बहुरूपिये कोरोना का एक और नया स्वरूप मुंबई में बोन डेथ (Bone Death) के रूप में आया है. विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना से रिकवर हुए कुछ मरीजों के शरीर में रक्त संचार सुचारु रूप से नहीं होने से हड्डियां प्रभावित होती हैं. फिलहाल बोन डेथ के मरीज मुंबई में ही मिले हैं, लेकिन विशेषज्ञों ने शंका जाहिर की है कि बोन डेथ के मरीजों की संख्या बढ़ सकती है, तथा देश के अन्य हिस्सों से भी इसके मरीज देखे जा सकते हैं. बोन डेथ के संदर्भ में विशेषज्ञ क्या कहते हैं आइये देखते हैं.
पिछले दिनों मुंबई महाराष्ट्र से कोरोना महामारी से संबंधित जो खबर आ रही है, उसे लेकर वैज्ञानिक और चिकित्सक दोनों हैरान-परेशान हैं. क्योंकि अभी ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस एवं यलो फंगस जैसे कुछ कॉम्पलिकेशंस से मुक्ति भी नहीं मिली थी कि, कोविड का एक और नया रूप ‘बोन डेथ ’ सामने आ गया. इसके कुछ मामले हाल ही मुंबई में देखने को मिले हैं. यद्यपि चिकित्सकों का मानना है कि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में बोन डेथ के मामले अन्य शहरों से भी सुनने को मिल सकते हैं. गुड़गांव स्थित प्राइवेट अस्पताल के कोविड चिकित्सक डॉ. सुमित का कहना है कि बोन डेथ के मामले उन मरीजों में मिले हैं, जिसे कोविड के इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया या वैंटिलेटर पर रखा गया था. फिलहाल बोन डेथ के कुछ मामले मुंबई में मिले हैं.
क्यों बढ़ रहे हैं डेथ बोन के मामले?
कोविड 19 के सीरियस मरीजों के फेफड़े में सूजन आ जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में इन्फ्लेमेशन कहते हैं. इसे कम करने के लिए एंटी इन्फ्लेमेंट्री दवाओं का सेवन किया जाता है. इसी में एक दवा स्टेरॉयड है, ये फेफड़े के सूजन को कम करने के लिए और मरीज को रिकवरी में अहम् भूमिका निभाती है. लेकिन स्टेरॉयड का जरूरत से ज्यादा और लंबे समय तक लेते रहने से साइड इफेक्ट भी होते हैं, इस साइड इफेक्ट्स में एक एवीएन है. यह भी पढ़े : Kanwar Yatra: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद योगी सरकार ने बदला फैसला, अब करवाएगी सांकेतिक कांवड़ यात्रा
क्या है बोन डेथ और उसके लक्षण
बोन डेथ को विज्ञान की भाषा में एवेस्कुलर नेक्रोसिस (AVN) कहते हैं, एवेस्कुलर का आशय बोन में ब्लड सप्लाई का रुकना और नेक्रोसिस का मतलब है बोन टिश्यू का डेथ हो जाना. डॉ सुमित बताते हैं, एवेस्कुलर नेक्रोसिस एक तरह की बीमारी है, जो शरीर की कुछ महत्वपूर्ण हड्डियों में पायी जाती है. जैसे जांघ की हड्डी में ज्यादा देखने को मिलता है. इसके अलावा कलाई, एंकल और घुटने के जोड़ों में भी यह बीमारी हो सकती है. हर बोन की एक फिक्स ब्लड सप्लाई होती है. इसके माध्यम से ही हड्डी तक न्यूट्रिएंट्स जैसे कैल्सियम और ऑक्सीजन पहुंचती है. अगर ये सप्लाई बाधित होती है तो बोन का निचला हिस्सा कमजोर होने लगता है. इसमें पैचेस आते हैं और बोन टिश्यू धीरे-धीरे डेथ होने लगती है, जिसकी वजह से हिप ज्वाइंट वाले पार्ट्स की गोलाई खत्म होने लगती है. जिससे चलने में दिक्कत आती है. पेशेंट को बैठने या चलने फिरने में तकलीफ आने लगती है.अगर किसी को डेथ बोन के लक्षण दिखे, तो घरेलू इलाज के बजाय तुरंत किसी कोविड चिकित्सक से सलाह-मशविरा करें.
कोविड ही नहीं अन्य कारण भी होते हैं डेथ बोन के
एवीएन मल्टी फैक्टर डिसीज है. जरूरी नहीं कि कोविड के मरीजों में ही डेथ बोन हों, युवाओं में भी डेथ बोन के केस आते रहते हैं. इसकी वजह युवाओं में बॉडी बिल्डिंग के लिए जरूरत से ज्यादा स्टेरॉयड का इस्तेमाल है. स्टेरॉयड के अलावा और भी कई फैक्टर हैं, जिनकी वजह से एवीएन हो सकता है. मसलन कुछ ब्लड रिलेटेड डिसऑर्डर या फिर इम्यूनोलॉजिकल डिस्ऑर्डर. जैसे स्किल सेल एनीमिया या फिर बोन फ्रैक्चर होने के बाद एवीएन के चांसेस बढ़ जाते हैं. इसके अलावा पोस्ट किमो थेरेपी या रेडियोथेरेपी या फिर बहुत ज्यादा शराब पीने से भी एवीएन बढ़ जाते हैं.