तिरुवनंतपुरम, 15 जनवरी : केरल में 2022 की दूसरी छमाही से राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और सरकार के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के बीच जंग छिड़ी हुई है. कई बार ऐसा भी हुआ जब दोनों के बीच की लड़ाई राजनीतिक शालीनता के सभी स्तरों को पार कर गई. राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन दोनों ही मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं और इसलिए यह अहंकार का मुद्दा बन गया. लेकिन नए साल के साथ कुछ राहत मिलती दिख रही है. दोनों अनुभवी दिग्गज खामोश हैं. खान ने एक छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 1972-73 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने. हालांकि, उन्होंने हार के साथ शुरूआत की, जब उन्होंने भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बुलंदशहर के सियाना निर्वाचन क्षेत्र से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा. लेकिन 1977 में 26 साल की उम्र में वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्य बने और उसके बाद से एक घटनापूर्ण राजनीतिक जीवन में पीछे मुड़कर नहीं देखा. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद वे 1980 में कानपुर और 1984 में बहराइच से लोकसभा के लिए चुने गए.
इसके बाद खान के राजनीतिक करियर में एक बड़ा गेम चेंजर आया, जब 1986 में, मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल के पारित होने पर मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी, जिसे लोकसभा में दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संचालित किया गया था. खान मुस्लिम पुरुषों को अपनी तलाकशुदा पत्नी या पत्नियों को भरण-पोषण भत्ता देने से बचने के कानून के खिलाफ थे और इस मुद्दे पर राजीव गांधी के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. फिर खान जनता दल में शामिल हो गए और 1989 में लोकसभा के लिए फिर से चुने गए. जनता दल शासन के दौरान खान ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन और ऊर्जा मंत्री के रूप में कार्य किया. फिर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने के लिए जनता दल छोड़ दिया और 1998 में फिर से बहराइच से लोकसभा में प्रवेश किया. यह भी पढ़ें : कांग्रेस सांसद संतोख चौधरी का पैतृक गांव में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
खान ने 1984 से 1990 तक मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली. वह 2004 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और उस वर्ष कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे. 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें केरल का नया राज्यपाल चुना. जब खान केरल पहुंचे, तो विजयन अपने चरम पर थे और पार्टी और सरकार दोनों उनके नियंत्रण में थे. खान ने सभी राजनीतिक मुद्दों का अध्ययन करने के लिए अपना समय लिया. खान जल्द ही सक्रिय हो गए और विजयन के निजी सचिव के.के. रागेश की पत्नी प्रिया वर्गीज को कन्नूर विश्वविद्यालय में एक शिक्षण कार्य के लिए नियुक्त किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई.
खान ने कहा कि विश्वविद्यालयों को माकपा का एक विभाग बना दिया गया है और यहां राजनीति हो रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा केरल टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को लेकर फैसला सुनाए जाने के बाद वह और ज्यादा सख्त हो गए. जल्द ही खान ने इस मुद्दे को 10 अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के समक्ष उठाया और यह मामला वर्तमान में अदालत के समक्ष है. विजयन ने लेफ्ट डेमोकेट्रिक फ्रंट से खान के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने को कहा और उनके सरकारी आवास के सामने इकट्ठा हुए. हालांकि विजयन और उनके कैबिनेट के सदस्य इससे दूर रहे, अन्य सभी वामपंथी नेता और उनके करीब एक लाख कार्यकर्ता खान के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए खान के आवास पर इकट्ठा हुए.
इसके बाद विजयन ने खान का तब तिरस्कार किया जब खान ने विजयन और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को क्रिसमस पार्टी में शामिल होने के निमंत्रण भेजा. फिर सीएम ने एक पार्टी की थी जिसमें खान को निमंत्रण नहीं भेजा गया था. केरल विधानसभा में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल को हटाने के लिए एक विधेयक लाया गया, लेकिन खान ने कहा कि वो इस पर निर्णय नहीं लेंगे और विधेयक राष्ट्रपति को भेजे जाने की उम्मीद है. और जब चीजें नियंत्रण से बाहर होती दिखीं तो खान ने साजी चेरियन की मंत्रिमंडल में वापसी पर अपनी सहमति दे दी और उन्हें शपथ भी दिलाई. साजी चेरियन ने संविधान पर हमला किया था जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था. इसके बदले में राज्य सरकार ने विधानसभा सत्र को समाप्त करने का फैसला किया. अब खान केरल विधानसभा में अपना भाषण दे सकेंगे.
इस बीच खान ने कांग्रेस की आलोचना की, विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने कहा कि आधा दर्जन से ज्यादा राजनीतिक दलों को बदलने वाले 'व्यक्ति' से उन्हें कुछ सीखने की जरूरत नहीं है. सतीसन ने खान और विजयन को लेकर कहा कि जब दिन शुरू होता है तो दोनों दुश्मन होते हैं और जब सूरज डूबता है, तो वे दोस्त हो जाते हैं और चुप्पी इसलिए होती है क्योंकि खान ने विजयन को कश्मीरी हलवे का एक पैकेट भेजा था. राजनीतिक विश्लेषण का कहना है कि यह खामोशी एक अस्थायी विराम है. दोनों लोहे के गर्म होने पर प्रहार करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. लिहाजा सबकी निगाहें 23 जनवरी को विधानसभा में खान के संबोधन पर टिकी हैं.