नई दिल्ली, 25 दिसंबर: साल 2020 कई मायनों में बहुत ही उतार-चढ़ाव वाला रहा है. पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)पर भारत-चीन सीमा गतिरोध, कोरोना वायरस की महामारी से लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की मृत्य समेत कई प्रमुख घटनाक्रम इस वर्ष हुई, जिसने दुनिया को कई मायनों में प्रभावित किया. साल 2020 भारतीय न्यायपालिका के नजरिये से भी कम महत्वपूर्ण नहीं था, क्योंकि देश के उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष कई महत्वपूर्ण फैसले दिये, जिसका असर देश सरकार की कार्य प्रणाली को भी प्रभावित किया है. वर्षांत के इस मौके पर हम यहां सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण फैसलों पर बात करेंगे.
* अभिव्यक्ति की आजादी संवैधानिक रूप से संरक्षित
एक ऐतिहासिक फैसले में इस वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इंटरनेट के माध्यम से विचार व्यक्त करना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है. जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद करने संबंधी याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इंटरनेट को दुनिया में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए सबसे अधिक उपयोगी एवं सुलभ माध्यम बताया है. इसके माध्यम से व्यापार और वाणिज्य का अधिकार भी संवैधानिक रूप से संरक्षित है. इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है. इंटरनेट का इस्तेमाल अनुच्छेद 19 (1)(क) (भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी) और अनुच्छेद 19 (1)(g) के तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है. (किसी भी पेशे, व्यवसाय अथवा व्यापार का अभ्यास करने का किसी को भी अधिकार है)
* मुआवजा जमा होने पर भूमि अधिग्रहण नहीं हो सकता
एक अन्य बड़े घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण और मालिकों को उचित मुआवजे के भुगतान के बाद विवाद 2013 अधिनियम के तहत फिर से नहीं खोला जा सकता है अगर कानूनी प्रक्रियाएं 1 जनवरी, 2014 से पहले पूरी हो गई हैं. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि 2013 के अधिनियम की धारा 24 (2) भूमि अधिग्रहण की समाप्त कार्यवाही की वैधता पर सवाल उठाने के लिए कार्रवाई के एक नये कारण को जन्म नहीं देती और यह 2013 के अधिनियम को लागू करने की तारीख पर लंबित कार्रवाही पर लागू होती है. अदालत ने कहा कि 2013 के अधिनियम की धारा 24 (2) भूमि अधिग्रहण की समाप्त कार्यवाही की वैधता पर सवाल उठाने के लिए कार्रवाई के एक नए कारण को जन्म नहीं देती है और यह 2013 के अधिनियम को लागू करने की तारीख पर लंबित कार्यवाही पर लागू होती है.
* 'कोटा नीति का आशय योग्यता से इनकार करना नहीं
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि कोटा नीति का मतलब योग्यता से इंकार करना नहीं है. न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने सांप्रदायिक आरक्षण के विचार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि रोजगार में सामान्य वर्ग आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों सहित सभी के लिए खुला है. लेकिन बातचीत हमेशा सच नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इस वर्ष कहा, व्याख्या का कोई भी दृष्टिकोण या प्रक्रिया जो पहले की तरह असंगति का कारण बनेगी, को अस्वीकार किया जाना चाहिए.
* सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देना
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल भी केंद्र सरकार को भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश देते हुए कहा, कि उन्हें कमांड पोस्टिंग देने पर कोई निरपेक्ष बार नहीं होगा. शारीरिक सीमाओं के सरकार के तर्क को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का सशस्त्र बलों में स्थाई कमीशन और कमांड पोस्टिंग पाने का समान अधिकार है. साथ ही सुरक्षा बलों में लैंगिक पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिए 'मानसिकता' को बदलने की जरूरत है.
* सिफारिशों के लिए RTI अनुरोध!
इस साल मार्च माह में जस्टिस बनुमाथी की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि लोग सिफारिशें हासिल करने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) का अनुरोध दाखिल नहीं कर सकते. RTI अधिनियम 2005 के आवेदन को सीमित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को गुजरात हाई कोर्ट के नियमों द्वारा स्थापित प्रक्रिया के उपयोग करने का सहारा लेना चाहिए.