जलवायु संकट का लेखाजोखा क्या है?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पहली वैश्विक जलवायु प्रगति रिपोर्ट के मुताबिक, तापमान में भारी उछाल के बीच दुनिया अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएगी. जलवायु वार्ताओं में क्या देश बेहतर रास्ता निकाल पाएंगे?जमीन और समंदर दोनों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान वृद्धि वाले इस साल, संयुक्त राष्ट्र की ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट में धरती के लिए कड़ी चेतावनी जारी की गई है.

अपनी तरह की पहली, इस रिपोर्ट में कहा गया, "जीने योग्य और टिकाऊ भविष्य हासिल करने के अवसर द्रुत गति से कम हो रहे हैं. पेरिस समझौते ने लक्ष्य निर्धारित कर और जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया के लिए दुनिया को संकेत भेजकर, कमोबेश सार्वभौम जलवायु कार्रवाई को गति दे दी है. काम शुरू हो चुका है लेकिन तमाम मोर्चों पर और ज्यादा करने की जरूरत है."

जलवायु वैज्ञानिकों, सरकारी अधिकारियों और दूसरे विशेषज्ञों के दो साल के विश्लेषण का लेखाजोखा- ये ग्लोबल स्टॉकटेक, 2015 के पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान को सीमित करने के निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने में दुनिया की सामूहिक प्रगति की समीक्षा है. और इससे पता चलता है कि दुनिया अभी उस लक्ष्य से कोसों दूर है.

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि सदी के अंत तक, पूर्व औद्योगिक स्तरों से डेढ़ डिग्री सेल्सियस ऊपर, तापमान में अंकुश लगाने का लक्ष्य, तेजी से पीछे छूटता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम संगठन ने कहा है कि इस बात की पूरी संभावना है कि अगले पांच साल के दरमियान ही धरती अस्थायी रूप से उस सीमा को पार कर जाएगी.

डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर बने रहने के लिए, रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के मुकाबले, 2030 तक कोयला ऊर्जा में 67-82 फीसदी तक गिरावट लानी होगी. सदी के मध्य तक इसे कमोबेश शून्य पर लाना होगा.

रिपोर्ट के लेखकों ने "जीवाश्म ईंधनों के फेजआउट" और कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकास को प्रोत्सहान देने के लिए ज्यादा फंडिंग रखने का भी आह्वान किया. रिपोर्ट में कहा गया कि कोयले, तेल और प्राकृतिक गैस को मिलने वाली 450 अरब डॉलर की सालाना सब्सिडी को वहां से हटाकर ग्लोबल वॉर्मिंग से पैदा हो रही मौसमी प्रचंडताओं की मार से बेहाल लोगों और जगहों तक पहुंचाना चाहिए.

पहले ड्राफ्ट पर निराशा

जलवायु वार्ताकार और विश्व नेता, दुबई के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की बहसों को आकार देने के लिए रिपोर्ट के निष्कर्षों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जीवाश्म ईंधनों को फेजआउट करें या फेजडाउन – तमाम दलीलें इसी बहस के इर्दगिर्द जमा हैं.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सचिवालय के 1 दिसंबर को प्रकाशित ड्राफ्ट में देशों के लिए डेढ़ डिग्री सेल्सियस की तेजी से बंद होती खिड़की को लेकर चिंता जताई गई थी.

लेकिन उस ड्राफ्ट में तेल, कोयले और गैस के संभावित फेजडाउन का उल्लेख किया गया था. एक्टिविस्टों, वैज्ञानिकों और हाल में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्त्स ने कहा है कि धरती की विनाशकारी तपिश को रोकने के लिए जीवाश्म ईंधनों का फुल फेजआउट जरूरी है.

शोल्ज ने शनिवार को कॉप 28 बैठक में प्रतिनिधियों से कहा, "जीवाश्म ईंधनों को फेज आउट करने के लिए हम लोगों को अब एक दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी. सबसे पहले कोयले को हटाना होगा. हम लोग इस जलवायु सम्मेलन से ये शुरुआत कर सकते हैं."

इस बीच, कॉप28 के अध्यक्ष और अबु धाबी की सरकारी तेल कंपनी के प्रमुख सुल्तान अहमद अल-जबर को जलवायु विज्ञान पर अपना विश्वास दोहराने के लिए मजबूर होना पड़ा. उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें वो वैश्विक तापमान में कमी लाने के लिए जीवाश्व ईंधन को फेजआउट करने की वैज्ञानिक सर्वसम्मति पर सवाल उठाते दिखे थे.

