पृथ्वी का निर्माण कब और कैसे हुआ यह तो कोई नहीं जानता है. लेकिन माना जाता है कि इससे पहले जो जिव यहां रहते थे उनका विनाश किसी प्रलय के कारण ही हुआ है. शायद यही कारण है कि आज भी उनका अवशेष धरती के भीतर दबे मिल जाते हैं. धर्म ग्रंथो की माने तो एक दौर भी आएगा जब पृथ्वी पूरी तरह से विनाश की कगार पर पहुंच जायेगा. इस पर रहने वाले सभी सजीवों का नाश हो जाएगा. इसकी शुरुवात शायद होने लगी है. दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों के क्षेत्र हिमालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक दो-तिहाई ग्लेशियर इस सदी के अंत तक पिघलकर खत्म हो जाएंगे. पूरी तरह से हिंदू-कुश पर्वतश्रंख्ला को ध्यान में रखकर तैयार की गई है. जिसके कारण चीन और भारत समेत 8 देशों की नदियों का जल प्रवाह प्रभावित होगा. जिसका असर इन देशों में रहने वाली आबादी और कृषि पर इसका दुष्परिणाम पड़ेगा. ग्लेशियर पिघलने के कारण नदियों में जलस्तर बढ़ जाएगा और पहाड़ अपने जगहों से खिसकेंगे और भूस्खलन शुरू हो जाएगा.
हिदू कुश हिमालय एसेसमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, यदि ग्लोबल वॉमिर्ग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाली पेरिस संधि का लक्ष्य हासिल हो भी जाता है, तब भी एक तिहाई ग्लेशियर नहीं बच पाएंगे. दो सौ दस वैज्ञानिकों की लिखित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र का एक तिहाई से अधिक बर्फ 2100 तक पिघल जाएगी.
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रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू-कुश हिमालय (एनकेएच) क्षेत्र के हिमनद इन पहाड़ों में 25 करोड़ लोगों तथा नदी घाटियों में रहने वाले 1.65 अरब अन्य लोगों के लिए अहम जल स्रोत हैं. ये हिमनद गंगा, सिंधु, येलो, मेकोंग समेत दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण 10 नदियों में जलापूर्ति करते हैं तथा अरबों लोगों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से भोजन, ऊर्जा, स्वच्छ वायु और आय का आधार प्रदान करते हैं.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि उनके पिघलने का लोगों पर प्रभाव वायुप्रदूषण के बिल्कुल बिगड़ जाने से लेकर प्रतिकूल मौसम के रुप में हो सकता है. मानसून से पहले नदियों में निम्न प्रवाह से शहरी जल व्यवस्था, खाद्य एवं ऊर्जा उत्पादन अस्त व्यस्त हो जाएगा. नई रिपोर्ट काठमांडू के इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट इन नेपाल द्वारा प्रकाशित हुई है. ( भाषा इनपुट्स )