Union Budget 2020-21 Predictions: भारत की आर्थिक स्थिति पिछले तीस सालों में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. तरलता की कमी, बेरोजगारी, धीमी गति से विकास, विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट, कृषि संबंधी संकट और क्रय शक्ति में गिरावट के साथ, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है. निर्मला सीतारमण की भविष्यवाणियों और उम्मीदों पर खरा उतरने से पहले, आइए देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर नज़र डालें. सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत है, जो कि 26 तिमाहियों से कम है. इसके अलावा, दिसंबर 2019 में भारत की मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7.35 प्रतिशत हो गई, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति 14.12 प्रतिशत थी. अप्रैल-दिसंबर 2019 में ऑटो सेक्टर कउत्पादन में (-) 13.07 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई और युवाओं में बेरोजगारी की दर 22.5 प्रतिशत (15-29 वर्ष की आयु) तक बढ़ गई, जो पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक है. लगभग सभी क्षेत्रों की स्थिति ऐसी ही है.
केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा 1 फरवरी को संसद में केंद्रीय बजट 2020 पेश करते समय सभी की नजरें वित्तमंत्री सीतारमण पर होगी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट से निपटने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं. यद्यपि वित्त मंत्रालय ने बजट पहले ही तैयार कर लिया था और सपूर्ण मसौदा मुद्रण की प्रक्रिया में है.
यहां हम बता रहे हैं कि प्रत्येक क्षेत्र से क्या-क्या उम्मीदें हैं.
कृषि और खेती:
भारत एक कृषि प्रधान देश है और किसान बेहद जर्जर स्थिति में हैं, इसे देखते हुए इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है. वर्ष 2019 में भी लगातार बारिश के कारण विभिन्न राज्यों में बाढ़ के कारण फसलें नष्ट हो गयी थीं, जिसके कारण फसलों के ह्रास मूल्यों में गिरावट आई, कृषि सामानों की न्यूनतम बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों में एक उम्मीद बंधी हुई है.
कर्ज माफी, खाद्य भंडारण की पर्याप्त सुविधा और बैंकों से ऋण प्राप्त करने में आसानी इत्यादि किसानों की प्रमुख मांगे हैं. इसके अलावा, फसल में हुए नुकसान को देखते हुए क्षतिपूर्ति और उर्वरकों की दर में कमी भी किसानों की अन्य जरूरतों में शामिल है. वित्त मंत्री सीतारमण ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कृषि बजट में 78 प्रतिशत से 1.39 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की थी, जिसमें से 75,000 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री किसान योजना के लिए थे.
आयकर और जीएसटी:
यह ऐसा क्षेत्र है जिससे हर भारतीय को वित्तमंत्री से बड़ी उम्मीदें हैं. सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार आईटी स्लैब को फिर से लागू करने और करदाताओं की आसानी के लिए नए निर्माण करने पर विचार कर रही है. रिपोर्ट में संभावना व्यक्त की गयी है कि पहले 2.5 लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगेगा, 2.5 प्रतिशत से 7 लाख के बीच आय पर 5 प्रतिशत, 7 लाख रुपये से 10 लाख रुपये की आय पर 10 प्रतिशत, 10 लाख रुपये से 20 लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत का लाभ मिलेगा. 20 लाख रुपये से 10 करोड़ रुपये तक की आय वर्ग के लिए प्रस्तावित कर 30 प्रतिशत है. अगर आय 10 करोड़ रुपये से अधिक है तो सरकार 35 प्रतिशत टैक्स लगा सकती है.
जीएसटी को लेकर भी निर्माताओं और उद्योगपतियों को सरकार से बड़ी उम्मीदें है कि वित्त मंत्रालय 28 प्रतिशत स्लैब का परिवर्तन ला सकता है. और केवल तीन मौजूदा स्लैब -6, 12 और 18 प्रतिशत ही रखा जा सकता है. साथ ही, उपभोक्ता और उत्पादों को 6 प्रतिशत जीएसटी श्रेणी में लाने की भी लोगों में उम्मीदें हैं.
एफएमसीजी:
दिसंबर 2019 में खाद्य पदार्थों पर महंगाई दर 14.12 प्रतिशत और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भारतीय रिजर्व बैंक के जुलाई 2016 के बाद पहली बार 2-6 प्रतिशत लक्ष्य सीमा से अलग वित्तमंत्री को इस उम्मीद के साथ देख रहे हैं कि इस क्षेत्र के लिये भी कुछ घोषणाएं की जाएंगी.
स्वास्थ्य देखभाल:
भारत के कुल बजट का एक प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया जाता है, जो कि बहुत कम है. हालाँकि 2025 तक स्वास्थ्य सेवा खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने के वादे किए गए थे, बावजूद इसके काफी कम खर्च किया गया था. सभी के लिए सस्ती स्वास्थ्य सेवा, बेहतर चिकित्सा सुविधाएं, घरेलू स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान देना, चिकित्सा और चिकित्सा उपकरणों की कीमतों में कमी और नैदानिक परीक्षण इस क्षेत्र से कुछ अपेक्षाएं हैं.
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सीतारमण ने आयुष्मान भारत के लिए कुल 6,400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो कुल परिव्यय के 7 प्रतिशत से कम है, इस वर्ष आवंटन में बढ़ोतरी की उम्मीद है. 2018 में, तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 1,200 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में आयुष्मान भारत का कुल खर्च 2,400 करोड़ रुपये था.
