नई दिल्ली, 1 फरवरी : सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ कानून अधिकारियों अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी तथा सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और अपीलकर्ताओं की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ताओं राजीव धवन, कपिल सिब्बल, और अन्य की मौखिक दलीलों की सुनवाई पूरी की.
सात जजों की पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्य कांत, जे.बी. पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और एस.सी. शर्मा भी शामिल थे. संविधान पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 2006 में पारित एक फैसले से उत्पन्न एक संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें संस्था को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाले 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया गया था.
संसद ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 1981 के आधार पर संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान किया था। यह कदम 1967 के अज़ीज़ बाशा मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के बाद आया था जिसमें कहा गया था कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के नाते अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा नहीं कर सकता है.
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा था कि किसी शैक्षणिक संस्थान को केवल इसलिए अल्पसंख्यक दर्जे से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह केंद्र या राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून द्वारा विनियमित किया जा रहा है. उन्होंने कहा, "आज, एक विनियमित देश में कुछ भी पूर्ण नहीं है. केवल इसलिए कि प्रशासन का अधिकार एक क़ानून द्वारा विनियमित है, संस्था के अल्पसंख्यक चरित्र पर असर नहीं पड़ता."