102 साल की उम्र में गणित का नोबेल जीतने वाले भारतीय-अमेरिकी सीआर राव
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सीआर राव को 102 साल की उम्र में इंटरनेशनल प्राइज इन स्टैटिस्टिक्स से सम्मानित किया जा रहा है, जिसे गणित का नोबेल कहा जाता है. डॉ राव की जिंदगी एक मिसाल है.60 साल की उम्र में जब सी आर राव अमेरिका गए तो उनकी जिंदगी की नई शुरुआत हो रही थी. 10 सितंबर 1920 को कर्नाटक में जन्मे राव को इसी महीने 102 साल की उम्र में 2023 के इंटरनेशनल प्राइज इन स्टैटिस्टिक्स से सम्मानित किया जा रहा है, जिसे गणित का नोबेल कहा जाता है. अपनी अद्भुत उपलब्धियों के लिए राव को दुनियाभर में माना जाता है. लेकिन उनकी जिंदगी के कई पहलू उन्हें विलक्षण और अतुलनीय बनाते हैं.

भारतीय मूल के अमेरिकी सीआर राव ने सांख्यिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किया है जिसने आंकड़ों को लेकर इंसान की समझ और उनके आधार पर फैसले लेने का तरीका पूरी तरह बदल दिया है. 1920 में जन्मे राव को बचपन से संख्याओं से मोहब्बत रही. मद्रास से ग्रैजुएशन करने के बाद वह कलकत्ता पढ़ने गए जहां उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन की. उसके बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिली और वह पढ़ने के लिए इंग्लैंड की केंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए.

केंब्रिज में राव ने 1948 में सांख्यिकी में डॉक्टरेट हासिल की. उनकी रिसर्च ‘सम प्रॉब्लम्स ऑफ एस्टिमेशन इन स्टैटिस्टिक्स' को अभूतपूर्व माना गया. इस ठोस जमीन पर डॉ. राव ने अपना आगे का अध्ययन किया.

पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौटे और तत्कालीन कलकत्ता के इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट में पढ़ाने लगे. वहां उन्होंने अन्य कई प्रतिभाशाली गणितज्ञों के साथ मिलकर सांख्यिकी विभाग स्थापित किया और भारत में सांख्यिकी के शोध और अध्ययन की शुरुआत की. 1968 में उन्हें भारत ने पद्मभूषण से सम्मानित किया और 2001 में पद्म विभूषण से.

छात्रों के लिए प्रेरणा

1978 में, यानी रिटायरमेंट से ठीक पहले उन्होंने भारत छोड़ा और अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया. उनके बारे में उनके एक छात्र रहे आर त्यागराजन ने भारतीय अखबार बिजनस लाइन को बताया कि आईएसआई कोलकाता में उनकी पहली ही क्लास में उन्होंने अपने 23 छात्रों से कहा कि आगे आएं ब्लैक बोर्ड पर अपने परिवार के सदस्यों के नाम लिखें. तब उन्होंने छात्रों से कहा कि अनुमान लगाएं इनमें कितनी महिलाएं होंगी और कितने पुरुष.

भारत में जन्मे वैज्ञानिक ने बनाया "आर्टिफिशियल ह्यूमन"

त्यागराजन ने बताया कि बहुत से छात्रों ने 50:50 कहा तो कुछ ने कहा देश के लैंगिक अनुपात के आधार पर 52:48 कहा. जब उन्हें गिना गया तो अनुपात था 72 पुरुष और 28 महिलाएं. उसके बाद डॉ. राव ने समझाया कि हो सकता है जिन परिवारों में महिलाएं ज्यादा हों, उन्हें क्लास में कम प्रतिनिधित्व मिला हो. ऐसा भी हो सकता है कि जिन परिवारों में सिर्फ एक लड़का हो, वे अपने बच्चे को पढ़ने के लिए कोलकाता भेजने से झिझकते हों. इस विमर्श के आधार पर उन्होंने एक सिद्धांत विकसित किया.

अपने अद्भुत योगदान के लिए डॉ राव को बड़े बड़े सम्मान मिले हैं. अमेरिका का प्रतिष्ठित नेशनल मेडल ऑफ साइंस से लेकर विल्किस मेमोरियल अवॉरक्ड, महालानोबिस मेमॉरियल मेडल और रॉयल सोसाइटी लंदन की मानद सदस्यता जैसी उपलब्धियां उनके खाते में हैं.

कभी नहीं रुके

राव के करियर के बारे में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बात है उसकी लंबाई. 102 साल की उम्र में भी वह एक सक्रिय शोधकर्ता हैं और दूसरों को प्रेरित करते हैं. फिलहाल वह अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में मानद प्रोफेसर हैं. हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह अभी भी कई शोध पत्रों पर काम कर रहे हैं और उनका रिटायर होने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है.

आईआईटी कानपुर को मिली ब्लैकहोल से जुड़ी रिसर्च में बड़ी कामयाबी

एक अन्य इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "सांख्यिकी एक ऐसा विज्ञान है जो मानव जाति के हर क्षेत्र में विकास के लिए महत्वपूर्ण है.” इसी मकसद से जीने वाले डॉ. राव ने हमेशा नई प्रतिभाओं को आगे बढ़ाया. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि एक बेहद प्रतिभाशाली छात्र सेतुरामन को एक बार आईएसआई में दाखिला मिला. लेकिन उस छात्र ने संस्थान छोड़ दिया और परिवार के गुजारे के लिए नौकरी कर ली. राव ने सेतुरामन को टेलीग्राम भेजकर कहा कि आईएसआई उन्हें शोधार्थी के रूप में नौकरी देगा और उन्हें 250 रुपये महीना मिलेंगे. यह सेतुरामन की तब की तन्ख्वाह से दोगुनी रकम थी.

लेकिन सेतुरामन के पिता इससे प्रभावित नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता था कि शोधार्थी अगर कोई नई खोज नहीं कर सका तो उसकी नौकरी जा सकती है. तब डॉ. राव ने पिता-पुत्र दोनों को अपने खर्चे पर कलकत्ता बुलाया और पिता को आईएसआई में काम करने की अहमियत समझाई. सेतुरामन एक जानेमाने सांख्यिकीशास्त्री बने और उन्होंने कई देशों में काम किया.

सांख्यिकी के क्षेत्र में राव का योगदान विस्तृत भी और विशाल भी. उन्होंने एस्टिमेशन थ्योरी से लेकर जटिल आंकड़ों के विश्लेषण तक कई ऐसी समस्याएं सुलझाई हैं, जिनसे विशेषज्ञ जूझते रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में क्रैमर-राव इनइक्वेलिटी सिद्धांत को गिना जाता है, जो गणना का सबसे सटीक तरीका उपलब्ध कराता है. वह राव-ब्लैकवेल थ्योरम के लिए भी जाना जाता है जो अनुमान लगाने का सबसे सटीक तरीका माना जाता है. इन दोनों सिद्धांतों ने सांख्यिकी की दुनिया को क्रांतिकारी रूप से बदला है.