नई दिल्ली: गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं. वन संपदा नष्ट हो रही है, वन्यजीवों की जान भी खतरे में है. जहां धुएं से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है, वहीं आग बुझाने में वन विभाग का दम फूल रहा है. इस बीच उत्तराखंड के जंगलों में आग को रोकने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि ‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम बारिश) या ‘‘इंद्र देवता पर निर्भर रहना’’ इस मुद्दे का समाधान नहीं है और राज्य को निवारक उपाय करने होंगे. Char Dham Yatra: 25 मई तक चारधाम यात्रा पर न आएं VIP, उत्तराखंड सरकार का अनुरोध.
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में जंगल की भीषण आग पर काबू पाने के लिए उठाए गए कदमों से सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को अवगत कराया और कहा कि आग की घटना के कारण राज्य का केवल 0.1 प्रतिशत वन्यजीव क्षेत्र प्रभावित हुआ है.
राज्य सरकार ने जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ को बताया कि पिछले साल नवंबर से राज्य में जंगल में आग लगने की 398 घटनाएं हुई हैं और वे सभी मानव निर्मित हैं.
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों से अवगत कराने के अलावा पीठ को यह भी बताया कि जंगल की आग के संबंध में 350 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और उनमें 62 लोगों को नामित किया गया है. अधिवक्ता ने कहा, ‘‘लोग कहते हैं कि उत्तराखंड का 40 प्रतिशत हिस्सा आग से जल रहा है, जबकि इस पहाड़ी राज्य में वन्यजीव क्षेत्र का केवल 0.1 प्रतिशत हिस्सा ही आग की चपेट में है.’’
अधिवक्ता ने पीठ के समक्ष अंतरिम स्थिति रिपोर्ट भी रखी. पीठ राज्य में जंगल की आग से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी. न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 मई की तारीख निर्धारित की है.