यूपी में एक और मस्जिद-मंदिर विवाद पहुंचा कोर्ट, उपासना स्थल कानून पर उठ रहे सवाल
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद का मामला भी कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट के आदेश पर रातोंरात मस्जिद के सर्वेक्षण का काम भी शुरू हो गया. आखिर एक के बाद एक धार्मिक स्थलों के विवाद कोर्ट क्यों पहुंच रहे हैं.उत्तर प्रदेश के संभल जिले की जिला अदालत में मंगलवार को संभल शहर के बीचोंबीच स्थित जामा मस्जिद का मामला पहुंचा. याचिकाकर्ताओं का दावा था कि यह जामा मस्जिद जिस जगह पर बनी हुई है वहां पहले मंदिर था और उसी मंदिर पर इस मस्जिद का निर्माण हुआ है, इसलिए इस मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के आदेश दिए जाएं.

सिविल जज सीनियर डिवीजन आदित्य सिंह की कोर्ट ने महज ढाई घंटे में याचिका स्वीकार करते हुए तत्काल एक हफ्ते के भीतर सर्वेक्षण के आदेश जारी कर दिए. लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद ही उसी दिन शाम को जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में एडवोकेट कमिश्नर के नेतृत्व में एक टीम वहां पहुंच गई. स्थानीय लोगों ने इसका विरोध भी किया लेकिन टीम ने रात में ही सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया.

सर्वेक्षण का काम करीब दो घंटे तक चला और इस दौरान संभल के डीएम और एसपी भी मौजूद रहे. पूरी कार्रवाई की वीडियोग्राफी कराई गई है. कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 29 नवंबर तय की है.

याचिका के पीछे कौन

कोर्ट में यह याचिका संभल के कैला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरि और पांच अन्य लोगों ने दायर की है जिसमें दावा किया गया है कि यहां एक प्राचीन हरिहर मंदिर था जिसे मुगल सम्राट बाबर ने साल 1529 में मस्जिद में बदल दिया.

याचिका दायर करने वालों की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, "हमने इस मामले में भारत सरकार, यूपी राज्य सरकार और मस्जिद समिति को पक्ष बनाया है. हरिहर मंदिर हमारी श्रद्धा का केंद्र है. हमारी आस्था और विश्वास के अनुसार, कल्कि का अवतार यहीं होने वाला है. यह एएसआई संरक्षित क्षेत्र है. यहां कई संकेत और प्रतीक हैं ऐसे हैं जो दर्शाते हैं कि यहां मंदिर था. इसीलिए हमने इसके सर्वेक्षण की मांग की है.”

सर्वेक्षण के बाद इस मस्जिद के चारों ओर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिए गए हैं. वहीं मस्जिद समिति का कहना है कि उन्हें केस दायर होने और फिर सर्वेक्षण के आदेश होने की कोई जानकारी नहीं मिली बल्कि तब पता चला जब टीम यहां सर्वेक्षण के लिए पहुंच गई.

मस्जिद समिति की प्रतिक्रिया

मस्जिद समिति से जुड़े वकील जफर अली बताते हैं कि हमें तो मंगलवार को शाम करीब छह बजे पुलिस ने बताया कि अदालत के आदेश पर मस्जिद का सर्वेक्षण करना है. जफर अली के मुताबिक, "जामा मस्जिद को लेकर किसी तरह का कोई कानूनी विवाद नहीं है. इससे पहले कुछ हिन्दू संगठन जरूर विवाद पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन अदालत में यह मामला पहली बार गया है और हमें पता भी नहीं चला कि यह कब अदालत पहुंच गया.”

संभल पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला है. जामा मस्जिद शहर के बीचोंबीच एक ऊंचे टीले पर बनी है और आस-पास की सबसे बड़ी इमारत है. मस्जिद के मुख्य द्वार के सामने हिन्दू आबादी है जबकि इसके पिछली तरफ मुस्लिम आबादी है. इस याचिका और फिर कोर्ट के आदेश के बाद सदियों पुरानी यह मस्जिद कानूनी विवाद के दायरे में आ गई है.

स्थानीय प्रशासन का दावा है कि जामा मस्जिद के आस-पास स्थिति सामान्य है लेकिन मुस्लिम समुदाय में इस बात को लेकर नाराजगी है कि सदियों पुरानी इस मस्जिद को मंदिर बताने की जबरन कोशिश की जा रही है और अदालत में इस तरह की याचिका को स्वीकार भी कर लिया गया है. वो भी तब, जबकि उपासना स्थल कानून (विशेष प्रावधान) 1991 में साफ-साफ कहा गया है कि 1947 से पहले के सभी धर्मस्थलों की यथास्थिति बहाल रखी जाएगी.

