Atul Subhash Case: क्या सच में 'दहेज उत्पीड़न' कानून पर एक बार फिर से विचार की जरूरत है? जानिए क्या है इस पर कानून के जानकारों और राजनेताओं की राय
अतुल सुभाष (Photo Credits: X)

नई दिल्ली, 11 दिसंबर : बेंगलुरु में काम करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने केवल समाज के लिए ही सवाल नहीं छोड़े बल्कि पूरे सिस्टम को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया. दरअसल, अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले 90 मिनट का वीडियो और 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखकर मौत को अपने गले से लगा लिया. अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद अब दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. साथ ही इस दौरान जिस अदालती वेदना का जिक्र सुभाष ने किया है, उससे पूरा सिस्टम ही सवालों के घेरे में आ गया है.

अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले जो वीडियो बनाया और सुसाइड नोट लिखा उसमें अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया पर उन्हें दहेज और अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के ‘झूठे’ मामलों में फंसाने का आरोप लगाया. जिसने दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है. हालांकि, इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी कई बार टिप्पणी की जा चुकी है कि इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है. इसकी वजह से कई मासूम भी इसकी जद में आकर सजा काट रहे हैं. यह भी पढ़ें : संसद की कार्यवाही बाधित होने पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव हुए निराश, बोले राजनीतिक फुटबॉल नहीं बनना चाहिए

निकिता सिंघानिया ने तो अपने पति अतुल सुभाष और उनके परिवार के खिलाफ 9 केस दर्ज कराए थे. जिसमें से कई केस तो उसने वापस ले लिया. लेकिन, अदालतों के चक्कर काटकर हार चुके अतुल सुभाष को अंततः इससे निकलने का सही रास्ता मौत ही नजर आया. जो किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन, इस सबके बीच यह भी सच है कि अतुल सुभाष की मौत के लिए जितनी जिम्मेदारी उनकी पत्नी और ससुराल वालों की है, उससे ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी सिस्टम की है. जिस पर अतुल ने सवाल उठाए हैं.

उसने आत्महत्या से पहले लिखा भी है कि न्याय अभी बाकी है. सिस्टम का झोल देखिए दहेज वाले मामले में अतुल बेंगलुरु से, उनका छोटा भाई दिल्ली से और उनके मां-बाप बिहार से लगभग 120 बार जौनपुर कोर्ट में पेश हुए. अब जब अतुल सुभाष नहीं रहा तो उसकी मौत के बाद चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है, जिसमें उसकी पत्नी निकिता सिंघानिया, उनकी मां निशा सिंघानिया, भाई अनुराग सिंघानिया और चाचा सुशील सिंघानिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.

इस घटना को लेकर सीआरआईएसपी संस्था बेंगलुरु के प्रेसिडेंट कुमार जागीरदार ने कहा कि दहेज उत्पीड़न कानून का कैसे गलत इस्तेमाल हो रहा है, यह सरकार जानती है, ऐसा नहीं है कि सरकार यह नहीं जानती. लेकिन, यह माना जाता है कि पुरुष दोषी हैं और महिलाएं निर्दोष हैं. लेकिन, समाज में अच्छे पुरुष और बुरे पुरुष, अच्छी महिलाएं और बुरी महिलाएं होती हैं. सभी अच्छे या सभी बुरे नहीं हो सकते. यह दुर्भाग्यपूर्ण है और अब समय आ गया है कि ऐसी व्यवस्था में संशोधन किया जाए. इस पर नए सिरे से विचार की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.

अतुल के दोस्त पाटिल ने इसको लेकर कहा कि एक नजदीकी दोस्त को खो देना ऐसा है, जैसे आपकी बॉडी से किसी अंग को निकाल देना. वो बहुत ही जिंदादिल और खुश रहने वाला इंसान था. हमें तो भनक भी नहीं लगी कि वो ऐसा खौफनाक कदम उठा सकता है. जिस तरह उसने सुसाइड नोट में लिखा या जो वीडियो उसने हमलोगों के साथ शेयर किया, इससे साफ पता चलता है कि पूरा का पूरा सिस्टम फेल हो चुका है.

उन्होंने कहा कि एनसीआरबी का आंकड़ा बताता है कि हर साल 1 लाख से ज्यादा मर्द केवल पारिवारिक समस्याओं की वजह से सुसाइड करते हैं. ऐसे में सिस्टम में बदलाव की जरूरत है. कब तक आप इंतजार करते रहेंगे कि अगला अतुल सुभाष कौन होगा.

उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के लिए कानून तो है. लेकिन, हमारे लिए सिस्टम के पास कोई कानून नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि इस सिस्टम के हिसाब से पति एक एटीएम है. इस पूरे कानून को पढ़कर तो मैं बस इतना ही कहूंगा कि यह एक तरह से कानूनी आतंकवाद या कानून के संरक्षण में चल रहा उगाही का धंधा है.

अतुल सुभाष के परिचित नवीन ने इस मामले को लेकर कहा, ''यह आत्महत्या जैसा लग सकता है. लेकिन, मैं कहूंगा कि यह एक व्यवस्थित हत्या है, जो भारत के कठोर कानून के कारण भारतीय पुरुषों के द्वारा किया जा रहा है. अतुल ने अपने डेथ नोट और वीडियो में यही कहा है.''

अतुल सुभाष के एक मित्र सुरेश ने कहा, ''शुरुआत में वह मानसिक रूप से बीमार किस्म का व्यक्ति नहीं था. वह बहुत खुशमिजाज लड़का था. शुरुआत में उन पर कुछ ही मामले थे. लेकिन, धीरे-धीरे उनकी पत्नी ने उन पर 9 मामले डाल दिए. फिर वह दबाव महसूस करने लगा.''

