सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा से यह उम्मीद की जाती है कि वह बीमाधारक के साथ वास्तविक और निष्पक्ष तरीके से व्यवहार करेगा और उसे केवल अपने मुनाफे की परवाह और पूर्ति नहीं करनी चाहिए. न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि यह बीमा कंपनी का कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे क्योंकि सद्भावना का दायित्व दोनों पर समान रूप से लागू होता है. अर्ध-बेहोशी में महिला सेक्स के लिए सहमति नहीं दे सकती, HC ने रेप केस में की टिप्पणी
इस मामले में, शिकायतकर्ता, जिसने 100 एकड़ क्षेत्र में झींगा पालन की थी, ने एक बीमा कंपनी से बीमा कवरेज प्राप्त किया था.
आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर 'व्हाइट स्पॉट डिजीज' नामक जीवाणु रोग का बड़ा प्रकोप हुआ, जिसके कारण झींगा की बड़े पैमाने पर मृत्यु हो गई. उन्होंने पॉलिसी लागू कर दी लेकिन बीमा कंपनी ने अपीलकर्ता के दावे को पूरी तरह से इस आधार पर खारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता ने पॉलिसी शर्तों का उल्लंघन किया था, क्योंकि रिकॉर्ड ठीक से और सटीक रूप से बनाए नहीं रखे गए थे. एनसीडीआरसी ने उनकी शिकायत का निपटारा करते हुए उनका कुल नुकसान 30,69,486.80 रुपये आंका. इस आदेश से असंतुष्ट शिकायतकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.
The Supreme Court observed that an insurance is expected to deal with the insured in a bonafide and fair manner and should not just care for and cater to its own profits.
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— Live Law (@LiveLawIndia) August 9, 2023
पीठ ने कहा कि बीमा कंपनी ने विशाखापत्तनम में राज्य मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत दिनांक 01.05.1995 के मृत्यु प्रमाण पत्र को आसानी से खारिज कर दिया.
अपील को स्वीकार करते हुए, अदालत ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी द्वारा अपीलकर्ता को ₹45,18,263.20 की राशि शिकायत की तारीख से वसूली की तारीख तक छह सप्ताह के भीतर 10 फिसदी की दर से साधारण ब्याज के साथ भेजी जाएगी.