देश की खबरें | अदालत ने फिल्म की रिलीज के मामले में सुशांत के पिता को एकल न्यायाधीश के समक्ष शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दी

नयी दिल्ली, 26 जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता को अपने बेटे के जीवन पर कथित रूप से आधारित फिल्म के प्रदर्शन से संबंधित शिकायत को लेकर एकल न्यायाधीश से मिलने की सोमवार को अनुमति मिल गयी ।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति तवंत सिंह की पीठ ने कहा कि ‘न्याय: द जस्टिस’ नामक फिल्म अब एक डिजिटल मंच पर प्रदर्शित हो चुकी है और इस तथ्य के आलोक में पक्षकार एकल न्यायाधीश के सामने अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हैं।

फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार करने वाले एकल न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर खंडपीठ ने सुनवाई की। उक्त याचिका, राजपूत के पिता कृष्ण किशोर सिंह की ओर से दायर की गई थी। याचिका का निस्तारण करते हुए खंडपीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता (कृष्ण किशोर सिंह) की दलीलों को फिल्म की पृष्ठभूमि के आधार पर जांचा जाएगा जो कि लपालप ओरिजिनल वेबसाइट पर उपलब्ध है।”

पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि फिल्म बनाने वाले इसमें कोई बदलाव करना चाहते थे तो उन्हें सिंह को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी। अदालत ने कहा कि सिंह को एकल न्यायाधीश के सामने जाने की स्वतंत्रता है।

राजपूत के पिता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत में कहा कि फिल्म बनाने वालों ने धोखाधड़ी की है क्योंकि उन्होंने 11 जून को फिल्म की रिलीज के संबंध में पूरी तरह झूठा बयान दिया। विकास सिंह ने कहा कि डिजिटल मंच पर डाले गए वीडियो में 72 मिनट की विषयवस्तु गायब है और वह केवल शूटिंग का मिश्रण मात्र है जिसे फिल्म की रिलीज नहीं कहा जा सकता।

पीठ ने कहा कि सिंह यदि चाहें तो धोखाधड़ी के आधारों पर एकल न्यायाधीश के आदेश की समीक्षा के लिए आवेदन कर सकते हैं। फिल्म बनाने वालों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता चन्दर लाल ने जवाब दिया कि अभिनेता के पिता फिल्म की गुणवत्ता का निर्णय नहीं कर सकते। लाल ने कहा कि तीन लाख से अधिक लोग पहले ही फिल्म को ऑनलाइन मंच पर देख चुके हैं और उसमें विज्ञापन के लिए ‘ब्लैंक इंटरवल’ डाले गए थे।

उन्होंने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश का आदेश अदालत के सामने विचाराधीन था और फिल्म की रिलीज से पहले दिया गया था इसलिए आदेश के अनुसार, कोई भी शिकायत फिल्म की रिलीज से पहले एकल न्यायाधीश के सामने दर्ज कराई जानी चाहिए थी।

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