.