भारतीय सिनेमा में पहली बार वीर्य दान जैसे मुद्दे पर फिल्म बनाने से लेकर पोखरण परमाणु परीक्षण जैसे विषय पर फिल्म बनाने तक मॉडल से अभिनेता और निर्माता बने जॉन अब्राहम ने साबित कर दिया है कि वह शरीर और दिमाग के मिश्रण के उम्दा उदाहरण हैं. उनका कहना है कि वह भारतीय सिनेमा में बदलाव लाना चाहते हैं. उनकी अंतिम रिलीज फिल्म 'परमाणु-द स्टोरी ऑफ पोखरण' सफल रही थी और वह अब स्वतंत्रता दिवस पर 'सत्यमेव जयते' को रिलीज करने की तैयारी कर रहे हैं.
जॉन ने यहां आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में बताया, "परमाणु' के प्रचार के लिए हमारे पास सिर्फ पांच दिन थे और फिल्म के इतने दिनों तक सिनेमाघरों में बने रहने पर मैं वास्तव में बहुत खुश हूं. फिल्म ने रुपये के साथ सम्मान भी कमाया. बतौर निर्माता-अभिनेता मैं वास्तव में भारतीय सिनेमा में बदलाव लाना चाहता हूं, जिससे लोगों में वह विश्वास आ सके कि वे शुक्रवार को मेरे बैनर 'जेए फिल्म्स' की फिल्म को देखने सिनेमाघर तक जाकर अपना समय और पैसा खर्च करें."
'सत्यमेव जयते' के बाद उनके पास दो और महत्वपूर्ण परियोजनाएं- 'बाटला हाउस' और 'रोमियो अकबर वाल्टर (आरएडब्ल्यू)' हैं. उनका कहना है कि दोनों फिल्मों ने उन्हें बतौर अभिनेता और निर्माता अपनी क्षमता प्रदर्शित करने का मौका दिया है.
उन्होंने कहा, "मैं जानता हूं कि 'बाटला हाउस' की कहानी शानदार है, जो आज के वास्तविक भारत को दिखाती है. दर्शक फिल्म को पसंद कर सकते हैं या इसे मेरे मुंह पर मार सकते हैं, लेकिन फिल्म से मैं अपनी बात कह रहा हूं. बतौर निर्माता मैं जानता हूं कि वास्तव में मैं क्या चाहता हूं."
2003 में उत्तेजक और रोमांचक फिल्म 'जिस्म' से लेकर 'धूम', 'वाटर', 'टैक्सी नंबर 9211', 'काबुल एक्स्प्रेस' और 'दोस्ताना' सहित कई अन्य सफल फिल्मों में अभिनय करने वाले जॉन की सबसे ज्यादा प्रशंसा उनके मजबूत शरीर तथा पर्दे पर उनकी सशक्त उपस्थिति के कारण होती है.
यह पूछने पर कि क्या इसी कारण से वह सामाजिक संदेश वाली फिल्में कर दर्शकों का ध्यान अपनी प्रतिभा की तरफ लाना चाहते हैं? जॉन ने सहमति जताते हुए कहा, "हां, आप ऐसा कह सकते हैं. लोग हर समय मुझे बोलते हैं कि फिल्म में मैं कितना अच्छा दिख रहा था. एक इंसान के तौर पर तारीफ सुनने पर मैं बहुत शर्मा जाता हूं, लेकिन बतौर कलाकार, मुझे वे फिल्में नहीं मिल रही थीं जो मैं करना चाहता था. इसीलिए मैंने निर्माता बनने का फैसला किया."