मोदी सरकार को इस समय कर्ज पर नहीं, आर्थिक पुनरूत्थान पर ध्यान देने की जरूरत: वित्त आयोग
पीएम मोदी (Photo Credits-BJP Twitter)

नई दिल्ली: सरकार को इस समय राजकोषीय सुदृढीकरण अथवा बढ़ते सार्वजनिक रिण के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसे अर्थव्यवस्था के जल्द से जल्द पुनरुत्थान के संभावित तौर तरीकों पर ध्यान देना चाहिये. पंद्रहवें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि वृद्धि दर काफी कमजोर रहने तथा राजस्व संग्रह कम होने से केंद्र और राज्य सरकारों के ऊपर वित्त को लेकर काफी दबाव है. आर्थिक सलाहकार परिषद के साथ आयोग की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, सिंह ने कहा कि इस साल राजकोषीय आंकड़े उन तरीकों से अलग होंगी, जैसा उन्हें समझा जाता रहा है.

वित्त मंत्रालय ने खुद रिजर्व बैंक से उधारी बढ़ाई है.  वहीं राज्य सरकारें भी अधिक उधार लेने जा रही हैं. उन्होंने आगे कहा, "यह राजकोषीय स्थिति सुदृढ़ बनाने को लेकर बात करने का समय नहीं है। यह वह समय है, जिसमें दुनिया मानती है, मुझे लगता है कि राजकोषीय घाटे के बजाय व्यय को बनाये रखने की आवश्यकता है और केंद्र सरकार ने यही किया है. यह भी पढ़े: PAN-Aadhaar Linking Deadline: पैन-आधार लिंक करने की आखिरी तारीख अब 31 मार्च 2021, टैक्सपेयर्स को भी मिली राहत.

सिंह ने कहा, "उन्होंने इस मुद्दे को संबोधित किया है कि धन और वित्त कहां जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान और अगले वित्त वर्ष से आगे देखकर चलें, इस मामले में केंद्र सरकार सचेत है, हर कोई सचेत है ... रास्ते पर कैसे लौटना है और किस तरह की वापसी वित्तीय घाटे और कर्ज दोनों मोर्चे पर उचित मानी जा सकती है. पंद्रहवें वित्त आयोग के गठन की शर्तों में एक महत्वपूर्ण शर्त यह भी है कि आयोग 2021-22 से 2025-26 के दौरान सरकार को घाटे, वित्त और कर्ज के संदर्भ में अनुशासित रास्ते का सुझाव दे, सिंह ने कहा, "इस साल हमें राजकोषीय घाटे या ऋण पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिये। हमें अर्थव्यवस्था के सबसे संभावित तेज पुनरुद्धार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये.

रेटिंग एजेंसियों ने भारत के राजकोषीय घाटे (संयुक्त केंद्र और राज्यों) का चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 11-12 प्रतिशत के बराबर रहने का अनुमान लगाया है। सरकार का कुल ऋण पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी के 71 प्रतिशत से बढ़कर 84 प्रतिशत को छूने वाला है।

पंद्रहवें वित्त आयोग की सलाहकार परिषद ने वित्त आयोग के साथ 25-26 जून को वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये बैठकों में महसूस किया कि अर्थव्यवस्था तथा केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति पर महामारी का प्रभाव अभी भी बहुत अनिश्चित है.

एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "सलाहकार परिषद ने केंद्र और राज्य सरकारों के कर राजस्व संग्रह पर अर्थव्यवस्था में लॉकडाउन के कारण प्रतिकूल प्रभावों पर भी चर्चा की। परिषद के कुछ सदस्यों ने यह माना कि कर संग्रह पर महामारी का काफी असर हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि कर संग्रह पर महामारी का असर काफी अलग तरह का भी हो सकता है.पिछले महीने जारी आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा अप्रैल में बजट अनुमान के 78 प्रतिशत तक पहुंच गया और यह 2.79 लाख करोड़ रुपये हो गया. वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटे का अनुमान 7.96 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.5 प्रतिशत है.

सलाहकार परिषद ने कोविड-19 महामारी के बाद सार्वजनिक ऋण के पुनर्गठन के लिये एक रूपरेखा तैयार करने की बाधाओं और संभावनाओं के साथ-साथ सरकार के घाटे व ऋण पर निहितार्थ के बारे में भी चर्चा की। सदस्यों ने कहा, "व्यय के मामले में सरकारों के पास स्वास्थ्य, गरीब लोगों और अन्य आर्थिक पक्षों के समर्थन में खर्च का काफी बोझ होगा. इस बैठक की अध्यक्षता 15 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह ने की.

इसमें आयोग के सभी सदस्यों और वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया. सलाहकार परिषद से, मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन, साजिद जेड चिनॉय, प्राची मिश्रा, नीलकंठ मिश्रा और ओमकार गोस्वामी तथा विशेष आमंत्रित सदस्य रतिन रॉय 25 जून की बैठक में शामिल हुए। जबकि 26 जून की बैठक में सलाहकार परिषद की ओर से अरविंद विरमानी, डीके श्रीवास्तव, एम गोविंद राव और सुदीप्तो मंडल तथा शंकर आचार्य और प्रणव सेन ने भाग लिया

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