शिक्षा:
शिक्षा का क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षित रहा है, इस दिशा में भारत को दीर्घकालिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है; शिक्षा क्षेत्र में इस बार बजट में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद किया जा रहा है. इससे भारत का खर्च जीडीपी के 6 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा. लेकिन, ऐसी खबरें हैं कि केंद्र सरकार आर्थिक संकट का हवाला देते हुए शिक्षा पर अपने बजट के 3,000 करोड़ रुपये की कटौती कर सकती है. पिछले साल सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के लिए 94,854 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जो वित्त वर्ष 2018-19 के लिए 83,626 करोड़ रुपये के संशोधित आवंटन से लगभग 11.3 प्रतिशत अधिक था.
आवास और रियल एस्टेट:
आवासीय खंड के विकास दर को बढ़ाने से लेकर रियल एस्टेट क्षेत्र के विकास को पुनर्जीवित करने की दिशा में सस्ते आवासों को आगे बढ़ाने, बिल्डरों, खरीदारों और निवेशकों की इच्छा भी वित्त मंत्री की सूची में है. इसके साथ ही, कर कटौती की सीमा बढ़ाने और दूसरे घरों की खरीद पर भी कुछ प्रोत्साहन दिये जानें की उम्मीद की जा रही है.
पिछले बजट 2019 में, सरकार ने मार्च 2020 तक लिए गए गृह ऋणों पर भुगतान किए गए ब्याज पर 1.50 लाख रुपये की अतिरिक्त कर कटौती का प्रस्ताव रखा था. यह भी प्रस्तावित है कि वित्त वर्ष 20-22 से 1.95 करोड़ घरों का निर्माण प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत किया जाएगा, जिसमें एलपीजी, बिजली और शौचालय जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी.
बैंकिंग और बीमा:
अगस्त 2019 में सीतारमण द्वारा घोषित चार बड़े बैंकों में 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मर्ज किये जाने के बाद, वित्तमंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 55,250 करोड़ रुपये की पूंजी लगाने की घोषणा की थी. आरबीआई ने सरकारी खजाने को बढ़ावा देने के लिए केंद्र के अनुरोध पर 1.76 लाख करोड़ रुपये सरप्लस रिजर्व में स्थानांतरित किए थे. आरबीआई द्वारा एक वर्ष के भीतर रेपो दर को 135 आधार अंकों में संशोधित करने के बावजूद, देश में अभी भी तरलता की कमी बरकरार है.
रक्षा:
1 फरवरी, 2019 को प्रस्तुत अंतरिम बजट में रक्षा बजट को 3.18 लाख करोड़ रुपये आंका गया था. यह 5 जुलाई, 2019 तक यह ज्यों का त्यों रहा. केंद्रीय बजट 2019 में किसी नये आवंटन की घोषणा नहीं की गई थी, हालांकि, इस बार सुरक्षा खतरों में वृद्धि और रक्षा उपकरणों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता के साथ, रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ घोषणा हो सकती है।
रेलवे:
कुछ साल पहले तक रेलवे को सबसे महत्वपूर्ण बजटों में देखा जाता था और इसे अलग तारीख में पेश किया जाता था, रेल बजट को 2019 के केंद्रीय बजट में मिला दिया गया था. खबरों के अनुसार, इस वर्ष रेलवे में धन का आवंटन कम कर किया गया था. जबकि कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार रेलवे आंवटन में बढ़ोतरी हो सकती है.
पिछले साल, रेलवे को 1.60 लाख करोड़ रुपये का CAPEX (पूंजीगत व्यय) मिला, जबकि पिछले वर्ष में इसे बजट में 1.48 लाख करोड़ रुपये का CAPEX मिला था। मेल/एक्सप्रेस, नॉन-एसी ट्रेनों में 2 पैसे/ प्रति किमी की बढ़ोतरी और एसी क्लासों में चार पैसे/ प्रति किमी की बढ़ोतरी के बाद लोग उम्मीद कर रहे हैं कि ऐसा ही कुछ निर्णय इस बजट में लिया जाएगा. नई ट्रेनों की घोषणा और ट्रेनों में सुधार भी सूची में है.
विनिर्माण, MSME, स्टार्टअप:
देखा जाये तो यही क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था को संचालित करते हैं और सकल घरेलू उत्पाद पर जोर देते हैं. इन क्षेत्रों में उत्पाद शुल्क, आयात/निर्यात उपकर, MUDRA के तहत आसान ऋण, जीएसटीएन के साथ टीआरडीडीएस को जोड़ने, एमएसएमई कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा, तथा अन्य वस्तुओं के साथ सामाजिक सुरक्षा पर वित्त मंत्री की नजर है. इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर के कर को 22 से 15 प्रतिशत पर लाना भी वित्त मंत्री की सूची में शामिल है.
विविध:
उपर्युक्त सभी क्षेत्रों के अलावा, ऑटोमोबाइल, सूचना प्रौद्योगिकी, रोडवेज, दूरसंचार, असंगठित श्रम और पर्यावरण आदि पर भी केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सकारात्मक कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए सरकार मौजूदा आर्थिक मंदी से कैसे निपटती है.
भारतीय बाजार में निवेशकों की आस्था को फिर से पटरी पर लाने और अर्थव्यवस्था के विकास पर 5 खरब रुपये की आवश्यकता है.