कॉप28 की दूसरी अड़चनें

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के हरजीत सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि जून में बॉन में हुई जलवायु वार्ता में धरती को तपाने वाले आज के और अतीत के उत्सर्जनों के लिए कौन जिम्मेदार है, इसे लेकर तीखे सवाल हुए. ये भी पूछा गया कि इस स्थिति को उलटने की कोशिशों और जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों के लिहाज से तैयार रहने को वित्तीय मदद कौन देगा.

ग्लोबल पॉलिटिक्ल स्ट्रैटजी के प्रमुख ने विकासशील देशों के सीमित संसाधनों की ओर इशारा करते हुए कहा, "विकासशील देशों को रोजाना सोचना पड़ता है कि वे क्या करें - अपने लोगों के लिए भोजन जुटाएं या सौर तकनीक में निवेश करें."

पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने जोर दिया कि "वित्त और हिस्सेदारी से ही तय होगा कि हम दुनिया को सही रास्ते पर लाना चाहते हैं या उसे पतन की ओर धकेलना चाहते हैं."

संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख साइमन श्टेल ने लिखा, "वैश्विक समीक्षा (स्टॉकटेक) की कामयाबी ही आखिरकार कॉप28 की कामयाबी तय करेगी. ये कॉप 28, इस साल का एक महत्वपूर्ण पल है- जलवायु कार्रवाई के इस निर्णायक दशक में हालात की समीक्षा या जायजा (स्टॉकटेकिंग) लेने वाले दो पलों से एक यही है. इसी से तय होगा कि हम 2030 के लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे या नहीं."

वैश्विक समीक्षा कैसे काम करती है?

2015 के पेरिस समझौते से वैश्विक समीक्षा (ग्लोबल स्टॉकटेक) का विचार आया था. दुनिया ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कैसे कटौती कर रही है, बदलते हालात में कैसे ढल रही है और जलवायु संकट से निपटने के लिए आवश्यक फंड कैसे हासिल कर रही है, इन चीजों का नियमित आकलन करने या जायजा लेने के लिए देश सहमत हुए थे.

श्टेल कहते हैं, "वैश्विक समीक्षा एक महत्वाकांक्षी काम है. ये जवादेही तय करती है. ये काम में तेजी लाने की एक्सरसाइज है. ये वो एक्सरसाइज है जो ये सुनिश्चित करना चाहती है कि हर पक्ष अपनी जवाबदेही समझे, अगले कदम के बारे में सजग रहे, और ये समझे कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कितनी तत्परता चाहिए."

प्रक्रिया का पहला भाग, 2021 में शुरू होकर इस साल की शुरुआत में पूरा हुआ था. उसके तहत, उत्सर्जन का ताजातरीन डाटा, अनुकूलन की कोशिशें और देशों के घरेलू स्तर पर निर्धारित योगदान, या उनकी राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएं शामिल थीं.

दूसरे चरण में, तकनीकी आकलन शामिल था जो जून में बॉन की बैठक में पूरा हुआ. उससे विशेषज्ञों और जलवायु प्रतिनिधियों को कॉप28 की राजनीतिक बहसों से पहले डाटा का आकलन करने का मौका मिल गया.

हरजीत सिंह कहते हैं कि अधिकांश अंतरराष्ट्रीय समझौतों में वैश्विक आकलन जैसी प्रक्रिया नहीं होती. वो समय समय पर समीक्षा और दूरदर्शी योजना विकसित करने का मौका देती है.

वो कहते हैं, "ये अनूठी है, एक वाकई अहम प्रक्रिया. लेकिन हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि ये अर्थपूर्ण भी हो ना कि सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया बन कर रह जाए."

बेहतर रास्ता बनाने का अवसर

अमेरिका स्थित थिंक टैंक वर्ल्ड रिसोर्सेस इन्स्टीट्यूट के डेविड वास्को ने कहा कि वैश्विक लेखाजोखा, देशों को ऊर्जा संक्रमण, खाद्य प्रणालियों, परिवहन और टिकाऊ खपत से जुड़े अपने घरेलू योगदानों को अपडेट करने में मदद करेगा. ये प्रक्रिया उन्हें 2025 तक कर लेनी होगी.

वो कहते हैं, "एनडीसी के अगले दौर के लिए वैश्विक लेखाजोखा काफी स्पष्ट रूप से डिजाइन किया गया था. ये दिखाने का वाकई एक अवसर है कि अमल कैसे होगा, बदलाव कैसे होगा."

सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "समय का निर्धारण वास्तव में महत्वपूर्ण है. हमने वैज्ञानिकों को सुना है, हम जानते हैं कि जरूरत किस चीज की है. हमें चाहिए एक राजनीतिक दिशा. और वो मुहैया कराएंगे विश्व के नेता."