Vikata Sankashti Chaturthi 2024: कठिन से कठिन कष्टों से मुक्ति के लिए ऐसे करें विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा? जानें क्यों जरूरी है व्रत कथा सुनना!
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सनातन धर्म के अनुसार हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है. माह में कुल दो चतुर्थी, शुक्ल पक्ष चतुर्थी को विनायक एवं कृष्ण पक्ष चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विकट संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. मान्यता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा-व्रत करने से जातक का हर कष्ट भगवान गणेश हर लेते हैं. इस वर्ष विकट संकष्टी चतुर्थी 21 अप्रैल 2024, शनिवार को मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, विकट संकष्टी चतुर्थी के महात्म्य, मुहूर्त, पूजा विधि एवं व्रतियों को आवश्यक रूप से सुने जाने वाले पौराणिक व्रत की कथा.

विकट संकष्टी चतुर्थी का महत्व

मान्यता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी की पूजा करने वाले जातक को विकट से विकट संकटों से मुक्ति मिलती है. विद्वान पुरोहितों का मानना है कि जिन माओं को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है, अथवा किसी के विवाह में किसी तरह की रुकावट आ रही है, या फिर किसी के दाम्पत्य जीवन में खटास अथवा दरार उत्पन्न हो गई है तो उन्हें संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा करनी चाहिए, मान्यता है कि सच्ची निष्ठा और नियमों के तहत यह पूजा करने से भगवान गणेश उसकी विकट से विकट समस्या का समाधान कर देते हैं. बता दें कि जिस घर में गणेश जी की प्रत्येक चतुर्थी को पूजा एवं व्रत रखा जाता है, उस घर-परिवार में कभी किसी तरह कष्ट नहीं आता. यह भी पढ़े :Weekly Horoscope 2024: साप्ताहिक राशिफल में जानिए, आपका पारिवारिक जीवन, आर्थिक दशा, स्वास्थ्य व कार्यक्षेत्र में आपकी स्थिति, इस सप्ताह कैसी रहेगी

विकटा संकष्टि चतुर्थी व्रत तिथि एवं चंद्र दर्शन

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 08.17 AM (27 अप्रैल 2024, शनिवार)

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्तः 08.21 AM (28 अप्रैल 2024, रविवार)

चंद्र दर्शन पर आधारित व्रत के नियमों के अनुसार विकटा संकष्टि चतुर्थी का व्रत 27 अप्रैल 2024 को रखा जाएगा.

चंद्रोदयः 10.23 PM (27 अप्रैल 2024, शनिवार)

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि

वैशाख मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब पूजा मुहूर्त के अनुसार घर के मंदिर के सामने एक चौकी रखकर उस पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाकर इस भगवान श्रीगणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. अब गंगाजल से गणेशजी को प्रतीकात्मक स्नान करवाकर धूप-दीप प्रज्वलित करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा प्रारंभ करें.

त्रयीम याया खिलबुद्धि दात्रे बुद्धि प्रदीपाय सुराधिपाय।

नित्याय सत्याय च नित्य बुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।

अब गणेश जी को कुमकुम एवं अक्षत का तिलक लगाकर दूर्वा की 21 गांठे, पान, सुपारी, लाल गुड़हल का फूल इत्यादि अर्पित करें. प्रसाद में मोदक एवं फल चढ़ाएं. इसके पश्चात गणेश चालीसा का पाठ करें, मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए व्रत-कथा अवश्य सुनें. अंत में गणेश जी की आरती उतारें. अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करते हुए उसे पूरी करने की प्रार्थना करें. रात में चंद्र-दर्शन और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत-पूजा सम्पन्न होती है.

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा

एक बार भगवान शिव किसी कार्यवश कैलाश से बाहर थे. माता पार्वती ने स्नान जाने से पूर्व हल्दी के पेस्ट से बालक का निर्माण कर उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर जीवित किया और कहा, हे मानस पुत्र मैं स्नान हेतु जा रही हूं, कोई अपरिचित आये तो उसे बाहर बैठने को कहना. थोड़ी देर बाद शिवजी वापस आ गये, लेकिन बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोका, तब शिवजी ने त्रिशूल से उसका सिर काट दिया. पार्वती जब बाहर आईं तो उन्होंने अपने मानस पुत्र को मृत देख क्रोधित हो गईं. पुत्र-वियोग में उन्होंने समस्त ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की धमकी दी. शिवजी ने पार्वतीजी को प्रसन्न करने हेतु एक हाथी के बच्चे का सिर बालक के सिर जोड़कर जीवित कर दिया. शिवजी ने बालक का नाम गणेश रखा और उन्हें किसी भी बाधाओं को दूर करनेवाले एवं प्रथम पूज्य देव होने का वरदान दिया.