देहरादून, छह फरवरी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में मंगलवार को बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश किया जिसमें विवाह से जुड़ी पुरानी प्रथाओं को दंडनीय अपराध बनाने तथा 'लिव—इन' से उत्पन्न बच्चों को विवाह से पैदा हुए बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रस्ताव किया गया है ।
यूसीसी विधेयक को पारित कराने के लिए बुलाये गये विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पेश 'समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड—2024' विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है ।
हांलांकि, इसके दायरे से प्रदेश में निवासरत अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखा गया है ।
विधेयक पेश किये जाने के दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने मेजें थपथपाकर उसका स्वागत किया और ‘‘भारत माता की जय, वंदे मातरम और जय श्रीराम’’ के नारे भी लगाये।
बाद में मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर पोस्ट किया कि उनकी सरकार ने पूरी जिम्मेदारी के साथ समाज के सभी वर्गों को साथ लेते हुए समान नागरिक संहिता का विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया है ।
उन्होंने कहा, ' देवभूमि के लिए वह ऐतिहासिक क्षण निकट है जब उत्तराखंड आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विजन "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" का मजबूत आधार स्तम्भ बनेगा।'
इस विधेयक पर चर्चा की जाएगी जिसके बाद इसे पारित कराया जाएगा ।
विधेयक में बहु विवाह पर रोक लगाने का प्रस्ताव है जिसमें कहा गया है कि एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा। इसमें यह भी प्रस्तावित है कि असाधारण कष्ट की स्थिति को छोड़कर न्यायालय में तलाक की कोई भी अर्जी तब तक प्रस्तुत नहीं की जाएगी जब तक कि विवाह हुए एक वर्ष की अवधि पूरी न हुई हो ।
विधेयक में परोक्ष रूप से हलाला प्रथा का जिक्र करते हुए प्रस्ताव किया गया है कि तलाकशुदा पति या पत्नी का एक दूसरे से पुनर्विवाह बिना किसी शर्त के अनुमन्य होगा, और पुनर्विवाह से पहले उन्हें किसी तीसरे व्यक्ति से विवाह करने की आवश्यकता नहीं होगी ।
विधेयक के अनुसार, अगर कोई किसी व्यक्ति को पुनर्विवाह से पहले ऐसा करने को विवश या अभिप्रेरित करता है तो उसे तीन वर्ष के कारावास तथा एक लाख रू तक का जुर्माना देना होगा।
इसके अलावा, विधेयक में सहवास यानि 'लिव—इन' पद्धति में रहने की सूचना आधिकारिक रूप से देना जरूरी बनाते हुए इस रिश्ते में उत्पन्न बच्चों को वैध बच्चा मानते हुए उत्तराधिकार के अधिकार देना प्रस्तावित है ।
विधेयक में कहा गया है कि एक महीने के अंदर 'लिव—इन' में रहने की सूचना न देने पर तीन माह की कैद या दस हजार रू का जुर्माना या दोनों दंड प्रभावी होंगे । इस संबंध में गलत सूचना देने पर ज्यादा अर्थदंड का प्रावधान किया गया है ।
'लिव—इन' में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरूष साथी छोड़ देता है तो वह उससे भरण पोषण का दावा कर सकती है ।
इससे पहले, विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते हुए विपक्षी कांग्रेस सदस्यों ने आरोप लगाया कि इस विधेयक को सरकार हड़बड़ी में पारित करना चाहती है और इसका अध्ययन करने और उस पर चर्चा के लिए समय ही नहीं दिया जा रहा है ।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा, ' ऐसा लगता है कि सरकार इस विधेयक को बिना चर्चा के जल्दबाजी में पारित कराना चाहती है ।'
इस पर विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी ने विपक्षी सदस्यों को आश्वासन दिया कि विधेयक पर चर्चा के लिए उन्हें पर्याप्त समय दिया जाएगा ।
इस बीच, संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने साफ किया कि कार्य सूची में लिपिकीय त्रुटि से विधेयक के पारण का विषय छप गया है जबकि आज केवल विधेयक को पेश करने के बाद उस पर चर्चा की जाएगी ।
उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने दो फरवरी को मुख्यमंत्री को विधेयक का मसौदा सौंप दिया था ।
यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था। वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रचने के बाद भाजपा ने मार्च 2022 में सत्ता संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी ।
कानून बनने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा। गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से ही यूसीसी लागू है।
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