इस मामले पर अपनी राय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी दुबे ने कहा, ''देखिए दहेज उत्पीड़न कानून जो पहले आईपीसी 498ए था. अब बीएनएस की धारा 85 और 86 में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार या उत्पीड़न के खिलाफ है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के तमाम जो फैसले आए, उसमें यह कहा गया कि महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर रही हैं. इस मामले में पति और पति के सारे रिश्तेदारों को जो वहां मौजूद नहीं हैं, उनको भी फंसाया जा रहा है. जिसकी वजह से झूठे मुकदमों का उनको सामना करना पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में टिप्पणी की थी कि जहां शादीशुदा जोड़ा रहता है, वहां अगर परिवार के अन्य सदस्य रहते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा दायर होने से पहले जांच होगी. अगर मुकदमा दायर भी हो गया तो गिरफ्तारी से पहले इसको लेकर संबद्ध संस्थाओं से मंजूरी लेनी पड़ेगी.''

अश्विनी दुबे ने आगे कहा, ''अदालत भी अब मान रही है कि जो कानून महिलाओं की रक्षा के लिए बना था, उसका अब ज्यादातर इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है. ऐसे में यह कानूनी रूप से ही सही नहीं है बल्कि इसकी वजह से परिवारों का विघटन भी हो रहा है. अब इस कानून में बदलाव की जरूरत है. अगर लिंग तटस्थ कानून (जेंडर न्यूट्रल लॉ) बनता है तो इससे यह फायदा होगा कि इसमें यह साफ हो पाएगा कि हर जगह केवल महिला ही उत्पीड़न की शिकार नहीं हो रही हैं, बल्कि पुरुष भी इसका शिकार हो रहे हैं. अगर जेंडर न्यूट्रल लॉ इसको लेकर बनाएंगे तो समानता का जो अधिकार है, उसका सही से पालन होगा. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के साथ ही कानून बनाने वालों को भी आगे आना चाहिए ताकि सबके लिए न्याय सुनिश्चित हो सके.''

सुप्रीम कोर्ट के वकील मधु मुकुल त्रिपाठी ने इस पूरी घटना और दहेज उत्पीड़न कानून को लेकर कहा, ''इस देश में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है कि बहुत सारे कानून ऐसे हैं, जिसका धड़ल्ले से दुरुपयोग किया जा रहा है. इससे भारतीय न्याय व्यवस्था भी अच्छी तरह से परिचित है. लेकिन, समझ नहीं आता कि वह ऐसे मामलों में एक पक्षीय क्यों हो जाता है? मेरा भी स्वयं का मानना है कि कई बार न्यायाधीश ऐसे मामलों में एक पक्षीय हो जाते हैं. खासकर तब जब बात महिला उत्पीड़न की आती है. ऐसी चीजों से उनको बचना चाहिए. ऐसे में न्यायाधीशों को चाहिए कि इस तरह के कानून के दुरुपयोग को रोकें. जबकि, इसी दहेज उत्पीड़न कानून का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सजा का कोई प्रावधान नहीं है, ऐसा क्यों है?''

इस घटना को लेकर भाजपा के सांसद और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शिवप्पा शेट्टार ने कहा, ''जिस तरह से अतुल सुभाष ने आत्महत्या की, वह चिंता का विषय है. मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार शादीशुदा जिंदगी में आई दरार के बाद भी उसने अपनी पत्नी और बच्चों की अधिकतम सहायता की. उसने पत्नी के बार-बार सताने के बाद पुलिस से लेकर अदालत तक सब में बात रखी और हाजिरी भी दी. लेकिन, उसे कहीं से भी कुछ बेहतर हासिल नहीं हुआ और अंततः थक हारकर उसने यह कदम उठा लिया. ऐसे में इस मामले पर राज्य सरकार को विस्तृत जांच करानी चाहिए और इसमें जो भी दोषी पाए जाएं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए. वहीं, हाईकोर्ट को भी इस मामले में संज्ञान लेकर देखना चाहिए कि सिस्टम में कहां खामी रह गई.''

भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने इस पूरे मामले पर कहा, ''यह अत्यंत ही चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. यह पहली बार नहीं है कि इस तरह से इस कानून के दुरुपयोग का मामला सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट भी इससे पहले ऐसे कई मामलों में चिंता व्यक्त कर चुका है और साथ ही कई जजमेंट में इसको लेकर कुछ सेफ गार्ड तैयार करने के लिए फैसलों पर टिप्पणी कर चुका है. इस कानून का दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है. ऐसे में इसके लिए एक जेंडर न्यूट्रल लॉ की जरूरत है और जो निचली अदालतें हैं, उन्हें भी ऐसे मामलों को बड़ी गंभीरता के साथ लेने और इसे काफी सूक्ष्मता के साथ देखने की जरूरत है. ऐसे में ऐसे कई कानूनों में अब विचार करने और उसमें बदलाव करने की जरूरत है.''

अब तो सोशल मीडिया पर भी इस तरह के कानून में बदलाव को लेकर बहस छिड़ गई है. वहीं, आम लोग भी इसको लेकर अपनी राय रख रहे हैं और सीधे तौर पर उनकी भी शिकायत यही है कि ऐसे कानून जो केवल एक पक्ष की बातों पर गौर कर फैसले के करीब तक पहुंच जाते हैं, उसमें बदलाव की जरूरत है. ऐसे कानून में बदलाव के लिए इसमें लिंग के आधार पर भेदभाव को समाप्त कर इसे सबके लिए सुलभ बनाना होगा. ताकि सबको समान रूप से इस कानून के तहत न्याय मिले और इसके जरिए स्त्री हो या पुरुष सभी न्याय प्राप्त कर सके.