नयी दिल्ली, 5 अगस्त : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि अगर इसके बारे में रिपोर्टें सही हैं तो जासूसी के आरोप गंभीर हैं. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने शुरू में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से कुछ सवाल पूछे. सीजेआई ने कहा, ‘‘इस सब में जाने से पहले, हमारे कुछ प्रश्न हैं. इसमें कोई शक नहीं, अगर रिपोर्ट सही है तो आरोप गंभीर हैं.’’ उन्होंने यह कहते हुए देरी का मुद्दा उठाया कि मामला 2019 में सामने आया था.
सीजेआई ने कहा, ‘‘जासूसी की रिपोर्ट 2019 में सामने आयी थी. मुझे नहीं पता कि क्या अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास किये गए थे.’’ उन्होंने कहा कि वह यह नहीं कहना चाहते थे कि यह एक बाधा थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह प्रत्येक मामले के तथ्यों में नहीं जा रही है और अगर कुछ लोगों का दावा है कि उनके फोन को इंटरसेप्ट किया गया था तो टेलीग्राफ अधिनियम है जिसके तहत शिकायत दर्ज करायी जा सकती है. सिब्बल ने कहा, ‘‘मैं समझा सकता हूं. हमारे पास कई सामग्री तक पहुंच नहीं है. याचिकाओं में फोन में सीधी घुसपैठ के 10 मामलों की जानकारी है.’’ यह भी पढ़ें :Pegasus Spyware Scandal: पेगासस स्पाइवेयर मामले पर बीजेपी का दावा- जासूसी संबंधी खबरें मनगढंत, काल्पनिक और बगैर साक्ष्य के
कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं सहित नौ याचिकाओं पर फिलहाल सुनवाई चल रही है. ये याचिकाएं इजराइली कंपनी एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग करके प्रमुख नागरिकों, नेताओं और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी की रिपोर्ट से संबंधित हैं. एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में थे.