
देहरादून: उत्तराखंड हाई कोर्ट में हाल ही में एक अहम मामले की सुनवाई हुई, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने इस पर एक तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा कि जब जब कपल्स बिना शादी के "बेशर्मी" से साथ रह रहे हैं, तो रजिस्ट्रेशन उनकी निजता का उल्लंघन कैसे कर रहा है?
सिनेमाघर में लंबे विज्ञापन दिखाने पर कोर्ट पहुंचा शख्स, अदालत ने PVR पर लगाया 1 लाख का जुर्माना.
चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस आलोक मेहरा की डिविजन बेंच ने कहा, "आप समाज में रह रहे हैं, किसी जंगल की गुफा में नहीं. आपके पड़ोसी और समाज पहले से ही जानते हैं कि आप साथ रह रहे हैं. ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण आपकी निजता का उल्लंघन कैसे कर सकता है?"
याचिका में क्या कहा गया?
इस मामले में अंतरधार्मिक जोड़े ने याचिका दायर कर यह तर्क दिया था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण की अनिवार्यता उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है.
कपल ने कहा, "पंजीकरण की अनिवार्यता उनके निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप है. अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए समाज में रहना पहले से ही मुश्किल होता है, ऐसे में यह नियम उनके लिए अतिरिक्त परेशानी खड़ी करेगा. कई लिव-इन रिश्ते सफल विवाह में बदलते हैं, लेकिन यह प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित करता है."
UCC और लिव-इन रिलेशनशिप
उत्तराखंड, भारत का पहला राज्य है, जिसने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू किया. इसके तहत राज्य में शादी, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप और वसीयत के पंजीकरण के लिए एक पोर्टल शुरू किया गया है.
UCC क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड एक समान नागरिक कानून है, जो विभिन्न धर्मों के रीति-रिवाजों की जगह लेकर शादी, तलाक, संपत्ति के बंटवारे और भरण-पोषण से जुड़े मामलों को नियंत्रित करेगा. यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी कि समान नागरिक संहिता लागू होते ही उत्तराखंड में शादी, रिलेशनशिप, संपत्ति, बहुविवाह जैसी कई चीजें पहले जैसी नहीं रह गईं हैं. इस कानून के लागू होने से शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो गया है. इसके साथ ही बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथा बंद हो जाएगी.
लिव-इन के लिए अनिवार्य रजिस्ट्रेशन क्यों?
सरकार का कहना है कि यह प्रावधान अवैध रिश्तों और महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए लाया गया है. लेकिन कई लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं.
कोर्ट इस मामले में 1 अप्रैल को अन्य याचिकाओं के साथ सुनवाई करेगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या UCC के तहत लिव-इन रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता बनी रहेगी या इसमें कोई बदलाव किया जाएगा.