
मऊ (उप्र), पांच जुलाई उत्तर प्रदेश में मऊ जिले की विशेष सांसद-विधायक अदालत ने शनिवार को नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में पूर्व विधायक अब्बास अंसारी की दोषसिद्धि बरकरार रखी, हालांकि इसने दो साल की सजा की अवधि को चुनौती देने वाली याचिका पर आगे की सुनवाई की अनुमति दे दी। दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं ने यह जानकारी दी।
नफरत फैलाने वाले भाषण के आरोप में 31 मई को मऊ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत से दो साल की सजा सुनाये जाने के बाद अब्बास अंसारी को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया और उनकी सीट रिक्त घोषित कर दी गयी थी।
वर्ष 1996 से लगातार 2017 तक पांच बार मऊ से विधायक रह चुके अब्बास के दिवंगत पिता, कथित बाहुबली मुख्तार अंसारी के जीवित रहते ही उनकी विरासत अब्बास अंसारी ने संभाल ली और 2022 में समाजवादी पार्टी के समर्थन से वह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के सिंबल पर विधान सभा सदस्य बने थे।
एक अधिवक्ता ने बताया कि अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (त्वरित अदालत/एमपी एमएलए कोर्ट) राजीव कुमार वत्स ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 30 जून को आदेश सुरक्षित रख लिया था और शनिवार को फैसला सुनाया।
अदालत ने अंसारी को 50,000 रुपये के मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी और उसकी सजा पर रोक लगा दी, लेकिन उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी।
इस बीच अदालत ने अब्बास अंसारी के सह-आरोपी मंसूर को भी जमानत दे दी। सजा की अवधि के बारे में सत्र न्यायालय में अगली सुनवाई 25 जुलाई को होनी है।
अब्बास अंसारी के अधिवक्ता दरोगा सिंह ने कहा, "अदालत ने अपने फैसले में दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई। हालांकि अब्बास अंसारी और मंसूर को 50,000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी गई है। अब हम दोषसिद्धि के खिलाफ उच्च न्यायालय जाएंगे।"
वहीं सरकारी अधिवक्ता अजय कुमार सिंह ने अदालत के फैसले के बारे में विस्तार से बताया, ‘‘इससे पहले सीजेएम कोर्ट ने अब्बास अंसारी को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। उसके खिलाफ उनके अधिवक्ता दरोगा सिंह ने दो आवेदनों के साथ अपील दाखिल की थी। जिसमें उन्होंने सजा और जमानत पर रोक लगाने की मांग की थी। आज एमपी/एमएलए कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। चूंकि सजा सिर्फ दो साल की थी, इसलिए सीआरपीसी में प्रावधान है कि जमानत मिलनी चाहिए, इसलिए उन्होंने जमानत मिल गयी है।''
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