बेंगलुरु: लोकसभा चुनावों के बीच, बेंगलुरु में जल संकट सबसे अहम मुद्दा बनकर उभर रहा है. बेंगलुरु में पानी की गंभीर समस्या के चुनाव के अन्य मुद्दे फीके पड़ गए हैं. बेंगलुरु वासी सबसे पहले इस जल संकट से निजात चाहते हैं. पानी की कमी इतनी है कि सरकार ने इसे पिछले चार दशकों का सबसे भयंकर सूखा बताया है. हालात इतने खराब हैं कि यहां पीने के पानी का भी संकट खड़ा हो गया है. राजस्थान के बाद भारत में दूसरे सबसे बड़े शुष्क क्षेत्र के रूप में कर्नाटक की स्थिति को देखते हुए, यह स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो गई है.
इस गंभीर समस्या का समाधान निकालने के लिए कई लोगों ने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है. रॉयल लेकफ्रंट रेजीडेंसी के निवासियों ने इस संबंध में मुख्य चुनाव आयुक्त को एक चिट्ठी लिखी. उन्होंने कहा, "हम आरएलएफ रेसीडेंसी लेआउट के निवासी हैं. हमने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है. भविष्य में हमारी उपरोक्त समस्या का समाधान नहीं होता है तो हम इस मामले में आपकी तरफ से कार्रवाई की मांग करते हैं." स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि बोरवेल सूखा पड़ा हुआ है और कहीं भी पानी की कोई आपूर्ति नहीं है.
बेंगलुरु जलसंकट की तुलना कुछ साल पहले केप टाउन की स्थिति से भी की जा रही है. लंबे समय तक सूखे, खराब मानसून और भूजल स्तर में चिंताजनक गिरावट के कारण बेंगलुरु सहित कर्नाटक में संकट अल नीनो के रहस्यमय प्रभाव से और जल संकट अधिक जटिल हो गया है.
जल संकट का यह मुद्दा चुनावी चर्चाओं पर हावी है. कुछ पार्टियां संकट से निपटने के लिए जलाशयों के निर्माण की वकालत कर रही हैं. वहीं कई पार्टियां इस मामले पर चुप हैं. वहीं बेंगलुरु वासी इसका समाधान चाहते हैं. बबढ़ती गर्मी के कारण बंगलूरू में जल संकट का खतरा भी बढ़ रहा है.