Sambhal Mosque Demolition Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट से संभल मस्जिद ध्वस्तीकरण मामले में मुस्लिम पक्ष को झटका, याचिका खारिज

प्रयागराज, 4 अक्टूबर : इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने शनिवार को याचिकाकर्ताओं को झटका देते हुए संभल मस्जिद (Sambhal Mosque) समिति द्वारा दायर एक तत्काल याचिका खारिज कर दी, जिसमें कथित तौर पर सरकारी जमीन पर बनी एक मस्जिद, मैरिज हॉल और अस्पताल के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने की मांग की गई थी. न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की एकल पीठ ने मस्जिद शरीफ गौसुल वारा रवा बुजुर्ग और उसके मुतवल्ली मिंजर की याचिका पर सुनवाई की. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने याचिका का निपटारा कर दिया और मस्जिद समिति को निर्देश दिया कि वह स्थगन याचिका के साथ सक्षम निचली अदालत का रुख करे. याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत 2 सितंबर को पारित आदेश को चुनौती दी थी.

उन्होंने तर्क दिया कि 2 अक्टूबर को चार बुलडोजरों से ध्वस्त किया जा चुका मैरिज हॉल तालाब की जमीन पर बना था, लेकिन उन्होंने दावा किया कि गांधी जयंती और दशहरा के दिन विध्वंस करने से कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है. प्रशासन ने मस्जिद को भी नोटिस जारी किया था, जिसके कुछ हिस्से कथित तौर पर सरकारी जमीन पर बने हैं और समिति को चार दिन की समय-सीमा दी गई थी. समय-सीमा समाप्त होने से पहले ही, मस्जिद समिति के सदस्यों ने कथित तौर पर दीवार के कुछ हिस्सों को खुद ही गिराना शुरू कर दिया. दशहरे के दिन, संभल जिला प्रशासन ने अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ ध्वस्तीकरण अभियान चलाया और रावा बुजुर्ग गांव में सरकारी जमीन पर बने एक मैरिज हॉल को गिरा दिया गया. यह भी पढ़ें : Tamil Nadu Heavy Rain Forecast: तमिलनाडु के 14 जिलों में भारी बारिश का पूर्वानुमान, मछुआरों को तट पर ही रहने की सलाह

गुरुवार सुबह चलाए गए इस अभियान के तहत, इलाके को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में बदल दिया गया, जहां लगभग 200 पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) के जवान तैनात थे. इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल किया गया. शुक्रवार को पिछली सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से जमीन के रिकॉर्ड जमा करने को कहा था. याचिका में राज्य सरकार, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक संभल, एडीएम, तहसीलदार और ग्राम सभा को पक्षकार बनाया गया था. अधिवक्ता अरविंद कुमार त्रिपाठी और शशांक श्री त्रिपाठी ने मस्जिद समिति का प्रतिनिधित्व किया, जबकि मुख्य स्थायी वकील जेएन मौर्य और स्थायी अधिवक्ता आशीष मोहन श्रीवास्तव शनिवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश हुए.