नयी दिल्ली, छह जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने निजी स्वार्थ के लिए जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि जनहित याचिका के नाम का दुरुपयोग शरारतपूर्ण गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने केन्द्र सरकार द्वारा उसका पक्ष रखने वाले वकीलों की नियुक्ति के तरीके के खिलाफ एक वकील द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जनहित याचिका बेजुबानों (वंचितों) के लिए न्याय सुनिश्चित करने का हथियार था और अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी याचिकाएं निजी हित के लिए या राजनीति से प्रभावित न हों या किसी अन्य दुर्भावना से न दायर की गई हों।
पीठ ने कहा कि वर्तमान जनहित याचिका ‘‘और कुछ नहीं, ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (प्रचार पाने के लिए याचिका) है’’ और इस याचिका में ‘कोई जनहित’ शामिल नहीं है’ इसे सिर्फ परेशान करने की मंशा से दायर किया गया है।
अदालत ने तीन जुलाई के अपने एक फैसले में कहा कि जनहित याचिका के नाम का दुरुपयोग शरारतपूर्ण गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए और इसका उपयोग जनता को पहुंचे नुकसान या उसे हुई हानि का समाधान पाने के लिए किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि अदालतों को इसका ध्यान रखना चाहिए कि अदालत आने वाला कोई भी व्यक्ति सही कारण लेकर आया हो और निजी हित या निजी कारणों अथवा राजनीतिक कारणों या अन्य लाभ साधने के लक्ष्य से न आया हो।
याचिका दायर करने वाले राजिन्दर निश्चल ने अदालतों में भारत सरकार का पक्ष रखने के लिए वकीलों की नियुक्ति प्रक्रिया को इस आधार पर चुनौती दी थी कि पैनल में सदस्यों की संख्या तय नहीं है और सरकार नियुक्तियों या कार्यकाल बढ़ाए जाने को लेकर आवेदन भी नहीं आमंत्रित करती है। उन्होंने कहा कि सरकारी वकील के रूप में वकीलों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय द्वारा तय मानदंडों के विपरीत है।
इन दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि देश का सबसे बड़े प्रतिवादियों में शामिल भारत सरकार को अपना वकील नियुक्त करने की पूरी आजादी है और ऐसा लगता है कि याचिका इसलिए दायर की गई है, क्योंकि याचिकाकर्ता को सरकारी वकील के रूप में कार्यकाल में विस्तार या पुन:नियुक्ति नहीं मिली है।
अंतत: अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका खारिज की जाती है।
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