उपासना स्थल कानून के होते हुए ऐसी नौबत क्यों

जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी का कहना है कि इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने से देश को गंभीर नुकसान हो रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस तरह के गड़े मुर्दे उखाड़ने से देश की धर्मनिरपेक्ष बुनियादें हिल रही हैं. ऐतिहासिक संदर्भों को दोबारा वर्णित करने की कोशिशें राष्ट्रीय अखंडता के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं हैं. इन्हीं सबको रोकने के लिए देश में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 लागू किया गया था ताकि मस्जिद-मंदिर विवादों का केंद्र न बनने पाए." वे कहते हैं कि "आए दिन कहीं न कहीं मस्जिद का विवाद खड़ा किया जा रहा है और फिर सच्चाई जानने के नाम पर अदालतों से सर्वेक्षण की अनुमति ले ली जाती है.”

भारत: क्या है धार का भोजशाला विवाद

अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) कानून 1991 बनाया गया था ताकि मंदिर और मस्जिद या फिर अन्य धर्मों से संबंधित किसी भी तरह के पूजा स्थलों के विवाद आगे चलकर सामने न आएं. अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया क्योंकि यह केस पहले से ही अदालतों में चल रहा था.

लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसे कई विवाद सामने आए हैं जिनमें मस्जिदों को मंदिर बताते हुए उनके सर्वेक्षण की मांग की गई है. कुछ में अदालतों ने सर्वेक्षण के आदेश दिए भी हैं.

वाराणसी की प्रसिद्ध ज्ञानवापी मस्जिद के भी हिंदू मंदिर होने का दावा करते हुए अदालत में केस दायर किया गया था. बाद में अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे भी हुआ. यह विवाद अभी कोर्ट में चल ही रहा है.

कुछ ऐसा ही विवाद मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और ईदगाह को लेकर भी दायर किया गया है. इस केस में मथुरा की शाही मस्जिद को भगवान श्री कृष्ण की वास्तविक जन्मभूमि होने का दावा किया गया है. पिछले साल 14 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश दिए थे लेकिन इसी साल 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए आयुक्त नियुक्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी.

कई और धार्मिक स्थलों को लेकर भी जारी हैं विवाद

उपासना स्थल कानून के बावजूद अदालतों में ये मामले कैसे चले जाते हैं और फिर निचली अदालतों में ये मामले स्वीकार भी कर लिए जाते हैं, इस बारे में कई सवाल उठते हैं. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज आलम ने संभल की जामा मस्जिद को मंदिर बताने के दावे को अदालत द्वारा स्वीकार करने को उपासना स्थल कानून का उल्लंघन बताया है.

क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991, जिसे रद्द करने की उठी मांग

शाहनवाज आलम कहते हैं, "उपासना स्थल अधिनियम 1991 में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र था वो यथावत रहेगा. इसे चुनौती देने वाले किसी भी प्रतिवेदन या अपील को किसी न्यायालय, न्यायाधिकरण (ट्रिब्युनल) या प्राधिकार (अथॉरिटी) में स्वीकार भी नहीं किया जा सकता. फिर भी अदालतें इन मामलों को स्वीकार कर रही हैं.”

हालांकि कानूनी जानकारों का कहना है कि कानून के बावजूद अदालत में मामला जाने से नहीं रोका जा सकता, बल्कि ये अदालतों को तय करना है कि केस आगे चलने लायक है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता अली कम्बर जैदी कहते हैं, "दरअसल, इन मामलों में अदालतें इस कानून के अपवाद के तौर पर देख कर एडमिट कर रही हैं. आगे जब केस चलेगा तो बहस होगी और तब केस की मेंटेनेबिलिटी तय होगी यानी ये देखा जाएगा कि केस आगे चलने लायक है या नहीं.”

डीडब्ल्यू से बातचीत में अली कम्बर जैदी कहते हैं, "उपासना स्थल कानून किसी केस को दायर करने से तो रोकेगा नहीं, जब उसकी मेंटेनेबिलिटी तय होगी तब देखा जाएगा. तो इसी का फायदा उठाकर केस दायर हो रहे हैं. केस स्वीकार्य हैं या नहीं, ये तो बाद की बात है, लेकिन आज की तारीख में तो केस रजिस्टर हो ही जाएगा.”