आज के ही दिन पोखरण- परीक्षण कर भारत ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी को ठेंगा दिखाया था, जानें कैसे हुआ यह…

इन विस्फोटों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की नींद उड़ा दी, जिसने पोखरण की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अरबों रुपये खर्च कर चार सैटेलाइट लगवाए थे. भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें ठेंगा दिखाते हुए एक के बाद एक पांच विस्फोट कर दुनिया भर में जता दिया कि वह चाह ले तो कुछ भी कर सकता है.

1998 परमाणु परीक्षण (Photo Credits: PTI)

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में ‘जय जवान जय किसान’ का नारा बुलंद किया था. 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा बुलंद किया. इस नारे की पृष्ठभूमि थी, पोखरण परीक्षण. यानी इसी वर्ष 11 मई को भारत ने पोखरण में एक के बाद एक पांच सफल परमाणु परीक्षण कर, जहां भारत को दुनिया के नक्शे पर समृद्ध टेक्नालॉजी देश के तौर पर स्थापित किया, वहीं अमेरिका से लेकर रूस, चीन, जापान और फ्रांस जैसे शक्तिशाली देशों के बीच अपनी प्रभुसत्ता का प्रदर्शन किया.

इन विस्फोटों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की नींद उड़ा दी, जिसने पोखरण की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अरबों रुपये खर्च कर चार सैटेलाइट लगवाए थे. भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें ठेंगा दिखाते हुए एक के बाद एक पांच विस्फोट कर दुनिया भर में जता दिया कि वह चाह ले तो कुछ भी कर सकता है.

कैसे सुर्खियों में आया पोखरण

राजस्थान के जैसलमेर-जोधपुर मार्ग से लगभग 110 किमी दूर रेगिस्तान में एक छोटा-सा कस्बा है पोखरण. पोखरण का शाब्दिक अर्थ है पांच मृग मरीचिकाओं का संगम. इसके चारों ओर पांच बड़ी-बड़ी नमक की चट्टानें हैं. साल 1550 में इसका निर्माण राव मालदेव ने करवाया था. यहां लाल पत्थरों से निर्मित एक खूबसूरत दुर्ग है. यह स्थल कभी बाबा रामदेव के गुरुकुल के रूप में भी जाना जाता था. लेकिन पोखरण उस समय अचानक पूरी दुनिया के नक्शे पर छा गया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण में एक के बाद एक 5 परमाणु परीक्षण किये गये. वह दिन था सोमवार, 11 मई 1998.

चीनी आक्रमण के बाद चेता भारत

भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने के लिए 1945 में ही तैयारियां शुरू हो गयी थी, जब महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी थी. लेकिन इस दिशा में कार्य आगे नहीं बढ सका. 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ, जिसमें भारत को एक बड़ा भू भाग गंवाना पड़ा. 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर एशिया महाद्वीप में धौंस जमाने की कोशिश की, तब भारत सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सक्रियता बढ़ानी शुरू की.

परमाणु परीक्षण का पहला धमाका

1972 में संपूर्ण दक्षता हासिल करने के पश्चात 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भारत में परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दी. परीक्षण के लिए पोखरण के निकट का रेगिस्तानी इलाका चुना गया. अभियान का नाम ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ दिया गया. स्पष्ट था कि यह कार्य शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए किया जा रहा था.

18 मई 1974 को परीक्षण हुआ. इस धमाके भरी खबर से पूरी दुनिया हतप्रभ रह गयी. क्योंकि सुरक्षा परिषद की पांच महाशक्तियों के सामने भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था. यहां रोचक बात यह थी कि इस परमाणु परीक्षण से पूर्व किसी देश ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत ऐसा भी कुछ कर सकता है. परमाणु परीक्षण की किसी को कानों कान खबर नहीं हो, इसके लिए भारत ने दुनिया भर के जासूसों का ध्यान बंटाने के लिए जगह-जगह मिसाइलें, रॉकेट और बम दागे. इन्हीं धमाकों के बीच देश ने पहला परमाणु परीक्षण का धमाका भी कर दिया. जब तक विदेशी जासूस एलर्ट होते, भारत अपना काम कर चुका था.

24 साल बाद बाजपेयी सरकार ने किये पांच परमाणु धमाके

24 साल तक अंतरराष्ट्रीय दबाव और राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में भारत ने परमाणु कार्यक्रम में कोई उपलब्धि हासिल नहीं की. 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में भारत को बड़ी ‘परमाणु शक्ति’ बनाने का वादा किया था. प्रधानमंत्री बनने के दो माह के भीतर उन्होंने परमाणु वैज्ञानिकों को दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए. चूंकि अमेरिकी खुफिया एजेंसी को भारत की परमाणु तैयारियों की भनक 1995 में ही लग चुकी थी, लिहाजा बाजपेयी सरकार ने इस अभियान की तैयारियों को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था. अभियान के मुख्य सदस्य थे, एपीजे अब्दुल कलाम, राजगोपाल चिदंबरम. इनके साथ डॉ. अनिल काकोदकर समेत आठ वैज्ञानिकों की टीम एवं जमीनी तैयारियों में 58 इंजीनियर्स रेजीमेंट की टीम थी.

अंततः चुनावी वादे को पूरा करते हुए अटल सरकार ने भारत की परमाणु दक्षता को उच्च स्तर तक पहुंचा दिया. वह समझ रहे थे कि दुनिया को अब यह दिखाने का समय आ चुका है कि कोई भी महाशक्ति भारत को हलके से न ले. इसलिए इस अभियान का नाम ‘शक्ति’ रखा गया. इसके पश्चात 11 मई से 13 मई के बीच वैज्ञानिकों की पूरी टीम ने पोखरण में एक के बाद एक पांच डिवाइस के परीक्षण किये. और देखते ही देखते दुनिया भर में भारत की धाक जम गई. भारत सरकार ने इस परीक्षण के अगले साल से 11 मई को ‘रीसर्जेंट इंडिया डे’ मनाने का फैसला किया.

बहुत कम लोगों को यह बात पता होगी कि अमेरिका समेत कई देश भारत को परमाणु परीक्षण नहीं करने देने के लिए लामबद्ध थे. भारत की एटामिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने अरबों रूपये खर्च कर चार सैटेलाइट लगाए थे, इन सैटेलाइट के बारे में कहा जाता है कि ये भूमि पर खड़े भारतीय सैनिकों की घड़ी में हो रहे समय तक देख सकते थे, लेकिन भारत ने CIA की हर हरकतों को धता बताते हुए एक नहीं पांच-पांच परमाणु परीक्षण कर दिया.

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