नया वित्त वर्ष 2019-20 एक अप्रैल से शुरू हो गया है. यह नया वित्तीय वर्ष आम नागरिकों के लिए कई सौगाते लेकर आएगा. इस साल इनकम टैक्स में राहत मिलने के साथ-साथ इपीएफओ ट्रांसफर का झंझट भी खत्म हो जाएगा. इसके अलावा सबसे बड़ी खुशखबरी घर लेने वालों के लिए है. नए वित्त वर्ष की पहली क्रेडिट पॉलिसी गुरुवार को जारी करते हुए रेपो रेट में लगातार दूसरी बार कटौती का ऐलान किया है. आरबीआई ने ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कमी की है. इसके साथ ही रेपो रेट 6.25 प्रतिशत से गिरकर 6 प्रतिशत पर पहुंच गया है.
केंद्रीय बैंक ने फरवरी में 18 महीने के अंतराल के बाद रेपो दर में 0.25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की थी. लगातार दूसरी बार ब्याज दर में कटौती से इस चुनावी सीजन में कर्ज लेने वालों को बड़ी राहत मिल सकती है.आरबीआई का रेपो रेट अब तक 6.25 फीसदी था. वहीं बतौर गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) की अगुवाई में आरबीआई की यह दूसरी बैठक थी. शक्तिकांत दास ने बीते साल दिसंबर में पदभार संभाला था.
रेपो रेट में कमी होने का फायदा होम लोन और कार लोन की ईएमआई देने वालें करोड़ों उपभोक्ताओं को मिल सकता है. रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये 7.20 प्रतिशत की दर से जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया. बैंक इस वित्तीय वर्ष से MCLR की जगह आरबीआई द्वारा तय किए गए रेपो रेट के आधार पर लोन देंगे. इससे सभी तरह के लोन सस्ते हो सकते हैं. अलग-अलग बैंक अपने लोन की गणना अलग नियमों के आधार पर करते हैं, लेकिन अगर जिन ग्राहकों के कर्ज माजिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) बेंचमार्क से जुड़े हैं, उनके कर्ज में कमी आएगी.
बता दें कि आरबीआई के नए नियमों के बाद बैंकों को रेपो रेट कटौती का फायदा आम लोगों को देना ही होगा. ऐसे में अगर आपका होम या ऑटो लोन चल रहा है तो उसकी ईएमआई कम हो जाएगी. रेपो रेट कम होने से बैंकों को आरबीआई से सस्ती फंडिंग प्राप्त हो सकेगी, इसलिए बैंक भी अब कम ब्याज दर पर होम लोन, कार लोन सहित अन्य लोन ऑफर कर पाएंगे. इसका फायदा उन लोगों को भी मिलेगा जिनकी होम लोन या ऑटो लोन चल रही है. दरअसल, रेपो रेट कटौती के बाद बैंकों पर होम या ऑटो लोन पर ब्याज दर कम करने का दबाव बनेगा.
इससे पहले जीएसटी बैठक में किफायती दर के निर्माणाधीन मकानों पर जीएसटी दर को घटा कर एक फीसदी कर दिया था. पहले जहां अंडर कंस्ट्रक्शन फ्लैट पर 12 फीसदी टैक्स लगता था उसे घटाकर अब 5 फीसदी कर दिया गया है और जहां 8 फीसदी टैक्स अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए लगता था उसे घटाकर अब 1 फीसदी कर दिया गया है. ये फैसला 1 अप्रैल 2019 से लागू हो चुका है.