
नई दिल्ली: अमरनाथ यात्रा 2025 (Amarnath Yatra 2025) की शुरुआत हो चुकी है. बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए हज़ारों श्रद्धालु जम्मू-कश्मीर के कठिन पर्वतीय इलाकों में यात्रा पर निकल चुके हैं. करीब 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लंबा और चुनौतीपूर्ण ट्रैक करना पड़ता है. दो मुख्य रास्तों, पहलगाम और बालटाल, से होकर श्रद्धालु बाबा की गुफा तक पहुंचते हैं. कोई तीन दिन का लंबा सफर चुनता है तो कोई एक दिन का रोमांचक ट्रैक.
अमरनाथ यात्रा को लेकर लोगों के मन में कई सारे सवाल हैं. कौन सा रूट आपके लिए सही है? किस रूट पर कैसी सावधानियां बरतनी जरूरी हैं? यहां आपको मिलेगा हर जरूरी सवाल का जवाब.
पहुंचने के दो रास्ते: पहलगाम और बालटाल
अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए मुख्य रूप से दो रास्ते हैं:
- पहलगाम रूट: यह पारंपरिक और लंबा रास्ता है, जो लगभग 48 किलोमीटर का है.
- बालटाल रूट: यह छोटा लेकिन बहुत खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता है, जो लगभग 14 किलोमीटर का है.
पहलगाम रूट: आस्था और प्रकृति का संगम
यह अमरनाथ यात्रा का सबसे लोकप्रिय और पारंपरिक मार्ग है.
- समय और दूरी: इस रास्ते से यात्रा पूरी करने में 3 से 4 दिन लगते हैं. इसकी कुल दूरी करीब 48 किलोमीटर है.
- क्यों चुनें: यह रास्ता प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. इसकी चढ़ाई धीरे-धीरे बढ़ती है, जो इसे कम चुनौतीपूर्ण बनाती है. अगर आप परिवार, बच्चों या बुजुर्गों के साथ यात्रा कर रहे हैं, तो यह रूट आपके लिए सबसे अच्छा है. इसकी धार्मिक मान्यता भी अधिक मानी जाती है.
- यात्रा का प्लान:
- पहला दिन: पहलगाम से चंदनवाड़ी (16 किमी), फिर पिस्सू टॉप (3 किमी खड़ी चढ़ाई) और अंत में शेषनाग (9 किमी) में रात्रि विश्राम.
- दूसरा दिन: शेषनाग से पंचतरणी तक की 14 किलोमीटर की यात्रा.
- तीसरा दिन: पंचतरणी से 6 किलोमीटर दूर पवित्र अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन.
ज्यादातर श्रद्धालु इसी लंबे रास्ते को चुनते हैं क्योंकि यह सुरक्षित और कम थकाने वाला है.
बालटाल रूट: रोमांच और तेजी का रास्ता
यह रास्ता उन लोगों के लिए है जिनके पास समय कम है और जो शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट हैं.
- समय और दूरी: यह मार्ग केवल 14 किलोमीटर लंबा है और इसे 1 से 2 दिन में पूरा किया जा सकता है.
- क्यों चुनें: अगर आप युवा हैं, रोमांच पसंद करते हैं और कम समय में दर्शन करना चाहते हैं, तो यह रूट आपके लिए है.
- चुनौतियां: यह रास्ता छोटा ज़रूर है, पर इसमें सीधी और खड़ी चढ़ाई है. रास्ते संकरे और खतरनाक मोड़ वाले हैं, जो इसे बहुत चुनौतीपूर्ण बनाते हैं. इस रूट पर टट्टू या घोड़े से जाने की अनुमति नहीं है, केवल पैदल चलना होता है.
दोनों रास्तों की अपनी-अपनी चुनौतियां
- पहलगाम रूट की मुख्य चुनौती इसकी लंबाई और यात्रा में लगने वाला समय है.
- बालटाल रूट की मुख्य चुनौती इसकी सीधी और खड़ी चढ़ाई है, जो शारीरिक रूप से बहुत थका देने वाली होती है.
प्रशासन के खास इंतजाम
श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने व्यापक इंतजाम किए हैं.
- जगह-जगह पर आधार शिविर, मेडिकल कैंप और ऑक्सीजन बूथ बनाए गए हैं.
- खाने-पीने के लिए लंगर और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं.
- सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना के जवान तैनात हैं.
- मौसम की जानकारी और किसी भी आपात स्थिति के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए गए हैं.
घोड़े-खच्चर से यात्रा की जानकारी
अगर आप घोड़े या खच्चर से यात्रा करने की सोच रहे हैं, तो कुछ बातें जानना जरूरी है:
- हेल्थ चेकअप: यात्रा पर जाने वाले हर घोड़े-खच्चर का हेल्थ चेकअप होता है और उनकी पहचान के लिए जीआई टैग लगाया जाता है.
- बीमा: सभी घोड़ों का बीमा होता है. अगर यात्रा के दौरान किसी घोड़े की मृत्यु हो जाती है, तो मालिक को ₹60,000 से ₹1,00,000 तक का मुआवजा मिलता है.
- सहायक: हर घोड़े के साथ एक रजिस्टर्ड सहायक होता है, जिसका पहचान पत्र और मेडिकल जांच होती है. सुरक्षा कारणों से यात्रा के दौरान सहायक को बदला नहीं जा सकता.
- किराया: दो दिनों के लिए प्रति घोड़ा सरकारी रेट ₹8,000 से ₹10,000 के बीच है. इसमें खाने-पीने का खर्च अलग होता है.
तो, आप अपनी सेहत, समय और सुविधा के अनुसार सही रास्ते का चुनाव कर सकते हैं और बाबा बर्फानी की इस पवित्र यात्रा को सफल बना सकते हैं.