'सिनेमा के पितामह' (Father of Indian Cinema) कहलाए जाने वाले दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) का जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र के त्रयम्बकेश्वर में हुआ था. उनका असली नाम धुंदिराज गोविंद फाल्के था. भारत में उन्होंने ही सिनेमा का आगाज किया था. साल 1912 में उनकी फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' आई थी. यह भारतीय सिनेमा की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म थी. दादा साहब फाल्के ने सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से अपनी पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने बड़ौदा से मूर्तिशिल्प, इंजीनियरिंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी सीखी.
साल 2010 में दादा साहेब फाल्के ने 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी थी. इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने सोचा कि उन्हें भी इसी फील्ड में काम करना चाहिए. फिर उन्होंने सन 1912 में फिल्म देश की पहली साइलेंट फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई. यह फिल्म 15 हजार के बजट में बनी थी. बताया जाता है कि दादा साहेब फाल्के ने ही महिलाओं को फिल्मों में काम करने का सबसे पहले मौका दिया था.
दादा साहेब फाल्के की फिल्म 'भस्मासुर मोहिनी' में दो महिलाओं ने अभिनय किया था. इससे पहले फिल्मों में औरतों का किरदार भी मर्द ही निभाते थे. अपने 19 साल के करियर में दादा साहेब फाल्के ने 27 शॉर्ट मूवीज और 95 फिल्में बनाईं. 16 फरवरी, 1944 को उनका निधन हो गया था. उनको सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने 'दादा साहब फाल्के' पुरस्कार की शुरुआत की. देविका रानी चौधरी को सबसे पहले यह अवॉर्ड मिला था.